घटना बीते 21 मई की शाम उत्तर प्रदेश उन्नाव ज़िले के बांगरमऊ कोतवाली क्षेत्र में हुई. सब्ज़ी विक्रेता फैसल हुसैन को पुलिस कोरोना कर्फ्यू के उल्लंघन के आरोप में हिरासत में लिया था. मृतक के परिजन का आरोप है प्रभारी निरीक्षक के सामने फैसल को पीट-पीट कर मार डाला गया.
भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के कुल मामलों की संख्या बढ़कर 26,289,290 हो गई है और जान गंवाने वालों का आंकड़ा 295,525 हो गया है. विश्व में संक्रमण के 16.61 करोड़ से ज़्यादा मामले सामने आ चुके हैं, जबकि 34.43 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई है.
घटना शुक्रवार शाम उत्तर प्रदेश उन्नाव ज़िले के बांगरमऊ कोतवाली क्षेत्र में हुई. मृतक की पहचान 17 वर्षीय फैसल हुसैन के रूप में हुई. इस संबंध में दो आरोपी कॉन्स्टेबलों को निलंबित करने के अलावा एक होमगार्ड को सेवा से मुक्त कर दिया गया है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक रिपोर्ट में कहा कि प्रारंभिक अनुमान के अनुसार 2020 में कोविड-19 से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कम से कम 30 लाख लोगों की मौत हुई, जो देशों द्वारा बताई गई आधिकारिक आंकड़े से लगभग दोगुनी अधिक है.
गंगा में बहे शवों को देखकर व्यथित हुई गुजराती कवियत्री पारुल खक्कर ने अपने दुख को चौदह पंक्तियों की की कविता की शक्ल दी, जिसे लेखकों के साथ-साथ आमजनों ने भी पसंद किया. हालांकि इसके बाद मूल रूप से गैऱ राजनीतिक पारुल सत्तारूढ़ भाजपा की ट्रोल आर्मी के निशाने गईं.
नौ जनवरी 1927 को उत्तराखंड के टिहरी ज़िले में जन्मे सुंदरलाल बहुगुणा को चिपको आंदोलन का प्रणेता माना जाता है. उन्होंने 70 के दशक में गौरा देवी तथा कई अन्य लोगों के साथ मिलकर जंगल बचाने के लिए चिपको आंदोलन की शुरुआत की थी. पद्मविभूषण तथा कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित बहुगुणा ने टिहरी बांध निर्माण का भी बढ़-चढ़ कर विरोध किया और 84 दिन लंबा अनशन भी रखा था.
भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले बढ़कर 26,031,991 हो गए हैं और अब तक 291,331 लोगों की जान जा चुकी है. विश्व में संक्रमण के 16.55 करोड़ से ज़्यादा हो गए हैं और 34.30 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई है.
‘तहलका’ पत्रिका के पूर्व प्रधान संपादक पर 2013 में गोवा के एक होटल की लिफ्ट में महिला सहयोगी का यौन उत्पीड़न करने का आरोप था. अदालत के फैसले के बाद अभियोजन पक्ष ने कहा कि वह फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देंगे. बरी किए जाने के बाद तेजपाल ने कहा कि पिछले साढ़े सात साल उनके परिवार के लिए घाव देने वाले रहे हैं, क्योंकि उन्हें उन पर लगाए गए झूठे आरोपों के कारण विनाशकारी नतीजों का सामना करना
इस 11 दिन के ख़ूनी संघर्ष में ग़ाज़ा पट्टी में बड़े पैमाने पर बर्बादी हुई, इज़रायल के अधिकांश हिस्सों में जीवन थम गया था और दोनों तरफ के 200 से अधिक लोगों की जानें गईं. 19 मई तक इस संघर्ष में 208 फ़लस्तीनियों की मौत हो चुकी है, जिनमें क़रीब 60 बच्चे शामिल हैं. वहीं इज़रायल में भी दो बच्चों सहित 12 लोगों की जान गई है.
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने लोगों से टीकाकरण में राज्य सरकार का साथ देने और मुख्यमंत्री राहत कोष या असम आरोग्य निधि में पैसा दान करने की अपील की. हालांकि उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि राज्य में वित्तीय संकट में नहीं है और उसके पास अपनी आबादी के टीकाकरण के लिए पर्याप्त बजट है.
116 पूर्व नौकरशाहों ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय और वैज्ञानिकों की चेतावनी के बावजूद पहली और दूसरी लहर के बीच मिले समय का इस्तेमाल अहम संसाधन जुटाने में नहीं किया गया. इससे भी अधिक अक्षम्य है कि टीकों का पर्याप्त भंडार जमा करने की पूर्व में योजना नहीं बनाई गई जबकि भारत दुनिया के अहम टीका आपूर्तिकर्ताओं में एक है.
मामला सागर ज़िले के रहली क़स्बे का है, जहां कोरोना कर्फ्यू के दौरान सब्ज़ी लेने जा रही एक महिला के मास्क न पहनने पर कथित रूप से कुछ पुलिसकर्मियों ने उन्हें सड़क पर पीटा और बाल पकड़कर घसीटा. घटना का वीडियो वायरल होने के बाद एक महिला आरक्षक सहित दो पुलिसकर्मियों को निलंबित किया गया है.
बॉम्बे हाईकोर्ट एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें 75 साल से अधिक उम्र के लोगों या टीकाकरण केंद्र जाने में अक्षम लोगों को घर में जाकर टीका लगाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है. अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार के अधिकारियों ने हमें निराश किया है. आपके अधिकारी असंवेदनशील हैं. बुज़ुर्गों को टीकाकरण केंद्रों की ओर जाने के बजाय आपको उन तक पहुंचना चाहिए.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में प्रधानमंत्री ने न तो यह पूछा कि राज्य कोविड के हालात से किस तरह निपट रहा है और न ही उन्होंने टीकों तथा ऑक्सीजन के भंडार के बारे में पूछा. उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि केंद्र सरकार के पास महामारी से निपटने की कोई उचित योजना नहीं है.
इससे पहले पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की ही दो अन्य पीठों ने लिव-इन रिलेशनशिप के ख़िलाफ़ फैसला दिया था और प्रेमी जोड़े को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि इस तरह के संबंध सामाजिक और नैतिक रूप से स्वीकार्य नहीं हैं.