सबसे ग़रीब तबकों में बाल मृत्यु दर और कुपोषण के स्तर को देखते हुए यह समझ लेना होगा कि लोक सेवाओं और अधिकारों के संरक्षण के बिना न तो ग़ैर-बराबरी ख़त्म की जा सकेगी, न ही भुखमरी, कुपोषण और बाल मृत्यु को सीमित करने के लक्ष्यों को हासिल किया जा सकेगा.
जब से नई आर्थिक नीतियां आईं, चुनिंदा पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए खुलेआम जनविरोधी नीतियां बनाई जाने लगीं, तभी से देश राष्ट्र में तब्दील किया गया. इन नीतियों से भुखमरी, कुपोषण और ग़रीबी का चेहरा और विद्रूप होने लगा तो देश के सामने राष्ट्र को खड़ा कर दिया गया. खेती, खेत, बारिश और तापमान के बजाय मंदिर और मस्जिद ज़्यादा बड़े मुद्दे बना दिए गए.
आज़ादी के 71 साल: सरकार यह महसूस नहीं करती है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण और सामाजिक सुरक्षा पर किया गया सरकारी ख़र्च वास्तव में बट्टे-खाते का ख़र्च नहीं, बल्कि बेहतर भविष्य के लिए किया गया निवेश है.
नोटबंदी के फ़ैसले के बाद से अर्थव्यवस्था के और अधिक वित्तीयकरण के प्रयासों का परिणाम होगा कि आगे किसी भी वैश्विक आर्थिक संकट के दौरान देश की अर्थव्यवस्था को ज़्यादा चोट पहुंच सकती है.
विशेष साक्षात्कार: पूर्व वित्त मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता यशवंत सिन्हा से मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों, कृषि संकट और बेरोज़गारी जैसे मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं द वायर के संस्थापक संपादक एमके वेणु.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आर्थिक विश्लेषण को येचुरी ने बताया जुमलानॉमिक्स. ग़ुलाम नबी आज़ाद बोले, मोदी टीवी के प्रधानमंत्री, हमारे प्रधानमंत्री ज़मीनी थे.
डूबती अर्थव्यवस्था को लेकर कई भाजपा नेता लगातार वित्त मंत्री पर हमला कर रहे हैं, लेकिन जिन आर्थिक फैसलों से यह स्थिति आई है, उन्हें लेने में प्रधानमंत्री की भूमिका पर एक चुप्पी छाई हुई है.
अरुण जेटली ने सिन्हा का नाम नहीं लिया, लेकिन कहा कि उनके पास पूर्व वित्त मंत्री होने का सौभाग्य नहीं है, न ही ऐसा पूर्व वित्त मंत्री होने का सौभाग्य है जो आज स्तंभकार बन चुका है.
कहा, यशवंत सिन्हा सच्चे अर्थों में राजनेता हैं, जिसने खुद को साबित किया है और जो देश के सबसे सफल वित्त मंत्रियों में से एक हैं.
वॉशिंगटन में राहुल बोले, नोटबंदी से लाखों छोटे कारोबार तबाह हो गए. नोटबंदी का फ़ैसला आर्थिक सलाहकार या संसद की सलाह के बिना लिया गया. इससे अर्थव्यवस्था को काफ़ी नुकसान हुआ.
पूर्व वित्त मंत्री ने कहा, आपको ग़लत निर्णय लेने के लिए साहस की ज़रूरत नहीं है, लेकिन आपने ग़लत निर्णय लिया है, यह स्वीकार करने का साहस होना चाहिए.
भारतीय मजदूर संघ ने नीति आयोग के उन निष्कर्षों को आधारहीन बताया है कि श्रम कानूनों में संशोधन के बिना विकास और रोज़गार संभव नहीं है.