श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर को देश के सबसे धनी मंदिरों में गिना जाता है. कोर्ट ने इसे लेकर साल 2011 में दिए गए केरल हाईकोर्ट के फैसले को ख़ारिज कर दिया, जिसमें उसने राज्य सरकार को मंदिर का नियंत्रण अपने हाथ में लेने को कहा था.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट का 31 जनवरी 2011 का वह आदेश सोमवार को रद्द कर दिया, जिसमें राज्य सरकार से ऐतिहासिक श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर की पूंजी और प्रबंधन का नियंत्रण लेने के लिए न्यास गठित करने को कहा गया था.
शीर्ष न्यायालय ने केरल के श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रशासन में त्रावणकोर शाही परिवार के अधिकारों को बरकरार रखा.
जस्टिस यूयू ललित की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि अंतरिम कदम के तौर पर मंदिर के मामलों के प्रबंधन वाली प्रशासनिक समिति की अध्यक्षता तिरुवनंतपुरम के जिला न्यायाधीश करेंगे.
शीर्ष अदालत ने इस मामले में उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया. इनमें से एक याचिका त्रावणकोर शाही परिवार के कानूनी प्रतिनिधियों ने दायर की थी.
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर को देश के सबसे धनी मंदिरों में गिना जाता है.
We wholeheartedly welcome Supreme Court verdict on Sree Padmanabhaswamy Temple. It re-establishes our family's connection with Lord Sree Padmanabha. The family is happy about it. We're looking forward to reading the full verdict:Adithya Varma,Travancore royal family member to ANI https://t.co/suciUDeVvD
— ANI (@ANI) July 13, 2020
त्रावणकोर शाही परिवार के सदस्य आदित्य वर्मा ने कहा, ‘हम श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं. यह हमारी परिवार का भगवान श्री पद्मनाभ के साथ संबंधों को पुनर्स्थापित करता है. परिवार इससे खुश है.’
इस भव्य मंदिर का पुनर्निर्माण 18वीं सदी में इसके मौजूदा स्वरूप में त्रावणकोर शाही परिवार ने कराया था, जिन्होंने 1947 में भारतीय संघ में विलय से पहले दक्षिणी केरल और उससे लगे तमिलनाडु के कुछ भागों पर शासन किया था.
इस पूरे मामले की प्रमुख घटनाएं इस प्रकार रहीं-
-2009: पूर्व आईपीएस अधिकारी टीपी सुंदरराजन ने केरल उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर मंदिर का नियंत्रण राज परिवार से राज्य सरकार को हस्तांतरित करने का अनुरोध किया.
-31 जनवरी 2011: उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में राज्य सरकार को मंदिर का नियंत्रण अपने हाथ में लेने को कहा, कार्यकारी अधिकारी और त्रावणकोर के पूर्व राजा ने कल्लारस (मंदिर का तहखाना) खोलने का विरोध किया.
– 02 मई 2011: त्रावणकोर के आखिरी शासक के भाई उतरादम तिरुनल मार्तंड वर्मा की याचिका सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए आई, शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के फैसले पर अंतरिम रोक लगाई. साथ ही तहखाने में रखे आभूषणों और कीमती वस्तुओं की सूची उसके द्वारा नियुक्त पर्यवेक्षकों की मौजूदगी में बनाने का निर्देश दिया.
– 8 जुलाई 2011: सुप्रीम कोर्ट ने ‘ए’ और ‘बी’ संख्या के तहखाने को अगले आदेश तक खोलने की प्रक्रिया को स्थगित किया.
– 21 जुलाई 2011: सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के जवाब पर विचार करने के बाद मिली वस्तुओं के संरक्षण और सुरक्षा के संबंध में सलाह देने के लिए विशेषज्ञ समिति का गठन किया.
न्यायालय ने कहा कि समिति इस पर राय देगी कि कल्लरा संख्या ‘बी’ को खोलने की जरूरत है या नहीं.
– 22 सितंबर 2011: सुप्रीम कोर्ट ने विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद निर्देश जारी किया.
न्यायालय ने कहा कि कल्लरा संख्या ‘बी’ को खोलने का फैसला अन्य कल्लरा को खोलने से मिली वस्तुओं के दस्तावेजीकरण, श्रेणीबद्ध करने, सुरक्षा, संरक्षण, रखरखाव आदि में होने वाली प्रगति के आधार पर लिया जाएगा.
-23 अगस्त 2012: न्यायालय ने वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रह्मण्यम को न्याय मित्र (अमाइकस क्यूरी) नियुक्त किया.
-06 दिसंबर 2013: उतरादम तिरुनल मार्तंड वर्मा का निधन हुआ, उनके वैध उत्तराधिकारी न्यायालय में उनकी ओर से मामले में शामिल हुए.
– 15 अप्रैल 2014: न्याय मित्र ने अपनी रिपोर्ट सौंपी.
– 24 अप्रैल 2014: न्यायालय ने मंदिर के प्रबंधन के लिए तिरुवनंतपुरम के जिला न्यायाधीश के नेतृत्व में प्रशासनिक समिति गठित की.
– अगस्त-सितंबर 2014: गोपाल सुब्रह्मण्यम ने उच्चतम न्यायालय को लिखकर अदालत मित्र से हटने की इच्छा जताई, बाद में इस्तीफा वापस लेकर न्यायालय की सहायता जारी रखी.
– नवंबर 2014: त्रावणकोर के शाही परिवार ने अदालत मित्र गोपाल सुब्रह्मण्यम की रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए न्यायालय में आपत्ति दर्ज की.
– 27 नवंबर 2014: न्यायालय ने अदालत मित्र की कुछ अनुशंसाओं को स्वीकार किया.
– 04 जुलाई 2017: उच्चतम न्यायालय ने जस्टिस केएसपी राधाकृष्णन को श्रीकोविल एवं अन्य संबंधी कार्यों के लिए गठित चयन समिति का अध्यक्ष बनाया.
– जुलाई 2017: न्यायालय ने कहा कि वह मंदिर की एक तिजोरी में दैवीय शक्ति लिए असाधारण खजाना होने के दावे का परीक्षण करेगा, खजाने की सुरक्षा, लेखांकन और मंदिर की मरम्मत को लेकर कई निर्देश दिए.
– जनवरी-अप्रैल 2019: मामले को जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की पीठ के समक्ष अंतिम सुनवाई के लिए भेजा गया.
– 10 अप्रैल 2019: न्यायालय ने मामले में 31 जनवरी 2011 को केरल उच्च न्यायालय के दिए आदेश को चुनौती देने की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा.
– 13 जुलाई 2020: सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर प्रशासन में त्रावणकोर राजपरिवार के अधिकार को बरकरार रखा.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)