नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर निराशा जताते हुए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पलानीस्वामी ने कहा कि राज्य में कई दशकों से दो भाषा नीति का पालन किया जा रहा है, इसमें कोई बदलाव नहीं होगा. उन्होंने इस बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दोबारा विचार करने का भी आग्रह किया.
चेन्नईः तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ई. पलानीस्वामी ने केंद्र सरकार की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को लेकर निराशा जताते हुए कहा कि वह राज्य में तीन भाषा नीति के बजाए दो भाषा नीति को ही जारी रखेंगे.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र सरकार की इस योजना को पीड़ादायक और दुखद बताते हुए पलानीस्वामी ने कहा कि प्रधानमंत्री को तीन भाषा नीति पर दोबारा विचार करना चाहिए और राज्यों को इसे लेकर उनकी खुद की नीति क्रियांवित करने की अनुमति देनी चाहिए.
एनईपी 2020 में तीन भाषा फॉर्मूले को खारिज करते हुए पलानीस्वामी ने कहा कि राज्य अपनी दो भाषा फॉर्मूले से नहीं हटेगा.
एनईपी में तीन भाषा के प्रस्ताव पर कड़ी आपत्ति जताते हुए पलानीस्वामी ने कहा कि राज्य में कई दशक से दो भाषा नीति का पालन किया जा रहा है और इसमें कोई बदलाव नहीं होगा.
मुख्यमंत्री ने यहां सचिवालय में मंत्रिमंडल की बैठक की अध्यक्षता करते हुए कहा, ‘तमिलनाडु कभी केंद्र की तीन भाषा की नीति का पालन नहीं करेगा.’
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उन्होंने कहा, ‘तमिलनाडु केंद्र सरकार की तीन भाषाई नीति को मंजूरी नहीं देगा. राज्य अपनी दो भाषा (तमिल और अंग्रेजी) नीति को जारी रखेगा.’
मालूम हो कि पलानीस्वामी का यह बयान केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के उस बयान के एक दिन बाद आया है, जिसमें निशंक ने कहा था कि केंद्र सरकार राज्यों पर कोई भाषा नहीं थोपेगी.
हालांकि, निशंक ने तमिलनाडु में तीन भाषा नीति के विरोध के बीच यह बयान दिया था. तमिलनाडु में एनईपी को लेकर हो रहे विरोध में कहा जा रहा है कि इस नीति के तहत कथित तौर पर केंद्र सरकार हिंदी और संस्कृत भाषाओं को राज्यों पर थोप रही है, जिस पर निशंक ने कहा था कि इस नीति के तहत राज्यों को भाषाएं चुनने की अनुमति दी गई है.
मुख्यमंत्री पलानीस्वामी ने साल 1965 में तमिलनाडु के छात्रों की ओर से किए गए हिंदी विरोधी आंदोलन का भी संदर्भ रखा. उस समय कांग्रेस ने हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा बनाने का प्रस्ताव रखा था.
हालांकि तीन भाषायी योजना में राज्य के ऊपर निर्भर करता है कि वो किन भाषाओं को इसमें शामिल करेगा, लेकिन तमिलनाडु इसे केंद्र की ओर से हिंदी थोपने के तीखे प्रयास के तौर पर देख रहा है.
एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली डीएमके और तमिलनाडु की अन्य विपक्षी पार्टियों ने भी एनईपी का विरोध करते हुए इसकी दोबारा समीक्षा की मांग की है.
स्टालिन ने शनिवार को कहा था कि यह नीति कथित तौर पर हिंदी और संस्कृत थोपने का प्रयास है और उन्होंने इसके खिलाफ अन्य राज्यों की पार्टियों और मुख्यमंत्रियों के साथ मिलकर लड़ने की प्रतिबद्धता जताई थी.