जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने बुधवार को प्रशांत भूषण को नोटिस जारी करते हुए उनसे इस संबंध में विस्तृत जवाब देने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई पांच अगस्त को होगी. भूषण के ख़िलाफ़ साल 2009 से लंबित पड़े अवमानना के एक अन्य मामले की सुनवाई के लिए भी 24 जुलाई की तारीख़ तय की गई है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका के प्रति कथित रूप से अपमानजनक ट्वीट करने के मामले में अधिवक्ता एवं कार्यकर्ता प्रशांत भूषण खिलाफ मंगलवार को स्वत: अवमानना की कार्यवाही शुरू की.
सुप्रीम कोर्ट ने ट्विटर के खिलाफ भी अवमानना की कार्यवाही शुरू की है. भूषण की कथित अपमानजनक टिप्पणियां ट्विटर हैंडल से ही प्रसारित हुई थीं.
मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने भूषण को नोटिस जारी करते हुए उनसे विस्तृत जवाब देने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई पांच अगस्त को होगी.
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लाइव लॉ के अनुसार, जस्टिस मिश्रा ने कहा कि भूषण के ट्वीट को टाइम्स ऑफ इंडिया ने प्रकाशित भी किया था.
वहीं, ट्विटर की ओर से पेश होते हुए वरिष्ठ वकील साजन पोवय्या ने कहा कि अवमानना का मामला गलत कंपनी के खिलाफ शुरू किया गया है. उन्होंने इसके लिए सही कंपनी ट्विटर इनकॉपोरेटेड को बताया.
उन्होंने यह भी कहा कि अगर अदालत आदेश पास करेगी तो वे ट्वीट को हटा देंगे. वे प्रशांत भूषण के ट्वीट का बचाव नहीं कर रहे हैं.
इसके बाद जस्टिस मिश्रा ने पोवय्या को ट्विटर इनकॉरपोरेट की ओर से जवाब दाखिल करने की मंजूरी दे दी.
जस्टिस मिश्रा ने कहा कि यह मामला उस ट्वीट से जुड़ा है, जिसमें भूषण ने सुप्रीम कोर्ट की बर्बादी के लिए सुप्रीम कोर्ट के अंतिम चार मुख्य न्यायाधीशों (जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस जेएस खेहर) को जिम्मेदार ठहराया था.
उन्होंने कहा कि यह मामला प्रशासन की तरफ से आया था और मामले की जांच करने के बाद जरूरी प्रश्नों के लिए सुनवाई के लिए अदालत में लाया गया. अटॉर्नी जनरल और वकील प्रशांत भूषण को नोटिस जारी किया गया है.
बता दें कि प्रशांत भूषण न्यायपालिका से जुड़े मसले लगातार उठाते रहे हैं और हाल ही में उन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान दूसरे राज्यों से पलायन कर रहे कामगारों के मामले में शीर्ष अदालत के रवैये की तीखी आलोचना की थी.
भूषण ने भीमा-कोरेगांव मामले में आरोपी वरवर राव और सुधा भारद्वाज जैसे जेल में बंद नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले कार्यकर्ताओं के साथ हो रहे व्यवहार के बारे में बयान भी दिए थे.
बता दें कि 27 जून को एक ट्वीट करते हुए भूषण ने पिछले छह सालों में औपचारिक आपातकाल के बिना लोकतंत्र की तबाही के लिए सुप्रीम कोर्ट के अंतिम चार मुख्य न्यायाधीशों- जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस जेएस खेहर – की भूमिका की आलोचना की थी.
When historians in future look back at the last 6 years to see how democracy has been destroyed in India even without a formal Emergency, they will particularly mark the role of the Supreme Court in this destruction, & more particularly the role of the last 4 CJIs
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) June 27, 2020
रिपोर्ट के अनुसार, अधिकतर कानून विशेषज्ञों का मानना है कि न्यायपालिका की आलोचना करने वाले भूषण के ये ट्वीट या अन्य बयान अवमानना नहीं हैं.
कानून के जानकार गौतम भाटिया ने ट्वीट कर कहा, ‘तथाकथित याचिका को देखा, जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने कथित रूप से प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू की है. इस पर ठोस प्रतिक्रिया देने का कोई मतलब नहीं है. शीर्ष अदालत खुद को शर्मिंदा कर रही है और कहने के लिए और कुछ नहीं है.’
वहीं, दिवंगत वरिष्ठ वकील विनोद ए. बोबड़े ने अवमानना पर एक आधिकारिक एससीसी जर्नल में कहा था, ‘हम ऐसी स्थिति का सामना नहीं कर सकते, जहां न्यायाधीशों के कोर्ट के अंदर या बाहर के आचरण की आलोचना पर अदालत की दंड देने की मनमानी शक्ति से नागरिक डर के रहें.’
बता दें कि विनोद ए. बोबड़े मौजूदा सीजेआई एसए बोबड़े के भाई हैं.
इससे पहले नवंबर 2009 में शीर्ष अदालत ने भूषण को कथित तहलका पत्रिका को दिए एक साक्षात्कार में कुछ तत्कालीन और शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीशों पर कथित रूप से आरोपों के लिए अवमानना नोटिस जारी किया था.
सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर उपलब्ध रिकॉर्ड के अनुसार इस मामले को मई 2012 से अब तक नहीं सुना था. अब आठ साल बाद इस पर 24 जुलाई को सुनवाई होगी.
सुप्रीम कोर्ट की बेवसाइट के अनुसार, 2009 से लंबित मामले की भी सुनवाई जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ शुक्रवार को करेगी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)