दुनिया का हर जनतंत्र अधूरा है क्योंकि उसने औरत को पढ़ने का तरीक़ा पूरा सीखा ही नहीं

दुनिया भर के हर देश और समाज को औरत को पहचानने में, उन्हें समझने, उनके साथ इंसानी रिश्ता क़ायम करने में में काफ़ी लंबा वक़्त लगा. उसकी वजह थी समाज और तंत्र की उसमें दिलचस्पी का अभाव. लगता है कि वह देखता है लेकिन असल में देखता नहीं. कविता में जनतंत्र स्तंभ की 33वीं क़िस्त.

स्त्री तेरी आज़ादी: दर्द की अंजुमन जो मिरा देश है

एक स्वतंत्र और ख़ुद को विकसित बताने वाले देश में स्त्रियों का सुरक्षित न महसूस कर पाना हमारे लोकतंत्र और समाज की साझी असफलता है, लेकिन अपराधी को समय से सज़ा न दे पाना उससे भी बड़े ख़ौफ़ और शर्म का सबब है.

ममता बनर्जी: धर्मोन्माद की दुंदुभि के बीच स्त्री शक्ति का पर्याय

वैसे यह देश सुबह-शाम तक स्त्री महिमा का गायन करता है, लेकिन सच में यहां की न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका, मीडिया और जन लोक... सबके सब पूरी ताक़त से स्त्रियों के विरोध में जुट पड़ते हैं. फिर भले वह सोनिया हो, वसुंधरा राजे हो या फिर ममता बनर्जी... वे विवेकहीन लोक का प्रहार झेलती ही हैं.