अशोक देसाई साल 1996 से 1998 तक देश के अटॉर्नी जनरल रहे. उन्हें समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर रखने, नर्मदा बांध प्रकरण और असम में ग़ैरक़ानूनी प्रवासी क़ानून जैसे कई महत्वपूर्ण मामलों के लिए जाना जाता है.
नई दिल्लीः देश के पूर्व अटॉर्नी जनरल और वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक देसाई का निधन बीते सोमवार को हो गया. वह 77 साल के थे.
वह आजादी के बाद के देश के अग्रणी वकीलों में से एक रहे हैं.
देसाई नौ जुलाई 1996 से 1998 तक देश के अटॉर्नी जनरल रहे. इससे पहले वह 18 दिसंबर 1989 से दिसंबर 1990 तक सॉलिसीटर जनरल थे.
देसाई 2001 में पद्म भूषण और लॉ लुमिनरी अवॉर्ड्स से सम्मानित हो चुके हैं.
वह समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर रखने, नर्मदा बांध प्रकरण और असम में गैरकानूनी प्रवासी (अधिकरण द्वारा निर्धारण) कानून जैसे कई महत्वपूर्ण मामलों के जाने जाते हैं.
उन्होंने उच्च पदों पर व्याप्त भ्रष्टाचार और इस तरह के गंभीर आरोपों में घिरे लोकसेवकों के खिलाफ जांच को लेकर बहुचर्चित विनीत नारायण प्रकरण में अहम भूमिका निभाई थी.
पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज से स्नातक कर चुके देसाई ने मुंबई के गवर्मेंट लॉ कॉलेज से कानूनी शिक्षा हासिल की थी.
उन्होंने 1956 में बॉम्बे हाईकोर्ट में वकालत शुरू की और आठ अगस्त, 1977 को वह वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किए गए थे.
साल 1972 में मराठी के लोकप्रिय नाटककार विजय तेंदुलकर के नाटक ‘सखाराम बाइंडर’ पर अश्लीलता के आरोप लगने के बाद प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा, उस समय देसाई ने उनकी पैरवी की थी.
उन्होंने महाराष्ट्र में सेंसरशिप कानूनों को समाप्त करने की भी लड़ाई लड़ी.
वह गैरसरकारी संगठन ‘कमेटी फॉर ज्यूडीशियल अकाउंटेबिलटी’ के भी सदस्य थे.
इस समिति ने भ्रष्टाचार के आरोप में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश वी. रामास्वामी को पद से हटाने के लिए अभियान चलाया था.
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख शरद पवार, कांग्रेस नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, वकील गौरव भाटिया और सुप्रीम कोर्ट के वकील करुणा नंदी सहित कई लोगों ने देसाई को श्रद्धांजलि दी है.
अधिवक्ता प्रशात भूषण ने भी देसाई के निधन पर शोक जताते हुए कहा कि उन्होंने अपने जीवनकाल में हमेशा ही उच्च मानदंडों का पालन किया .
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)