जीवन भर आर्थिक चुनौतियों से जूझने के बावजूद बालकृष्ण शर्मा के मन में इसे लेकर कोई ग्रंथि नहीं थी. कोई उनसे भविष्य के लिए कुछ बचाकर रखने की बात करता तो कहते, मेरा शरीर भिक्षा के अन्न से पोषित है इसलिए मुझे संग्रह करने का कोई अधिकार नहीं है.
यह बात बिल्कुल दो और दो चार जैसी साफ है कि कांग्रेस महाधिवेशन के मंच से जो भी बोला जा रहा था वो महज़ राजनीतिक भाषणबाज़ी थी.