भारत के समाजवादियों का इज़रायल प्रेम 1948 में उसके गठन के वक़्त से ही शुरू हो गया था. इज़रायल का दौरा करने और कई-कई हफ़्तों तक इसकी मेज़बानी उठाने वालों में भारत के शीर्ष समाजवादी नेताओं में जयप्रकाश नारायण, जेबी कृपलानी, राममनोहर लोहिया, हरि विष्णु कामथ, कर्पूरी ठाकुर, जॉर्ज फर्नांडीस, मधु दंडवते, अनुसुईया लिमये जैसे नाम शामिल थे.
फ़िलिस्तीन का उपनिवेशीकरण विभाजित पश्चिमी समाज के लिए एकता क़ायम करने का ज़रिया बन जाता है. यहूदी समस्या पश्चिम को दिखाई देती है, वहीं फ़िलिस्तीन को वह नज़रअंदाज़ करता है. एडवर्ड सईद ने इसे ‘दोहरा विज़न’ कहा है.
शुरुआत में भारत ने नव-उपनिवेशवाद और इज़राइल द्वारा फ़िलिस्तीनी ज़मीन के अतिक्रमण की मुखर तौर पर निंदा की, लेकिन यह विरोध धीरे-धीरे कम हो गया. भारत का रुख कमज़ोर हुआ क्योंकि इज़राइल के साथ आर्थिक और सैन्य संबंध जुड़ गए. अब ये रिश्ते हिंदुत्व व यहूदीवाद की लगभग समान विचारधारा पर फल-फूल रहे हैं.