अमेरिकी खाद्य एवं दवा नियामक (एफडीए) ने भारत बायोटेक के अमेरिकी साझेदार ओक्यूजेन इंक को सलाह दी है कि वह भारतीय वैक्सीन के इस्तेमाल की मंज़ूरी हासिल करने के लिए अतिरिक्त आंकड़ों के साथ जैविक लाइसेंस आवेदन (बीएलए) पाने के लिए अनुरोध करे. ऐसे में कोवैक्सीन को अमेरिकी मंज़ूरी मिलने में थोड़ा और वक़्त लग सकता है.
एक ऑनलाइन चर्चा में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि उस दौरान जो भी हुआ वह ग़लत था, लेकिन वह वर्तमान परिप्रेक्ष्य से मौलिक रूप से बिल्कुल अलग था, क्योंकि कांग्रेस ने कभी भी देश के संस्थागत ढांचे पर क़ब्ज़ा करने का प्रयास नहीं किया. उन्होंने दावा किया कि पार्टी में चुनाव कराने की मांग को लेकर उनकी आलोचना की गई थी.
मुंबई के वर्ली इलाके में हुई घटना में मृतक के परिवारवालों ने आरोप लगाया है कि आठ अस्पतालों बेड की कमी बताकर भर्ती करने से इनकार कर दिया था. नवी मुंबई में हुई घटना में दो अस्पतालों द्वारा मना करने के बाद एक वकील का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया.
आपातकाल के 44 साल बाद इन सेंसर-आदेशों को पढ़ने पर उस डरावने माहौल का अंदाज़ा लगता है जिसमें पत्रकारों को काम करना पड़ा था, अख़बारों पर कैसा अंकुश था और कैसी-कैसी ख़बरें रोकी जाती थीं.
प्रधानमंत्री कार्यालय ने कथित तौर पर विभिन्न राज्यों के नौकरशाहों से उन जगहों के बारे में जानकारियां मांगी, जहां प्रधानमंत्री को चुनाव प्रचार के लिए जाना था. अगर यह साबित हो जाता है तो न केवल आदर्श आचार संहिता बल्कि जनप्रतिनिधि क़ानून का उल्लंघन होगा.
चुनावी बातें: चौधरी चरण सिंह ने एक चुनावी सभा में मतदाताओं से कहा था कि अगर उनकी पार्टी का प्रत्याशी चारित्रिक रूप से पतित हो या शराब पीता हो, तो वे उसे हराने में संकोच न करें.
अपनी नई किताब में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नटवर सिंह ने लिखा है कि अक्सर इंदिरा गांधी को गंभीर और क्रूर बताया जाता है. कभी-कभार ही यह कहा गया कि वह सुंदर, गरिमामयी और शानदार इंसान के साथ एक विचारशील मानवतावादी एवं अध्ययन करने वाली महिला थीं.
रोजगार नहीं है. उत्पादन घट गया है. किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नसीब नहीं हो रहा है. हेल्थ सर्विस चौपट हो चली है. शिक्षा-व्यवस्था डांवाडोल है. मुस्लिम ख़ामोश हो गया है. दलित चुपचाप है लेकिन आवाज़ नहीं उठनी चाहिए क्योंकि देश में क़ानून अपना काम कर रहा है.
एंटी-नेशनल, भारत विरोधी जैसे शब्द आपातकाल के सत्ताधारियों की शब्दावली का हिस्सा थे. आज कोई और सत्ता में है और अपने आलोचकों को देश का दुश्मन बताते हुए इसी भाषा का इस्तेमाल कर रहा है.
हमारी राष्ट्रीय राजनीति और भाजपा कांग्रेस विरोधी आंदोलन यानी प्रतिरोध का ही नतीजा हैं, लेकिन इसके बारे में कोई बात नहीं करता. ख़ुद भाजपा भी नहीं. वे चाहते हैं कि हम इमरजेंसी के बारे में जानें लेकिन उतना, जितने से उन्हें नुकसान न पहुंचे.
राजनीतिक विमर्श में आपातकाल नरेंद्र मोदी का प्रिय विषय रहता है. यह और बात है कि मोदी आपातकाल के दौरान एक दिन के लिए भी जेल तो दूर, पुलिस थाने तक भी नहीं ले जाए गए थे. भूमिगत रहकर उन्होंने आपातकाल विरोधी संघर्ष में कोई हिस्सेदारी की हो, इसकी भी कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं मिलती.
जन गण मन की बात की 264वीं कड़ी में विनोद दुआ आपातकाल औैर देश की वर्तमान राजनीतिक स्थिति पर चर्चा कर रहे हैं.
आपातकाल कोई आकस्मिक घटना नहीं बल्कि सत्ता के अतिकेंद्रीकरण, निरंकुशता, व्यक्ति-पूजा और चाटुकारिता की निरंतर बढ़ती गई प्रवृत्ति का ही परिणाम थी. आज फिर वैसा ही नज़ारा दिख रहा है. सारे अहम फ़ैसले संसदीय दल तो क्या, केंद्रीय मंत्रिपरिषद की भी आम राय से नहीं किए जाते, सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रधानमंत्री कार्यालय और प्रधानमंत्री की चलती है.
मीडिया बोल की 21वीं कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश पत्रकारों पर बढ़ते हमले पर अधिवक्ता व मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और हिंदुस्तान टाइम्स के राजनीतिक संपादक विनोद शर्मा से चर्चा कर रहे हैं.
सीडी मामले को मंत्री ने बताया चरित्रहनन का प्रयास, एफआईआर में नहीं है विनोद वर्मा का नाम, अदालत में नहीं पेश हुई कोई सीडी, पत्रकारों ने पुलिस के दावों पर उठाए सवाल.