लिपूलेख दर्रे से गुजरने वाली सड़क के उद्घाटन पर नेपाल ने जताई आपत्ति, भारत ने खारिज किया

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को लिपूलेख दर्रे को उत्तराखंड के धारचूला से जोड़ने वाली रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण 80 किलोमीटर लंबी सर्कुलर लिंक रोड का उद्घाटन किया था.

नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फोटो: पीटीआई)

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को लिपूलेख दर्रे को उत्तराखंड के धारचूला से जोड़ने वाली रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण 80 किलोमीटर लंबी सर्कुलर लिंक रोड का उद्घाटन किया था.

नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फोटो: पीटीआई)
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फोटो: पीटीआई)

काठमांडू: नेपाल ने लिपूलेख दर्रे को उत्तराखंड के धारचूला से जोड़ने वाली रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण सर्कुलर लिंक रोड का भारत द्वारा उद्घाटन किए जाने पर शनिवार को आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा कि यह ‘एकतरफा कदम’ दोनों देशों के बीच सीमा मुद्दों को सुलझाने के लिए बनी सहमति के खिलाफ है.

गौरतलब है कि रणनीतिक और सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण तथा चीन की सीमा से सटे 17,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित लिपूलेख दर्रा इस सड़क के माध्यम से अब उत्तराखंड के धारचूला से जुड़ जाएगा.

नेपाल के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि सरकार को ‘बहुत खेद के साथ सूचना प्राप्त’ हुई है कि लिपूलेख दर्रे को जोड़ने वाली सड़क का उद्घाटन किया गया है. नेपाल इस दर्रे को अपनी सीमा का हिस्सा मानता है.

मंत्रालय ने कहा, ‘नेपाल सरकार हमेशा कहती रही है कि 1816 की सुगौली की संधि के मुताबिक काली (महाकाली) नदी के पूर्व में स्थित सारी जमीन, लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपूलेख नेपाल के हिस्से मे जाएगी.’

उसने कहा, ‘नेपाल सरकार ने इसे अतीत में भी कई बार दोहराया है और हाल ही में 20 नवंबर, 2019 को भारत सरकार द्वारा जारी नए राजनीतिक नक्शे के जवाब में उसे लिखे कूटनीतिक नोट के जरिए भी कहा था.’

हालांकि, भारत ने शनिवार को नेपाल की आपत्ति को खारिज करते हुए कहा कि उत्तराखंड में धारचूला को लिपुलेख दर्रे से जोड़ते हुए जो नई सड़क बनायी गयी है वह पूरी तरह उसके क्षेत्र में है.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा, ‘उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में हाल में उद्घाटन किया गया मार्गखंड पूरी तरह भारत के क्षेत्र में है. यह सड़क कैलाश मानसरोवर यात्रा के तीर्थयात्रियों द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले वर्तमान मार्ग पर ही है. ’

उन्होंने कहा, ‘वर्तमान परियोजना के अंतर्गत उसी रास्ते को तीर्थयात्रियों, स्थानीय लोगों और व्यापारियों की सुविधा के लिए आवागमन लायक बनाया गया है. भारत और नेपाल ने सभी सीमा मामलों से निपटने के लिए व्यवस्था स्थापित कर रखी है.’

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को 80 किलोमीटर लंबी इस नई सड़क का उद्घाटन किया था. आशा है कि इस सड़क के चालू होने से तिब्बत में कैलाश-मानसरोवर जाने वाले तीर्थयात्रियों को सुविधा होगी. यह तीर्थ लिपूलेख दर्रे से करीब 90 किलोमीटर की दूरी पर है.

राजनाथ सिंह ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये पिथौरागढ़ से वाहनों के पहले काफिले को रवाना किया. उन्होंने कहा कि कैलाश-मानसरोवर जाने वाले यात्री अब तीन सप्ताह के स्थान पर एक सप्ताह मे अपनी यात्रा पूरी कर सकेंगे.

परियोजना ‘हीरक’ के मुख्य अभियंता विमल गोस्वामी ने कल बताया था कि सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इस मार्ग के बन जाने से तवाघाट के पास मांगती शिविर से शुरू होकर व्यास घाटी में गुंजी और सीमा पर भारतीय भूभाग में स्थित भारतीय सुरक्षा चौकियों तक के 80 किलोमीटर से अधिक के दुर्गम हिमालयी क्षेत्र तक पहुंचना सुलभ हो गया है.

गोस्वामी ने बताया कि बूंदी से आगे तक का 51 किलोमीटर लंबा और तवाघाट से लेकर लखनपुर तक का 23 किलोमीटर का हिस्सा बहुत पहले ही निर्मित हो चुका था लेकिन लखनपुर और बूंदी के बीच का हिस्सा बहुत कठिन था और उस चुनौती को पूरा करने में काफी समय लग गया.

इस संपर्क मार्ग के उद्घाटन पर आपत्ति जताते हुए नेपाल के विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘यह एकतरफा कदम दोनों देशों के बीच प्रधानमंत्रियों के स्तर पर सीमा मुद्दों को सुलझाने के लिए बनी सहमति के खिलाफ है. सहमति बनी थी कि सीमा मुद्दों को बातचीत के जरिए सुलझाया जाएगा.’

लिपूलेख नेपाल-भारत के बीच कालापानी के पास एकदम पश्चिमी बिंदू है.

भारत और नेपाल दोनों ही दावा करते हैं कि कालापानी उनके देश का अभिन्न अंग है. भारत का कहना है कि वह उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का हिस्सा है जबकि नेपाल उसे धारचूला जिले का हिस्सा बताता है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)