नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पारित करने वाला पश्चिम बंगाल बना चौथा राज्य

पश्चिम बंगाल विधानसभा में पारित प्रस्ताव में केंद्र सरकार से इस क़ानून को रद्द करने के साथ एनआरसी को क्रियान्वित करने और एनपीआर को अपडेट करने की योजनाओं को निरस्त करने की भी अपील की गई है. इससे पहले केरल, पंजाब और राजस्थान में इस विवादास्पद क़ानून के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पारित किया जा चुका है.

Kolkata: West Bengal Chief Minister Mamata Banerjee shows a document while addressing TMC Chhatra Parshad (TMC students wing) students during their protest dharma against CAA, NPR and NRC in Kolkata, Wednesday, Jan. 15, 2020. (PTI Photo/Swapan Mahapatra) (PTI1_15_2020_000215B)
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (फोटो: पीटीआई)

पश्चिम बंगाल विधानसभा में पारित प्रस्ताव में केंद्र सरकार से इस क़ानून को रद्द करने के साथ एनआरसी को क्रियान्वित करने और एनपीआर को अपडेट करने की योजनाओं को निरस्त करने की भी अपील की गई है. इससे पहले केरल, पंजाब और राजस्थान में इस विवादास्पद क़ानून के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पारित किया जा चुका है.

Kolkata: West Bengal Chief Minister Mamata Banerjee shows a document while addressing TMC Chhatra Parshad (TMC students wing) students during their protest dharma against CAA, NPR and NRC in Kolkata, Wednesday, Jan. 15, 2020. (PTI Photo/Swapan Mahapatra)  (PTI1_15_2020_000215B)
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (फोटो: पीटीआई)

कोलकाताः पश्चिम बंगाल विधानसभा में सोमवार को नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएए) के विरोध में प्रस्ताव पारित किया गया. इससे पहले केरल, पंजाब और राजस्थान विधानसभाओं में भी इसी तरह का प्रस्ताव पारित हो चुका है.

संसदीय मामलों के मंत्री पार्थ चटर्जी ने विधानसभा में प्रस्ताव पेश किया. प्रस्ताव में केंद्र सरकार से इस संशोधित कानून को रद्द करने के साथ राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को क्रियान्वित करने और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को अपडेट करने की योजनाओं को निरस्त करने की भी अपील की.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विधानसभा में कहा, ‘नागरिकता संशोधन कानून जनविरोधी है और इस कानून को तुरंत निरस्त किया जाना चाहिए.’ बनर्जी ने केंद्र सरकार को चुनौती भी दी कि वह उनकी सरकार को बर्खास्त करके दिखाए.

उन्होंने सीएए विरोधी प्रस्ताव पर अपने संबोधन में कहा, ‘दिल्ली में हुई एनपीआर बैठक में शामिल नहीं होने का बंगाल में दम था. अगर भाजपा चाहती है तो वह मेरी सरकार को बर्खास्त कर सकती है.’

बनर्जी ने कहा, ‘देश को बचाने के लिए मतभेदों को दूर रख एक साथ लड़ने का समय आ गया है.’

इस महीने की शुरुआत में कोलकाता में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी बैठक पर विपक्ष की आलोचना पर बनर्जी ने कहा, ‘वह प्रोटोकॉल के तहत हुई बैठक थी. मैंने प्रोटोकॉल के अनुरूप प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की.’

बनर्जी ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ बैठक पर हुए विरोध पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वह अकेली ऐसी नेता थीं, जिसने प्रधानमंत्री से मुलाकात की और नागरिकता संशोधन कानून को वापस लेने के लिए उन्हें दोबारा सोचने को कहा.

मालूम हो कि पश्चिम बंगाल सरकार सीएए, एनपीआर और एनआरसी को लेकर हमेशा मुखर रही है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इनके विरोध में कई रैलियां कर चुकी हैं और जोर देकर कहा है कि नागरिकता कानून और एनपीआर पश्चिम बंगाल में लागू नहीं होगा.

बता दें कि इससे पहले राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया था.

राजस्थान सरकार ने प्रस्ताव में कहा था, ‘संसद में हाल ही में पारित किए गए नागरिकता संशोधन कानून का उद्देश्य धर्म के आधार पर अवैध प्रवासियों को अलग-थलग करना है. धर्म के आधार पर इस तरह का भेदभाव संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष विचारों के अनुरूप नहीं है और यह स्पष्ट रूप से धारा 14 का उल्लंघन है.’

इस प्रस्ताव में कहा गया, ‘देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि एक ऐसा कानून पारित हुआ, जो धार्मिक आधार पर लोगों को बांटता है. यही वजह है कि देशभर में नागरिकता कानून को लेकर गुस्सा और रोष है और इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.’

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ सबसे पहले केरल राज्य ने विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया था. साथ ही केरल सरकार ने इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.

नागरिकता संशोधन कानून और अन्य नियमों को चुनौती देते हुए केरल ने कहा था, ‘यह कानून अनुच्छेद 14, 21 और 25 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है और यह कानून अनुचित और तर्कहीन है.’

इसके बाद पंजाब में सत्तारूढ़ कांग्रेस ने भी नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ सदन में पारित किया. इस प्रस्ताव में नागरिकता संशोधन कानून को असंवैधानिक बताते हुए कांग्रेस ने मांग की कि इस कानून को खत्‍म किया जाए.

मालूम हो कि नागरिकता संशोधन कानून में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के कारण भारत आए गैर-मुस्लिम समुदायों- हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है.

इस कानून को ‘असंवैधानिक’ और ‘समानता के अधिकार का उल्लंघन करने वाला’ करार देते हुए कई लोगों ने इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है.