आत्मसमर्पण से पहले बोले गौतम नवलखा- निर्दोष साबित होने से पहले आरोपी को दोषी मानना नया चलन

भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा ने यूएपीए कानून की आलोचना करते हुए कहा कि ऐसे कानून सामान्य न्याय की अवधारणा को बर्बाद कर देते हैं.

/
गौतम नवलखा. (फोटो साभार: विकिपीडिया)

भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा ने यूएपीए कानून की आलोचना करते हुए कहा कि ऐसे कानून सामान्य न्याय की अवधारणा को बर्बाद कर देते हैं.

गौतम नवलखा. (फोटो साभार: विकिपीडिया)
गौतम नवलखा. (फोटो साभार: विकिपीडिया)

नई दिल्ली: मंगलवार को आत्मसमर्पण करने से पहले एक खुला खत लिखते हुए सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा ने गैरकानून गतिविधि (निवारक) अधिनियम (यूएपीए) की आलोचना की जिसके तहत पुणे पुलिस ने उन पर मामला दर्ज किया है.

पुणे पुलिस ने 1 जनवरी, 2018 को पुणे के पास भीमा कोरेगांव में हिंसा को लेकर माओवादियों से कथित संबंध और अन्य आरोपों में यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया है.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, उन्होंने लिखा, ‘ऐसे कानून सामान्य न्याय की अवधारणा को बर्बाद कर देते हैं. अब यह स्वयंसिद्ध नहीं है कि कोई व्यक्ति तब तक निर्दोष माना जाएगा जब तक वह दोषी साबित नहीं हो जाता है. वास्तव में ऐसे कानूनों के तहत, ‘एक आरोपी तब तक दोषी है जब तक कि निर्दोष साबित न हो जाए.’

उन्होंने सबूतों को इकट्ठा करने और उन्हें पेश किए जाने के तरीके की भी आलोचना की. उन्होंने कहा कि यूएपीए के बेहद सख्त प्रावधानों में ऐसी सख्त प्रक्रियाएं नहीं हैं.

उन्होंने आगे कहा, ‘इस दोहरे झटके से जेल मानक बन जाता है जबकि जमानत एक अपवाद बन जाती है.’

बता दें कि, बीते 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने गौतम नवलखा और आनंद तेलतुम्बड़े को आत्मसमर्पण करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया था.

नवलखा ने कहा कि वह नई दिल्ली में राष्ट्रीय जांच एजेंसी में आत्मसमर्पण करेंगे. उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के इससे पहले के आदेश का अनुपालन नहीं किया क्योंकि वह लॉकडाउन के दौरान आत्मसमर्पण करने के लिए मुंबई की यात्रा नहीं कर सकते थे.

बीते 16 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने दोनों कार्यकर्ताओं की अग्रिम जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया था और उन्हें आत्मसमर्पण के लिए तीन सप्ताह का समय दिया था. दोनों कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा तब खटखटाया था जब अग्रिम जमानत के लिए उनकी याचिकाओं को बॉम्बे हाईकोर्ट की एकल पीठ ने खारिज कर दिया था.

हालांकि, उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया और कोरोना वायरस के हालात को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट से आत्मसमर्पण के लिए और अधिक समय की मांग की थी.