एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी की दूसरी लहर के कारण क़र्ज़ का यह अनुपात चालू वित्त वर्ष में और बढ़ सकता है. परिवारिक क़र्ज़ का स्तर जुलाई 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद से बढ़ रहा है. इससे पहले नवंबर 2016 में नोटबंदी लागू की गई थी. परिवार पर बढ़ता क़र्ज़ का मतलब है कि उनकी वित्तीय बचत दर, खपत और स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ने के कारण कम हुई है.
ट्रांसयूनियन सिबिल की रिपोर्ट में कहा गया है कि जनवरी 2021 तक भारत की कुल कामकाजी आबादी 40.07 करोड़ थी, जबकि खुदरा ऋण बाजार में 20 करोड़ लोगों ने किसी न किसी रूप में क़र्ज़ लिया है.