महाराष्ट्र: मुंबई पुलिस ने सरकार की आलोचना को अपराध घोषित किया

25 मई से आठ जून तक प्रभावी मुंबई पुलिस आदेश में कोविड-19 वायरस के प्रसार को रोकने के लिए सरकारी अधिकारियों और उनके कार्यों के प्रति अविश्वास के लिए उकसाने वाले किसी भी व्यक्ति को प्रतिबंधित किया गया है, जिससे मानव स्वास्थ्य या सुरक्षा को खतरा होता है या सार्वजनिक शांति भंग होती है.

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महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे. (फोटो: ट्विटर)

25 मई से आठ जून तक प्रभावी मुंबई पुलिस आदेश में कोविड-19 वायरस के प्रसार को रोकने के लिए सरकारी अधिकारियों और उनके कार्यों के प्रति अविश्वास के लिए उकसाने वाले किसी भी व्यक्ति को प्रतिबंधित किया गया है, जिससे मानव स्वास्थ्य या सुरक्षा को खतरा होता है या सार्वजनिक शांति भंग होती है.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे. (फोटो: ट्विटर)
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे. (फोटो: ट्विटर)

मुंबई: मुंबई पुलिस आयुक्त ने 23 मई को एक आदेश जारी कर सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर नियमन के साथ महाराष्ट्र सरकार के कामकाज के खिलाफ बोलने वाले व्यक्तियों पर भी पूरी तरह से रोक लगाने का आह्वान किया है.

रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई पुलिस उपायुक्त (ऑपरेशंस) प्रणय अशोक के हस्ताक्षर वाले इस आदेश में विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फेक न्यूज, गलत जानकारियों और अन्य आपत्तिजनक सामग्रियों सहित कई अन्य ऐसे मुद्दे बताए गए हैं जिनका सामना राज्य सरकार कर रही है.

आईपीसी की धारा 144 के तहत जारी आदेश में सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर प्रतिबंध के साथ कोविड-19 महामारी के दौरान खासतौर पर राज्य सरकार की कार्यप्रणाली की आलोचना करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का निर्देश दिया गया है.

पुलिस का दावा है कि कोविड-19 महामारी के दौरान राज्य में पैदा किए गए विद्वेष के माहौल के कारण आदेश जारी किया गया है.

25 मई से आठ जून तक प्रभावी आदेश में कोविड-19 वायरस के प्रसार को रोकने के लिए सरकारी अधिकारियों और उनके कार्यों के प्रति अविश्वास के लिए उकसाने वाले किसी भी व्यक्ति को प्रतिबंधित किया गया है, जिससे मानव स्वास्थ्य या सुरक्षा को खतरा होता है या सार्वजनिक शांति भंग होती है.

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आदेश में कहा गया है कि इस प्रतिबंधात्मक आदेश का उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति पर भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत मुकदमा चलाया जाएगा.

बता दें कि मुंबई में 1992-93 की सांप्रदायिक हिंसा के बाद से लगातार प्रतिबंधात्मक आदेश जारी होते रहे हैं. अधिकतर मामलों में शहर में खतरा बताते हुए आदेश को उचित ठहराया जाता है. इन आदेशों में चार या पांच से अधिक लोगों को समूह में इकट्ठा होने से मना किया जाता है.

इस समय शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में चल रही शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन सरकार पर विपक्षी पार्टी भाजपा चौतरफा हमला कर रही है. महाराष्ट्र में कोविड-19 के बढ़ते मामलों को लेकर विपक्ष, खासकर सोशल मीडिया पर राज्य सरकार के खिलाफ हमलावर है.

इस दौरान विपक्ष न केवल राज्य सरकार की आलोचना कर रहा है बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के इस्तीफे साथ सरकार को भंग करने की भी मांग कर चुके हैं. इसके साथ ही भाजपा के कई नेता राज्यपाल शासन की भी सिफारिश कर चुके हैं.

मुंबई पुलिस के आदेश पर भाजपा की मुंबई इकाई के प्रवक्ता सुरेश नखुआ ने कहा कि आपातकाल तो कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के खून में है.

डीसीपी अशोक ने द वायर से कहा कि सबसे पहले 10 अप्रैल को एक आदेश जारी किया गया था और तब से उसमें चार बार संशोधन किया जा चुका है.

पहला ऑर्डर जारी होने के बाद पंकज राजमचीकर ने राज्य सरकार के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी. इस पर जस्टिस आरके देशपांडे ने कहा था कि प्रथमदृष्टया ऐसा लग रहा है कि यह आदेश हर तरफ फैल रहे कोविड-19 महामारी के दौरान वास्तव में लोगों को झूठी और गलत जानकारियों से बचाने के लिए जारी किया गया है.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने मामले पर तत्काल सुनवाई से इनकार करते हुए उसे नियमित अदालत में सुनवाई के लिए टाल दिया था. बता दें कि कोविड-19 महामारी के दौरान अदालतें केवल अति आवश्यक मामलों की सुनवाई कर रही हैं.