सांप्रदायिकता को ख़ारिज किए बिना टैगोर या नेताजी के उत्तराधिकारी नहीं बन सकते: अमर्त्य सेन

नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने कहा कि रबींद्रनाथ टैगोर, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, ईश्वर चंद्र विद्यासागर और स्वामी विवेकानंद, सभी ने संयुक्त बंगाली संस्कृति की चाहत और पैरवी की थी और उनके सामाजिक लक्ष्य में एक समुदाय को दूसरे समुदाय के ख़िलाफ़ भड़काने की कोई जगह नहीं है.

जेएनयू की एक सड़क का नाम ‘सावरकर मार्ग’ किया गया, छात्र संघ ने बताया शर्मनाक

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ की अध्यक्ष ओईशी घोष ने कहा कि यह जेएनयू की विरासत के लिए शर्मनाक है कि इस विश्वविद्यालय में इस आदमी का नाम डाल दिया गया है.

भगत सिंह को गांधी या नेहरू का विकल्प बताना भगत सिंह के साथ अन्याय करना है

ऐसा लगता है कि भगत सिंह के प्रति श्रद्धा वास्तव में गांधी-नेहरू से घृणा का दूसरा नाम है. जिनके वैचारिक पूर्वज ख़ुद को बचाते हुए अपने अनुयाइयों को भगत सिंह से दूर रहने की सलाह देते हुए दिन गुज़ारते रहे, उन्होंने अपनी कायर हिंसा को उचित ठहराने के लिए आज भगत सिंह को एक ढाल बना लिया है.

दिल्ली विश्वविद्यालय में एबीवीपी ने बोस और भगत सिंह के साथ लगाई सावरकर की मूर्ति, विवाद

दिल्ली विश्वविद्यालय के अन्य छात्र संगठन एनएसयूआई और आइसा ने विरोध करते हुए कहा है कि सावरकर को नेताजी सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह के समकक्ष नहीं रखा जा सकता. उन्होंने 24 घंटों के भीतर मूर्तियां नहीं हटाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू करने की धमकी दी.

गांधी की हत्या से संबंधित रिकॉर्ड तक सहज पहुंच सुनिश्चित हो: सूचना आयुक्त

एक आरटीआई आवेदन पर सूचना आयुक्त ने कहा कि राष्ट्रीय अभिलेखागार की वेबसाइट पर महात्मा गांधी से जुड़े दस्तावेज़ आसानी से मिलने मुश्किल हैं.

क्यों कुछ लोग मानते हैं कि अयोध्या में रहने वाले गुमनामी बाबा ही सुभाष चंद्र बोस थे

असाधारण जीवन की तरह असाधारण मृत्यु ने नेताजी के इर्द-गिर्द रहस्यों का जाल-सा बुन दिया है. दुखद यह है कि जांच आयोगों के भंवरजाल में नेताजी किसी जासूसी कथा के नायक बन गए हैं.

‘सेंसर बोर्ड कॉरपोरेट की फिल्म तुरंत पास करता है पर छोटे बजट की फिल्मों पर अंकुश लगाता है’

‘राजनीति की तरह ही फिल्म जगत में भी कुछ परिवारों का कब्ज़ा है. दादाजी फिल्म बनाते थे, उनके बेटे बनाते थे. हम जैसे बाहर से आए हुए लोगों को दिक्कत होती है.’