मोदी सरकार के आख़िरी बजट में असंगठित मज़दूरों की पेंशन योजना एक और छलावा है

नरेंद्र मोदी सरकार की पिछली कई योजनाओं की तरह यह नई योजना भी दिखाती है कि लुटियन दिल्ली असली भारत की सच्चाई से कितनी दूर है.

स्वच्छता अभियान के नारों के बीच महिला सफाईकर्मियों का जीवन

घर हो या दफ्तर, एक दिन सफाई कर्मचारी के न आने से होने वाली अव्यवस्था और परेशानी को नकारा नहीं जा सकता. बावजूद इसके सफाई कर्मचारियों को उनके काम के अनुसार महत्व और सुविधाएं नहीं मिलतीं. हालत यह है कि स्वच्छता के काम में लगी महिला सफाईकर्मियों को अपने घर में शौचालय तक नसीब नहीं हैं.

रेल मंत्री अगर ठीक से काम करते, तो ट्विटर पर दिन भर अपना प्रचार नहीं करना पड़ता

कैग ने 2014-15 से लेकर 2016-17 के बीच दिए गए 463 कांट्रैक्ट में काम करने वाले ठेके के मज़दूरों के हालात की समीक्षा की है. रिपोर्ट देखेंगे तो पता चलेगा कि रेलवे बग़ैर किसी मंत्री के चल रहा है. राम भरोसे कहना ठीक नहीं क्योंकि राम भरोसे तो सारा देश चलता है.

मीडिया बोल, एपिसोड 66: सवर्ण भारत बंद, किसान-मज़दूर रैली और समलैंगिक आज़ादी का उल्लास

मीडिया बोल की 66वीं कड़ी में उर्मिलेश एससी-एसटी एक्ट को लेकर सवर्णों द्वारा किए गए भारत बंद, दिल्ली में किसान और मज़दूर संगठनों की रैली और समलैंगिक संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर लाने पर वरिष्ठ पत्रकार शैलेष और दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रतन लाल से चर्चा कर रहे हैं.

‘सरकार भाषण में तो किसान का नाम लेती है लेकिन ज़मीन पर हिंदू-मुसलमान करती है’

देशभर से आए हज़ारों की संख्या में किसानों और मज़दूरों ने दिल्ली के संसद मार्ग पर केंद्र की मोदी सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया और अपनी मांगों को रखा.

न्यूनतम मज़दूरी नहीं देने वाले उद्योग को चालू रहने का हक़ नहीं: हाईकोर्ट

अदालत ने कहा, बिना न्यूनतम मज़दूरी दिए लोगों से काम लेना आपराधिक कृत्य है और इसके लिए न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम, 1948 के तहत दंडात्मक प्रावधान मौजूद हैं.

‘यह स्थापित करने का प्रयास हो रहा है कि श्रमिक एवं श्रम कानून विकास में बाधा हैं’

भारतीय मजदूर संघ ने नीति आयोग के उन निष्कर्षों को आधारहीन बताया है कि श्रम कानूनों में संशोधन के बिना विकास और रोज़गार संभव नहीं है.

क्या मज़दूर कल्याण के 20 हज़ार करोड़ रुपये चाय पार्टियों पर ख़र्च हो गए: सुप्रीम कोर्ट

सर्वोच्च न्यायालय ने हैरानी जताते हुए कहा कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) तक को भी इस बारे में पता नहीं है.

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