पुलिस सुधारों को लेकर प्रकाश सिंह बनाम भारत सरकार मामले में साल 2006 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किए गए निर्देशों पर कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनीशिएटिव द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है.
कर्नाटक की बाज़ी अगर हाथ से छूटी तो इससे पैदा माहौल से राजस्थान व मध्यप्रदेश जैसे मुश्किल राज्यों में भाजपा के लिए अपनी सरकारें बचा पाना मुश्किल होगा. अगर राज्यों में सरकारें गिरने का सिलसिला आगे बढ़ा तो 2019 में मोदी अकेले दम पर हालात बेकाबू होने से नहीं बचा पाएंगे.
महाराष्ट्र सरकार की सफलता की कहानियों के संकलन वाली किताब के विमोचन पर मुख्यमंत्री ने कहा कि मुझे कभी नहीं लगा था कि मैं कभी प्रदेश का मुख्यमंत्री भी बनूंगा.
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग में कार्यरत रहे डॉ. कफ़ील अहमद ख़ान सात महीने से जेल में बंद हैं.
नफ़रत फैलाने वाले भाषण देने वाले सांसदों/विधायकों की संख्या के लिहाज से भाजपा शासित उत्तर प्रदेश शीर्ष पर है. राज्य में सांप्रदायिक हिंसा के मामलों में भी वृद्धि हुई है.
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और राज्य के मुख्यमंत्री के नाम लिखे पत्र में किसानों ने कहा है कि भूमि अधिग्रहण हमें आतंकवादी जैसा होने का एहसास कराता है, इसलिए हम भारतीय सेना की गोलियों से मरना चाहते हैं.
पिछले साल चार अप्रैल को झारखंड के बोकारो ज़िले के नर्रा गांव में शम्सुद्दीन अंसारी को भीड़ ने पीट कर मार डाला था.
उच्चतम न्यायालय ने कहा, 'मीडिया रिपोर्टिंग पीड़ित का नाम लिए बगैर भी की जा सकती है. भले ही पीड़ित नाबालिग या विक्षिप्त हो तो भी उसकी पहचान का खुलासा नहीं करना चाहिए.'
बांगरमऊ, सफीपुर, बीघापुर समेत अन्य इलाकों में निकाले गए जुलूस में लोगों ने अपने हाथों में तख्तियां ले रखी थीं, जिसमें लिखा था, ‘हमारा विधायक निर्दोष है.’
अमिताभ कांत ने कहा कि देश में शिक्षा और स्वास्थ्य के हाल बेहाल हैं. यही वे क्षेत्र हैं जिनमें भारत पिछड़ रहा है. पांचवीं कक्षा का छात्र दूसरी कक्षा के जोड़-घटाव नहीं कर पाता है. शिशु मृत्यु दर बहुत ज़्यादा है.
भीमा-कोरेगांव हिंसा के दौरान दलित युवती के घर में आग लगा दी गई थी. परिजनों के अनुसार, इसमें शामिल लोग बयान वापस लेने के लिए उस पर दबाव डाल रहे थे, इस कारण उसने आत्महत्या कर ली.
आरटीआई कार्यकर्ता ने सूचना आयुक्त से शिकायत की थी कि पीएमओ और रिज़र्व बैंक ने उन्हें सूचना उपलब्ध नहीं कराई.
विकास के दावों के बीच भारत के अनुभव और ज़मीनी सच्चाई बता रही है कि समाज और सरकारें बच्चों का संरक्षण सुनिश्चित कर पाने में तो नाकाम हैं ही आगे भी इनके नाकाम रहने की आशंका है.
वामपंथी दल आज़ादी के बाद विकसित अपनी वह छवि नहीं बचा पाए हैं, जिसमें उन्हें सत्ता का सबसे प्रतिबद्ध वैचारिक प्रतिपक्ष माना जाता था. वे परिस्थितियों के नाम पर कभी इस तो कभी उस बड़ी पार्टी की पालकी के कहार की भूमिका में दिखने लगे.
दिल्ली उच्च न्यायालय ने पूछा कि क्या उस नतीजे के बारे में सोचा गया जो पीड़िता को भुगतना पड़ सकता है? बलात्कार और हत्या की सजा एक जैसी हो जाने पर कितने अपराधी पीड़ितों को ज़िंदा छोड़ेंगे?