निराला ने वीणावादिनी से 'नव गति, नव लय, ताल-छंद नव, नवल कंठ' मांगे थे, लेकिन आज जिन पैरों में नई गति है, उन्हें बेड़ियों से बांध दिया गया है. कंठ पर ताला है और नएपन की जगह कारागार है. जब मेरा स्वर नहीं तो क्या मैं सरकारी कंठ से प्रार्थना करूं? क्या यह देवी का अपमान नहीं?
जयंती विशेष: हिंदी के लोग अब आम तौर पर लेखक और पत्रकार पंडित बनारसीदास चतुर्वेदी को न याद करते हैं, न ही उनकी पत्रिका ‘विशाल भारत’ को. यहां तक कि उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर भी उन्हें याद नहीं किया जाता.
आज उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव कवर करने के क्रम में उन्नाव आया हूं. उन्नाव रेलवे स्टेशन के पास चौराहे पर निराला की प्रतिमा लगी है. इसका भी एक इतिहास है जो ज़िले की राजनीति की झलक दिखाता है.