संघ से जुड़े शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने एनसीईआरटी की किताबों से ग़ालिब, टैगोर, पाश की रचनाओं सहित गुजरात दंगों से जुड़े तथ्य हटाने की मांग की है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् (एनसीईआरटी) को कुछ सुझाव भेजे हैं, जिसमें उन्होंने मुग़ल बादशाहों को नेकदिल बताने, नेशनल कांफ्रेंस को ‘सेक्युलर’ बताने, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा 1984 के सिख दंगों पर माफ़ी मांगने जैसी कई बातें स्कूली किताबों से हटाने को कहा है.
संघ से संबद्ध इस न्यास के प्रमुख दीनानाथ बत्रा हैं, जो पहले संघ की शैक्षणिक शाखा विद्या भारती के अध्यक्ष रह चुके हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के अनुसार बीते दिनों एनसीईआरटी ने सभी कक्षाओं की किताबों पर आम जनता से उनकी राय मांगी थी, जिस पर संस्कृति उत्थान न्यास ने पांच पन्नों के सुझाव भेजे हैं. इसके साथ उन्होंने स्कूली किताबों के उन पन्नों को भी संलग्न किया है, जिन पर बत्रा को आपत्ति है.
बत्रा ने किताबों से अंग्रेज़ी, उर्दू और अरबी शब्दों सहित रवीन्द्रनाथ टैगोर के लेख, क्रांतिकारी कवि पाश और मशहूर शायर ग़ालिब की रचनाओं के साथ चित्रकार एमएफ हुसैन की आत्मकथा के कुछ अंश हटाने को भी कहा है.
इस अख़बार से बात करते हुए न्यास के सचिव और आरएसएस के प्रचारक अतुल कोठारी ने कहा, ‘इन किताबों में कई बातें आधारहीन और एकतरफा हैं. ये एक समुदाय के लोगों का अपमान करने का प्रयास है. इसमें तुष्टिकरण भी है… आप बच्चों को दंगों के बारे में बताकर कैसे प्रेरित कर सकते हैं? शिवाजी, महाराणा प्रताप, विवेकानंद और सुभाष चंद्र बोस जैसी महान हस्तियों की वीरता के लिए कोई जगह नहीं है.’
न्यास द्वारा भेजे गए सुझावों में ‘2002 के गुजरात दंगों में 2000 लोग मारे गए थे’ जैसे वाक्य हटाने की मांग की गई है.
कोठारी का कहना है, ‘हमें ये बातें आपत्तिजनक लगीं और हमने एनसीईआरटी को अपने सुझाव भेजे. उम्मीद है कि इन्हें अमल में लाया जाएगा.’
न्यास की ओर से विषयवार किताबों में किए जाने वाले बदलावों और ‘आपत्तिजनक’ भाग हटाने की सूची भेजी गई है.
11वीं की पॉलिटिकल साइंस में लिखे ‘1984 में कांग्रेस के भारी बहुमत’ शब्द को लिखे जाने पर न्यास की ओर से एतराज़ जताया गया है. उनका कहना है कि 1984 के चुनाव का ज़िक्र है पर 1977 के चुनावों की जानकारी नहीं दी गई है. वहीं न्यास का यह भी कहना है कि हिंदी की किताबों में सूफी कवि अमीर खुसरो के बारे में बताते समय यह भी बताया जाना चाहिए कि उन्होंने हिंदू-मुसलमानों के बीच खाई को बढ़ावा दिया था.
गौरतलब है कि न्यास द्वारा पहले भी कई किताबों को पाठ्यक्रमों से हटाने के लिए अभियान चलाए जा चुके हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय के ग्रेजुएशन पाठ्यक्रम से एके रामानुजन के ‘थ्री हंड्रेड रामायण: फाइव एक्ज़ाम्पल्स एंड थ्री थॉट्स ऑन ट्रांसलेशन’ हटवाने के लिए न्यास द्वारा मुहिम छेड़ी गई थी, वहीं वेंडी डोनिगर की क़िताब ‘द हिंदूज़’ को हटवाने के लिए न्यास ने अदालत की राह ली थी.
वहीं कांग्रेस नेताओं ने बत्रा के इन सुझावों पर रोष जताते हुए भाजपा से उनपर कार्रवाई करने की मांग की है.
दैनिक जागरण के अनुसार कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने कहा, आरएसएस को बेबुनियाद बयान व टिप्पणी देने के लिए जाना जाता है. खास तौर से ऐसे लोग जो शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास का नेतृत्व कर रहे हैं, उनके द्वारा इस तरह का बयान किसी सदमे से कम नहीं है. इस पर भाजपा को कुछ करने की ज़रूरत है और इसको लेकर कार्रवाई भी करें क्योंकि इस तरह के लोग और उनके आदर्श भारत को जल्द ही खत्म कर देंगे.
कांग्रेस के प्रमोद तिवारी का कहना था कि भाजपा और आरएसएस एकता की बात करते हैं, मगर जब समय आता है तो वे खुद ही इसे तोड़ने में समय नहीं लगाते.