बाबरी मस्जिद विध्वंस: सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई अदालत को 30 सितंबर तक फैसला सुनाने का निर्देश दिया

1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती और कल्याण सिंह सहित 32 लोग आरोपी हैं. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाने की ​समयसीमा 31 अगस्त निर्धारित की थी.

(फोटो साभार: विकिपीडिया)

1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती और कल्याण सिंह सहित 32 लोग आरोपी हैं. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाने की समयसीमा 31 अगस्त निर्धारित की थी.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में मुकदमा पूरा करने के लिए समयसीमा एक महीने बढ़ा दी है और लखनऊ की विशेष सीबीआई अदालत से कहा है कि 30 सितंबर तक फैसला सुना दिया जाना चाहिए.

मामले में वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती सहित 32 लोग आरोपी हैं.

लखनऊ स्थित विशेष सीबीआई अदालत मामले में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 313 के तहत 32 आरोपियों के बयान दर्ज करने का काम पूरा कर चुकी है.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमा पूरा करने और फैसला सुनाने के लिए 31 अगस्त तक की समयसीमा तय की थी.

जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की पीठ ने विशेष न्यायाधीश एसके यादव द्वारा दायर की गई रिपोर्ट का संज्ञान लिया और समयसीमा 30 सितंबर तक बढ़ा दी.

पीठ ने कहा, ‘विद्वान विशेष न्यायाधीश सुरेंद्र कुमार यादव द्वारा दायर रिपोर्ट को पढ़ने के बाद और इस तथ्य पर विचार करते हुए कि कार्यवाही पूरी होने के कगार पर है, हम कार्यवाही पूरी करने और निर्णय सुनाने के लिए 30 सितंबर 2020 तक एक महीने का समय देते हैं.’

आदेश 19 अगस्त को पारित किया गया और इसे हाल में शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड किया गया. शीर्ष अदालत ने गत आठ मई को मामले में मुकदमा पूरा करने के लिए तीन महीने का समय बढ़ा दिया था और कहा था कि 31 अगस्त तक फैसला सुना दिया जाना चाहिए.

बता दें कि कारसेवकों ने छह दिसंबर 1992 को अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद को गिरा दिया था. उनका मानना था कि इस मस्जिद का निर्माण भगवान राम की जन्मभूमि पर बने मंदिर को तोड़कर किया गया था.

बीते जुलाई महीने में राम मंदिर आंदोलन के समय अग्रणी भूमिका में रहे पूर्व उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और वरिष्ठ भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से अपनी गवाही दी थी.

आडवाणी का बयान पांच अगस्त को अयोध्या में राम मंदिर के लिए हुए भूमि पूजन से कुछ दिन पहले ही दर्ज किया गया था.

अदालत कल्याण सिंह और उमा भारती जैसे दिग्गज भाजपा नेताओं के बयान भी दर्ज कर चुकी है. ये दोनों अदालत के समक्ष व्यक्तिगत रूप से पेश हुए थे.

इन सभी नेताओं ने अदालत में खुद को मामले में गलत तरीके से फंसाए जाने की दलील दी है.

मस्जिद गिराने के मामले में भाजपा नेता विनय कटियार और साध्वी रितंभरा भी आरोपी हैं. मामले में आरोपी विश्व हिंदू परिषद के नेताओं- गिरिराज किशोर, अशोक सिंघल और विष्णु हरि डालमिया का मुकदमे के दौरान निधन हो गया. मस्जिद गिराए जाने की घटना के समय कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे.

मालूम हो कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने पिछले साल 40 दिनों की लंबी सुनवाई के बाद नौ नवंबर को बाबरी मस्जिद-रामजन्मभूमि जमीन विवाद पर अपना फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन पर मुस्लिम पक्ष का दावा ख़ारिज करते हुए हिंदू पक्ष को जमीन देने को कहा था.

विवादित जमीन पर अदालत का फैसला आने और केंद्र सरकार द्वारा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट गठित करने के फैसले बाद उमा भारती ने कहा था कि अगर बाबरी मस्जिद का ढांचा नहीं हटाया जाता, तो सच लोगों के सामने न आता.

बीते पांच अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर का शिलान्यास किया था. इस आयोजन में भाजपा के कई नेता जैसे लालकृष्णा आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, जिनकी राम मंदिर आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका रही थी, आमंत्रित नहीं थे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)