नरेंद्र मोदी स्टेडियम: आज़ादी के नायकों की जगह लेते ‘नए इंडिया’ के नेता

मोटेरा स्टेडियम का नाम बदलना दुनिया के इतिहास में- ख़ासकर उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष कर आज़ाद हुए मुल्कों में, ऐसा पहला उदाहरण है, जहां किसी स्वाधीनता सेनानी का नाम मिटाकर एक ऐसे सियासतदां का नाम लगाया गया हो, जिसका उसमें कोई भी योगदान नहीं रहा.

गुजरात: स्वतंत्र मीडिया फोटोग्राफरों को भारत-इंग्लैंड टेस्ट मैच की कवरेज से रोका गया

इस फैसले का विरोध करते हुए अंतरराष्ट्रीय एजेंसी एसोसिएट प्रेस ने इस दौरे की कवरेज न करने का निर्णय लिया है. एजेंसी ने कहा कि आधे से भी कम दर्शकों को प्रवेश की अनुमति देने के बावजूद स्वतंत्र मीडिया के एक या दो फोटोग्राफरों को प्रवेश की अनुमति न देते हुए कहा गया कि आयोजकों द्वारा दी तस्वीरों का इस्तेमाल करें.

गुजरात: नरेंद्र मोदी के नाम हुआ मोटेरा स्टेडियम, विपक्ष ने बताया सरदार पटेल का अपमान

गुजरात स्थित दुनिया के सबसे बड़े और अत्याधिक मोटेरा क्रिकेट स्टेडियम का नाम सरदार पटेल के बजाय नरेंद्र मोदी स्टेडियम रख दिया गया है. इसमें एक लाख 32 हज़ार दर्शक बैठ सकते हैं. करीब 63 एकड़ से अधिक क्षेत्र में फैले इस स्टेडियम पर 800 करोड़ रुपये ख़र्च किए गए हैं.

केंद्र सरकार ने सरदार पटेल के नाम से राष्ट्रीय एकता पुरस्कार की शुरुआत की

देश की एकता-अखंडता में महत्वपूर्ण योगदान देने वालों को मिलेगा सरदार पटेल राष्ट्रीय एकता पुरस्कार. सम्मान की घोषणा सरदार पटेल की जयंती 31 अक्टूबर को की जाएगी.

तेलंगाना मुक्ति दिवस को भाजपा सांप्रदायिक रंग क्यों दे रही है?

17 सितंबर 1948 को भारतीय संघ में हैदराबाद रियासत का विलय हुआ था, जिसका एक बड़ा हिस्सा तेलंगाना है. इस विलय को अलग-अलग विचारधाराओं के लोग अलग नज़रिये से देखते हैं और उसकी व्याख्या करते हैं. भाजपा अपने सांप्रदायिक एजेंडे के तहत इसे मुसलमान शासक से हिंदू आबादी को मिली मुक्ति के रूप में चित्रित कर रही है.

न सॉफ्ट हिंदुत्व और न ही सॉफ्ट सेकुलरिज़्म कांग्रेस को उबार सकते हैं

आज कांग्रेस के सामने चुनौती पार्टी का कायाकल्प ऐसे दल के तौर पर करने की है, जो अपने पुराने वैभव और साम्राज्य के बिखर जाने की टीस से बाहर निकलकर यह कबूल करे कि अब उसके पास खोने के लिए कुछ नहीं है और बचाव की मुद्रा से बाहर निकलकर आक्रामक अंदाज़ में खेलना शुरू करे.

क्या देश की राजनीति हमेशा ऐसी ही मूल्यहीनता और लूट-खसोट की पर्याय रही है?

देश में अरबपतियों की तेज़ी से बढ़ती संख्या के बीच आप रोते रहिए कि राजनीति का पतन हो गया है और अब वह समाजसेवा या देशसेवा का ज़रिया नहीं रही, इन बहुमतवालों को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता क्योंकि उन्होंने इस स्थिति को सामाजिक-सांस्कृतिक मान्यता भी दिला दी है.

जम्मू कश्मीर के लिए अलग संविधान होना संभवत: एक गलती थी: अजीत डोभाल

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने यह टिप्पणी ऐसे समय की है जब सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 35-ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है. इसके तहत जम्मू कश्मीर के स्थायी निवासियों को ख़ास अधिकार और कुछ विशेषाधिकार दिए गए हैं.