गुजरात मॉडल को भूल जाइए, भविष्य यूपी मॉडल का है

संघ के उद्देश्यों को हासिल करने के लिए योगी आदित्यनाथ आदर्श व्यक्ति हैं.

योगी आदित्यनाथ. (फोटो साभार: फेसबुक/@MYogiAdityanath)

संघ के उद्देश्यों को हासिल करने के लिए योगी आदित्यनाथ आदर्श व्यक्ति हैं.

योगी आदित्यनाथ. (फोटो साभार: फेसबुक/MYogiAdityanath)
योगी आदित्यनाथ. (फोटो साभार: फेसबुक/MYogiAdityanath)

मानो उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक दलित किशोरी के साथ बलात्कार और प्रताड़ना कम डरावनी थी, पुलिस ने शव को घर ले जाने देने की अपील को खारिज करते हुए रातोंरात सबसे छिपकर उसका अंतिम संस्कार कर दिया.

बलात्कार का आरोप ठाकुर जाति के चार पुरुषों पर है. यह पूरा वाकया अगड़ी जाति के अहंकार और पुलिस की हृदयहीनता को दिखाता है.

भारत में पुलिस दुर्भावना से भरी हुई और कानून से बेख़ौफ़ हो सकती है और यूपी में तो, विशेष रूप से योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में, उनको खुली छूट दे दी गई है, जैसा उस एनकाउंटर में देखा गया, जिसमें अपराधी सरगना विकास दुबे की पूर्वनियोजित तरीके से हत्या कर दी गई.

अब पुलिसकर्मी उनसे ही बगावत करने पर आमादा हैं. पुलिस ने हत्या के मामले में संदिग्ध एक पुलिसकर्मी को निलंबित करने के मुख्यमंत्री के आदेश को नजरअंदाज कर दिया है.

इस बीच, आदित्यनाथ हर मुमकिन तरीके से मुसलमानों को निशाना बना रहे हैं और सभी तरह के असंतोषों को दबा रहे हैं.

डॉ कफ़ील खान खान को गोरखपुर अस्पताल हादसे के दौरान, जिसमें कई बच्चों की मौत हो गई, ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी की ओर इशारा करने के कारण, महीनों तक जेल में बंद रखा गया.

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ प्रदर्शन करनेवाले अनेक लोगों की संपत्ति जब्त कर ली गई.

आदित्यनाथ शहरों और अजायबघरों का नाम बदलने के काम में लगातार जुटे हुए हैं और अब कारोबारियों को राज्य में निवेश करने के लिए दावत दे रहे हैं.

और उन्हें ऐसा क्यों करना नहीं चाहिए? क्या इंडिया टुडे ने उन्हें लगातार तीन बार भारत का सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री घोषित नहीं किया है?

यहां तक कि कारोबारी जगत के लोग अब उन्हें प्रधानमंत्री पद की सबसे अच्छी पसंद के तौर पर भी देख सकते हैं. आखिर, कंपनियों को श्रमिकों को बे-रोकटोक बर्खास्त करने की इजाज़त जो मिल जाएगी.

एक जख्म को और गहरा करते हुए, अब जबकि उस जगह पर एक मंदिर भी बनाया जा रहा है, जहां 400 साल पुरानी मस्जिद को उपद्रवियों ने भाजपा नेताओं के उत्साहवर्धन के बीच जमींदोज कर दिया था, इस मामले के सभी आरोपियों को निर्दोष करार दिया गया है.

अगला पड़ाव काशी है, और इसके बाद मथुरा की बारी आएगी. योगी आदित्यनाथ के आशीर्वाद से ये सारे मंसूबे पूरे होंगे.

हमारी नजरों के सामने जो नया चमकीला उत्तर प्रदेश उभर रहा है, उसका दीदार कीजिए- सवर्ण (उच्च जातीय) असहिष्णु और कारोबारियों का दोस्त.

और इससे पहले कि हम इसे जान पाएं, यह भारत के लिए भी यह एक मॉडल बन जाएगा. गुजरात मॉडल बीते हुए कल की खबर है; आने वाला कल उत्तर प्रदेश मॉडल के नाम होगा.

गुजरात मॉडल कैसे गढ़ा गया, यह याद करना यहां उपयोगी होगा.

गुजरात दंगों, जिसमें हज़ार से ज्यादा लोग मारे गए, जिनमें ज्यादातर मुस्लिम थे, नरेंद्र मोदी एक प्रकार से अछूत बन गए थे. वे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (जिन्होंने दो हफ्ते बाद एक पूरी तरह से अलग राग अलापते हुए अप्रत्यक्ष तौर पर गोधरा ट्रेन को आग लगाने और इस तरह हिंदू प्रतिक्रिया की आग की चिंगारी बनने के लिए मुसलमानों को दोषी ठहराया था) के हाथों बर्खास्त होते-होते बाल-बाल बचे थे

मोदी ने अपनी कुर्सी बचा ली, लेकिन भारत और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के कई लोगों ने उनका बहिष्कार कर दिया था. भारतीय कारोबारी अपनी आलोचना में कटु थे.

मार्च 2002 में बैंकर दीपक पारेख ने तकलीफ़ से भरकर कहा, ‘अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमने एक धर्मनिरपेक्ष देश के रूप में अपना नाम गंवा दिया है (हालांकि बाद में उन्होंने भी अपना सुर बदल लिया).’

दूसरे कारोबारियों ने भी निर्मम हत्याओं और लूटपाट पर अपने गुस्से का इजहार किया था. कई देशों ने मोदी को वीजा देने से इनकार कर दिया. अमेरिका जैसे कुछ देशों ने खुले तौर पर, तो दूसरों ने चुपचाप.

तथ्य यह भी है कि कुछ सालों बाद उनके राजनयिक गुजरात जा रहे थे, उनसे मुलाकात कर रहे थे और निवेश पर चर्चा कर रहे थे. और 2013 में, एक वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन में, शीर्ष कॉर्पोरेट मुखिया नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करने के लिए एक दूसरे से होड़ ले रहे थे.

मुकेश अंबानी ने कहा, ‘उनके पास एक भव्य विजन है.’ अनिल अंबानी ने ऐलान किया, ‘वे महात्मा गांधी और सरदार पटेल की तरह हैं’. रतन टाटा ने अतिशयोक्ति का सहारा लेते हुए कहा, ‘गुजरात भारत में सबसे अधिक निवेशक-हितैषी राज्य है ‘इसका श्री श्री मोदी को जाता है.’

तब तक, वे अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को नुमाया करना भी शुरू कर चुके थे और वे न केवल कारोबारी जगत में बल्कि उन तमाम भारतीयों के बीच भी लोकप्रिय हो रहा थे, जो उनके बारे में केवल अच्छी बातें सुन रहे थे- सुंदर सड़कें, कोई बिजली कटौती और सभी के लिए शांति और सुरक्षा.

जो नहीं कहा गया, वह यह कि उन्होंने मुसलमानों को अलग-थलग कर दिया था और उन्हें उनकी जगह दिखा दी थी. जहां तक 2002 का सवाल है, तब तक इसे पूरी तरह से भुला दिया गया और नुक्ताचीनी करने वालों से ‘आगे बढ़ने’ के का आग्रह किया गया.

उसके बाद क्या हुआ, यह हम सब ने देखा. मीडिया ने एक स्वर में उठकर उनका समर्थन किया और साथ ही साथ एक स्वर में कांग्रेस की आलोचना की. नरेंद्र मोदी के हर शब्द को सुर्ख़ियों में जगह दी गई.

जिनकी याददाश्त अच्छी है, वे वाराणसी में उनके रोड शो को कवर कर रहे टीवी पत्रकारों और नामचीन एंकरों की हांफती हुई उत्तेजना को भूले नहीं होंगे.

सामान्य धारणा है कि मीडिया ने अपनी आत्मा को 2014 के बाद बेचा और मोदी फैन क्लब में शामिल हो गया, लेकिन हकीक़त में यह बहुत पहले हो चुका था.

विश्लेषकों को ज्ञान की प्राप्ति-सी हुई कि वे (मोदी) अब विभाजनकारी मुद्दों पर बात नहीं कर रहे थे, और सिर्फ आर्थिक विकास उनकी चिंता के केंद्र में था.

भ्रष्ट सरकार की अगुआई कर रहे मनमोहन सिंह ने भारत की अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया था. बेदाग मोदी इसे उबार लेंगे. विदेशी निवेश में तेजी आएगी, नौकरियों की कोई कमी नहीं होगी और भारत एक महाशक्ति बन जाएगा.

ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है और कुशलता की खान मोदी ने भारत की अर्थव्यवस्था मझधार में बिना नाविक के छोड़ दिया है. इसी के साथ-साथ घृणा-अपराधों (हेट क्राइम्स) में नाटकीय बढ़ोतरी हुई है और मुसलमानों को हाशिए पर धकेला जा रहा है.

यह हमेशा से संघ परिवार का एजेंडा था, जिसे उसने अचूक तरह से अंजाम दिया है. मोदी को व्यापक मतदाता वर्ग के बीच स्वीकार्य बनाने के लिए उनकी छवि को नए सिरे से गढ़ा जाना ज़रूरी था.

सांप्रदायिक सोच वाला होने के बावजूद कई शहरी भारतीय कट्टर धर्मांध व्यक्ति की उम्मीदवारी शायद स्वीकार नहीं करते. इसलिए एक नया मोदी गढ़ा गया और यह कामयाब रहा.

दिल्ली में मोदी सरकार किसानों और मुस्लिमों के खिलाफ कानूनों को आगे बढ़ा रही है. कारोबारियों के हित नियमों को बदल रही है. विरोधियों के साथ सख्ती के साथ पेश आ रही है. साथ ही यह सुनिश्चित कर रही है कि उसके अपने लोगों को पुलिस बेवजह परेशान न करे.

लेकिन केंद्र में सरकार चलाने से राज्य के स्तर पर शक्तियां नहीं मिलती हैं और यह कभी-कभी हाथ बांध सकती है. यहीं संभावना के तौर पर योगी आदित्यनाथ उभर रहे हैं.

मुख्यमंत्री होने के बावजूद, वह पत्रकारों को नोटिस भेजने के लिए अपनी पुलिस कहीं भी भेज सकते हैं. वे यूपी के भगवान और मालिक हैं. दिल्ली में उन्हें रोकने वाला कोई नहीं होगा.

यूपी मॉडल का कोई विरोध नहीं करेगा, और इस बात की कोई चिंता नहीं है कि यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय को कैसा दिखता है.

आदित्यनाथ की दुनिया देखने की नजर में विदेश नीति और कूटनीति का कोई महत्व नहीं है. विधायी बारीकियां समय की बर्बादी हैं और लोकतंत्र भावुकों के लिए है.

एक मिशन को पूरा किया जाना है और संघ को मालूम है कि वह इसे हासिल कर लेगा. उनकी साख बेदाग़ है- वे मुसलमानों से नफ़रत करते हैं और सोचते हैं कि दलितों को अपनी जगह पता होनी चाहिए.

संघ के दृष्टिकोण के अनुसार नरेंद्र मोदी बहुत नरम हैं और अपनी छवि के बारे में भी बहुत चिंतित रहते हैं. पर आदित्यनाथ के साथ ऐसा नहीं है. और इसीलिए योगी आदित्यनाथ आने वाले कल का चेहरा हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq