प्रशांत भूषण अवमानना मामला: वकील बोले- जज की उचित तरह से आलोचना अपराध नहीं अधिकार है

प्रशांत भूषण के ट्वीट्स पर अदालत की अवमानना के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया है. भूषण ने अदालत में अपने बचाव में कहा कि उनके ट्वीट न्यायाधीशों के ख़िलाफ़ उनके व्यक्तिगत स्तर पर आचरण को लेकर थे और इससे न्याय प्रशासन में बाधा उत्पन्न नहीं होती है.

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प्रशांत भूषण. (फाइल फोटो: पीटीआई)

प्रशांत भूषण के ट्वीट्स पर अदालत की अवमानना के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया है. भूषण ने अदालत में अपने बचाव में कहा कि उनके ट्वीट न्यायाधीशों के ख़िलाफ़ उनके व्यक्तिगत स्तर पर आचरण को लेकर थे और इससे न्याय प्रशासन में बाधा उत्पन्न नहीं होती है.

प्रशांत भूषण. (फाइल फोटो: पीटीआई)
प्रशांत भूषण. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने बीते बुधवार को उच्चतम न्यायालय में उन दो ट्वीट का बचाव किया, जिसे लेकर उन पर अदालत की अवमानना करने का आरोप लगाया गया है.

उन्होंने कहा कि वे ट्वीट न्यायाधीशों के खिलाफ उनके व्यक्तिगत स्तर पर आचरण को लेकर थे और उससे न्याय प्रशासन में बाधा उत्पन्न नहीं होता है.

जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया.

इस पीठ ने भूषण द्वारा कथित रूप से न्यायापालिका के खिलाफ दो अपमानजनक ट्वीट करने पर आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के साथ 22 जुलाई को कारण बताओं नोटिस जारी किया था.

पीठ ने रेखांकित किया, ‘मामले में पेश वरिष्ठ अधिवक्ता को सुना जा चुका है और बहस पूरी हो गई है.’

न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रखते हुए भूषण द्वारा अलग से दायर उस याचिका को खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने 22 जुलाई के आदेश को वापस लेने का अनुरोध किया था, जिसके तहत न्यायपालिका ने अवमानना कार्यवाही शुरू करते हुए नोटिस जारी किया गया था.

पीठ भूषण का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे के इस तर्क से सहमत नहीं हुई कि एक अलग याचिका दायर कर उस तरीके पर आपत्ति जताई गई है, जिसमें अवमानना प्रक्रिया अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल की राय लिए बिना शुरू की गई और उसे दूसरी पीठ में भेजा गया.

भूषण ने उच्चतम न्यायालय के महासचिव द्वारा कथित तौर पर असंवैधानिक और गैरकानूनी तरीके से उनके खिलाफ दायर त्रुटिपूर्ण अवमानना याचिका को खारिज करने का अनुरोध किया था, जिसमें शुरुआत में याचिका प्रशासनिक के तौर पर स्वीकार की गई और बाद में न्यायिक के तौर पर.

न्यायालय ने आदेश में कहा, ‘मामले में पेश वरिष्ठ अधिवक्ता (दवे) को सुना गया. हमें इस रिट याचिका पर सुनवाई का आधार नहीं दिखता और इसलिए इसे खारिज किया जाता है. लंबित वादकालीन आवेदन (इंटरलॉक्यूटरी एप्लीकेशन) भी खारिज माना जाए.’

दवे ने इसके बाद भूषण के खिलाफ दायर अवमानना मामले में बहस की और कहा, ‘दो ट्वीट संस्था के खिलाफ नहीं थे. वे न्यायाधीशों के खिलाफ उनकी व्यक्तिगत क्षमता के अंतर्गत निजी आचरण को लेकर थे. वे दुर्भावनापूर्ण नहीं हैं और न्याय के प्रशासन में बाधा नहीं डालते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘भूषण ने न्याय क्षेत्र के विकास में बहुत बड़ा योगदान दिया है और कम से कम निर्णयों का श्रेय उन्हें जाता है.’

दवे ने कहा कि अदालत ने 2जी, कोयला खदान आवंटन घोटाले और खनन मामले में उनके योगदान की सराहना की है.

दवे ने कहा कि यह वैसा मामला नहीं है जिसमें उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाए. आपातकाल के दौरान मूल अधिकारों के स्थगित करने के एडीएम जबलपुर के मामले का संदर्भ देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि न्यायाधीशों के खिलाफ अत्यंत असहनीय टिप्पणी किए जाने के बावजूद उस समय अवमानना की कार्यवाही नहीं की गई.

दवे ने कहा, ‘एक जज की उचित तरीके से आलोचना करना अपराध नहीं अधिकार है. यदि वे (भूषण) गलती करते हैं, तो क्या आप उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करेंगे? उनकी टिप्पणी केवल अदालत की भलाई के लिए है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘भूषण जैसे लोग कई बार ऐसे मामले उठाते हैं जो कि कार्यपालिका नहीं चाहती है. यदि वे सत्ता से हाथ मिला लेते, तो आज उन्हें पद्म पुरस्कार दे दिया गया होता.’

अपने 142 पन्नों के जवाब में भूषण ने अपने दो ट्वीट पर कायम रहते हुए कहा कि विचारों की अभिव्यक्ति, ‘मुखर, असहमत या कुछ लोगों के प्रति असंगत’ होने की वजह से अदालत की अवमानना नहीं हो सकती.

वहीं शीर्ष अदालत ने भूषण के ट्वीट का संदर्भ देते हुए कहा कि प्रथमदृष्टया यह आम लोगों की नजर में सामान्य तौर पर उच्चतम न्यायालय की संस्था और भारत के प्रधान न्यायाधीश ‘की शुचिता और अधिकार’ को कमतर करने वाला है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)