महाराष्ट्र: सीबीआई को दी ‘आम सहमति’ वापस ली गई, जांच के लिए लेनी होगी सरकार की अनुमति

महाराष्ट्र सरकार के इस कदम के बाद सीबीआई को अब राज्य में शक्तियों और न्यायक्षेत्र के इस्तेमाल के लिए आम सहमति नहीं होगी, जो उसे राज्य सरकार द्वारा 1989 में जारी एक आदेश के तहत दी गई थी. अब अगर सीबीआई किसी मामले की जांच करना चाहेगी, तो उसे राज्य सरकार से सहमति लेनी होगी.

//
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे. (फोटो: ट्विटर)

महाराष्ट्र सरकार के इस कदम के बाद सीबीआई को अब राज्य में शक्तियों और न्यायक्षेत्र के इस्तेमाल के लिए आम सहमति नहीं होगी, जो उसे राज्य सरकार द्वारा 1989 में जारी एक आदेश के तहत दी गई थी. अब अगर सीबीआई किसी मामले की जांच करना चाहेगी, तो उसे राज्य सरकार से सहमति लेनी होगी.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे. (फोटो: ट्विटर)
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे. (फोटो: ट्विटर)

मुंबई: महाराष्ट्र सरकार ने दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान के सदस्यों को दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान कानून, 1946 (डीपीएसई एक्ट) के तहत राज्य में शक्तियों और न्यायक्षेत्र के इस्तेमाल की सहमति को वापस लेने संबंधी एक आदेश बीते बुधवार को जारी किया.

इस कदम के तहत सीबीआई को अब राज्य में शक्तियों और न्यायक्षेत्र के इस्तेमाल के लिए आम सहमति नहीं होगी जो महाराष्ट्र सरकार द्वारा 22 फरवरी 1989 को जारी एक आदेश के तहत दी गई थी. अब उसे किसी मामले की जांच के लिए राज्य सरकार की अनुमति लेनी होगी.

माना जा रहा है कि टीआरपी घोटाला और अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या मामलों के मद्देनजर राज्य सरकार ने ये फैसला लिया है.

सुशांत सिंह राजपूत मौत मामले की जांच पहले मुंबई पुलिस कर रही थी, लेकिन बाद में मामला पटना में अभिनेता के पिता द्वारा दर्ज कराए गए एक प्राथमिकी के आधार पर सीबीआई के सुपुर्द कर दिया गया था.

अब अगर सीबीआई किसी मामले की जांच करना चाहती है तो उसे सहमति के लिए राज्य सरकार से संपर्क करना होगा.

पश्चिम बंगाल और राजस्थान जैसे राज्य पहले ही ऐसे कदम उठा चुके हैं. कई राज्यों ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया है कि वे अपने फायदे के लिए सीबीआई का दुरुपयोग कर रहे हैं.

मालूम हो कि बीते छह अक्टूबर को प्राथमिकी दर्ज करने के बाद मुंबई पुलिस ने आरोप लगाया था कि रिपब्लिक टीवी सहित तीन चैनल टीआरपी में हेरफेर करने में शामिल थे.

रिपब्लिक टीवी ने बाद में बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां उनके वकील हरीश साल्वे ने मामले को सीबीआई को देने की मांग की.

खास बात ये है कि केंद्र सरकार और भाजपा दोनों ने रिपब्लिक की दलीलों का समर्थन किया और मुंबई पुलिस की कार्रवाई को प्रेस की स्वतंत्रता के लिए खतरा बताया.

इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में सुनवाई चल ही रही थी कि इसी बीच उत्तर प्रदेश में भी ‘अज्ञात’ चैनलों और लोगों के खिलाफ इसी तरह का मामला दर्ज हुआ है.

इस आधार पर यूपी सरकार ने मामले में सीबीआई जांच की मांग की और केंद्र इसे स्वीकार करते हुए केस सीबीआई के पास भेज दिया.

माना जा रहा है कि महाराष्ट्र सरकार ने इसी के चलते सीबीआई को दी गई आम सहमति वापस ले ली है.

सीबीआई ‘दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम’ द्वारा शासित है, जिसके तहत राज्य में जांच करने के लिए एक राज्य सरकार की सहमति अनिवार्य होती है.

चूंकि सीबीआई के पास केवल केंद्र सरकार के विभागों और कर्मचारियों पर अधिकार क्षेत्र है, यह राज्य सरकार के कर्मचारियों या किसी राज्य में हिंसक अपराध से संबंधित मामले की जांच तभी कर सकती है जब सरकार संबंधित सहमति देती है.

हालांकि राज्य सरकार के इस निर्णय से सीबीआई द्वारा जांच किए जा रहे पहले के मामलों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.

इसके अलावा ‘आम सहमति’ वापस लेने का मतलब है कि एजेंसी महाराष्ट्र में प्राथमिकी दर्ज नहीं कर सकती है.

लेकिन यह अब भी अन्य राज्यों में एफआईआर दर्ज कर सकती है और दिल्ली उच्च न्यायालय के 2018 के आदेश के अनुसार राज्य में किसी की भी जांच कर सकती है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)