योगी आदित्यनाथ ने फिर छेड़ा लव जिहाद का राग, दिया ‘राम नाम सत्य’ का अल्टीमेटम

ऐसा कोई क़ानून नहीं है, जिसके तहत किसी व्यक्ति द्वारा पहचान छिपाकर किसी महिला से शादी करने के लिए उसे मौत की सज़ा सुनाई जा सके, इसलिए अंतिम संस्कार से जुड़ा मुख्यमंत्री का संदर्भ भीड़ हिंसा के लिए धर्म के ठेकेदारों को प्रोत्साहित करने के समान है.

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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ. (फाइल फोटोः पीटीआई)

ऐसा कोई क़ानून नहीं है, जिसके तहत किसी व्यक्ति द्वारा पहचान छिपाकर किसी महिला से शादी करने के लिए उसे मौत की सज़ा सुनाई जा सके, इसलिए अंतिम संस्कार से जुड़ा मुख्यमंत्री का संदर्भ भीड़ हिंसा के लिए धर्म के ठेकेदारों को प्रोत्साहित करने के समान है.

जौनपुर में चुनावी सभा को संबोधित करते उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (फोटोः पीटीआई)
जौनपुर में चुनावी सभा को संबोधित करते उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (फोटोः पीटीआई)

नई दिल्लीः उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शनिवार को एक जनसभा में मुस्लिमों को चेताते हुए कहा कि जो लोग अपनी पहचान छिपाकर लव जिहाद करते हैं, उनकी राम नाम सत्य है कि यात्रा निकलने वाली है.

उनका यह बयान हिंदू मुस्लिम प्रेम और विवाह पर दी गई उनकी अब तक की टिप्पणियों में सबसे बेहूदा है.

जौनपुर में भाजपा की एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश का उल्लेख किया, जिसमें अदालत ने कहा था कि अगर कोई शख्स सिर्फ विवाह के उद्देश्य से धर्म परिवर्तन करता है तो वह वैध नहीं है.

इस आदेश का उल्लेख करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, ‘इसलिए हमारी सरकार ने फैसला किया है कि हम सख्त कार्रवाई करते हुए लव जिहाद को रोकेंगे.’

लव जिहाद हिंदूवादी संगठनों द्वारा इस्तेमाल में लाई जाने वाली शब्दावली है, जिसमें कथित तौर पर हिंदू महिलाओं को जबरदस्ती या बहला-फुसलाकर उनका धर्म परिवर्तन कराकर मुस्लिम व्यक्ति से उसका विवाह कराया जाता है.

इस काल्पनिक कॉन्सपिरेसी थ्योरी को उस गुप्त योजना का हिस्सा बताया जाता है, जो हिंदुओं- जो आबादी का 85 प्रतिशत हैं- को देश के अल्पसंख्यकों में तब्दील कर रही है.

विडंबना यह है कि हाईकोर्ट के जिस फैसले का आदित्यनाथ उल्लेख कर रहे हैं, उसका लव जिहाद के आरोपों से कोई लेना-देना नहीं है बल्कि वह एक मुस्लिम महिला और एक हिंदू पुरुष की याचिका से जुड़ा हुआ है, जिन्होंने अपनी मर्जी से शादी की और अब वे अपने परिवार के विरोध के मद्देनजर सुरक्षा की मांग कर रहे हैं.

अदालत ने हालांकि, उनके शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन में दखल न देने के लिए राज्य को निर्देश से इनकार कर दिया क्योंकि महिला ने सिर्फ विवाह करने के उद्देश्य से हिंदू धर्म अपना लिया था.

हालांकि यह मामला किसी भी तरह से कथित लव जिहाद से जुड़ा नहीं है, पर मुख्यमंत्री ने अदालत के इस फैसले का संदर्भ हिंदू महिलाओं के मुस्लिम पुरुषों से रिश्ता रखने को लेकर उसी असुरक्षा के चलते दिया जिसे भाजपा प्रदेश में काफी समय से फैला रही है.

योगी आदित्यनाथ ने कहा, ‘सरकार निर्णय ले रही है कि हम लव जिहाद को सख्ती से रोकने का कार्य करेंगे. एक प्रभावी कानून बनाएंगे. छद्मवेश में, चोरी-छिपे, नाम, स्वरूप छिपाकर के जो लोग बहन, बेटियों की इज्जत के साथ खिलवाड़ करते हैं, उनको पहले से मेरी चेतावनी, अगर वे सुधरे नहीं, तो राम नाम सत्य है की यात्रा अब निकलने वाली है.’

इस दौरान मुख्यमंत्री ने राम नाम सत्य है वाक्यांश का इस्तेमाल किया, जिसका इस्तेमाल हिंदू धर्म में शव को अंतिम संस्कार के समय ले जाते समय किया जाता है. यहां योगी आदित्यनाथ ने लव जिहाद के संदर्भ में स्पष्ट किया कि ये शव मुस्लिम युवकों के होंगे.

चूंकि, ऐसा कोई कानून नहीं है, जिसके तहत किसी व्यक्ति द्वारा पहचान छिपाकर किसी महिला से शादी करने के लिए उसे कानूनी रूप से मौत की सजा सुनाई जा सके, इसलिए अंतिम संस्कार से जुड़ा मुख्यमंत्री का संदर्भ भीड़ हिंसा के लिए धर्म के ठेकेदारों को प्रोत्साहित करने के समान है.

मुख्यमंत्री और सूबे के गृहमंत्री योगी आदित्यनाथ को पता है कि राज्य में ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनसे स्पष्ट है कि अंतर-धार्मिक संबंध और विवाह की वजह से कई मुस्लिम युवकों पर हमला किया गया या उन्हें जान से मार दिया गया.

अगस्त में योगी सरकार ने कहा था कि वह लव जिहाद रोकने के लिए अध्यादेश लाने की तैयारी कर रही हैं और इसके लिए कार्ययोजना तैयार कर रहे हैं. हालांकि यह अभी स्पष्ट नहीं है कि इस शब्द को किस तरह से परिभाषित किया जाना है.

सरकार का अगला कदम जो भी होगा लेकिन यह स्पष्ट है कि राज्य में अंतर-धार्मिक युवा प्रेमियों या दंपतियों के लिए जोखिम बढ़ने वाला है.

इस तरह के दंपतियों को अपने परिवार के गुस्साए सदस्यों से सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश के अन्य हिस्सों से भी खतरा है, इसे ध्यान में रखते हुए यह पुलिस और अदालतों के लिए जरूरी है कि वे उनकी सुरक्षा के लिए जरूरी कदम उठाना सुनिश्चित करें।

लेकिन उत्तर प्रदेश में कानपुर में पुलिस तथाकथित लव जिहाद की जांच के लिए विशेष जांच टीम (एसआईटी) गठित की गई है और अदालतें भी हस्तक्षेप करने को लेकर अनिच्छुक हैं, जैसा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के हाल के फैसले से स्पष्ट है जिसका योगी आदित्यनाथ ने उल्लेख किया. इससे हिंसा का खतरा और अधिक बढ़ जाएगा.

विधि आयोग की सिफारिशें

मध्य प्रदेश और नौ अन्य राज्यों के विपरीत उत्तर प्रदेश में धर्म परिवर्तन को लेकर कोई कानून व्यवस्था नहीं है. पिछले साल उत्तर प्रदेश विधि आयोग ने इस तरह का कानून बनाने के लिए आदित्यनाथ सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी थी और ‘यूपी फ्रीडम ऑफ रिलीजन बिल’ का मसौदा तैयार किया.

हालांकि, मसौदा कानून में उन प्रावधानों की नकल की गई, जिन्हें अन्य राज्यों ने जबरन धर्मांतरण या किसी तरह के प्रलोभन से धर्म परिवर्तन को गैरकानूनी घोषित करने के लिए अपनाया गया है. इसमें सिर्फ विवाह के लिए धर्म परिवर्तन निषिद्ध है.

विधि आयोग की इस रिपोर्ट में ‘हिंदूजागृति डॉट ओआरजी‘ से उदाहरण या चित्रांकन लिए गए हैं. यह वेबसाइट हिंदू राष्ट्र की स्थापना की बात कहती है और यह रिपोर्ट सिर्फ अंतर धार्मिक विवाह से जुड़ी चिंताओं को लेकर ही है.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में हालिया कुछ खबरें और इलाहाबाद हाईकोर्ट के कुछ फैसलों को ध्यान में रखते हुए लगता है कि एक धर्म के व्यक्ति द्वारा दूसरे धर्म की महिला से शादी के उद्देश्य से धर्म परिवर्तन किए जा रहे हैं, ये धर्म परिवर्तन या तो युवक द्वारा शादी से पहले या बाद में या फिर महिला द्वारा शादी से पहले या बाद में किए जा रहे हैं.’

आगे कहा गया, ‘इसलिए इस तरह की गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए एक प्रावधान बनाने की जरूरत है ताकि ऐसे विवाह को रद्द घोषित किए जा सकें, जहां सिर्फ शादी के लिए धर्म परिवर्तन किए गए. इसके अलावा वैवाहिक विवाद जैसे मामलों के निपटान का अधिकार फैमिली कोर्ट को दिया जाना चाहिए या फिर जहां फैमिली कोर्ट नहीं हैं, वहां अदालतों को इस तरह के मामले सुलझाने चाहिए. दोनों पक्षों को स्वतंत्रता देनी चाहिए ताकि वे सक्षम अदालत में याचिका पेश कर सकें

संक्षेप में, प्रस्ताव यह है कि अंतर धार्मिक विवाह जहां पती या पत्नी में से कोई भी धर्म परिवर्तन करता है, इसके लिए अदालत की मंजूरी होनी ही चाहिए.

अदालतें और अंतर धार्मिक विवाह

अदालतों के पास वैवाहिक दंपतियों की धार्मिक पहचान को मान्यता देने का अधिकार है, पर केवल तभी जब उनके समक्ष विवाद परिवार के कानूनों से संबंधित सवालों से जुड़ा हो.

इस संबंध में साल 2000 में सुप्रीम कोर्ट ने लिली थॉमस मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया था, जहां एक हिंदू पत्नी ने शिकायत दर्ज कराई थी कि उनका हिंदू पति दूसरी हिंदू महिला से शादी करने के लिए इस्लाम अपनाने जा रहा है.

अदालत ने फैसला सुनाया था कि हिंदू पर्सनल लॉ में दो शादियां वैध नहीं हैं इसलिए कोई शख्स मुस्लिम पर्सनल लॉ का लाभ नहीं उठा सकता. ऐसे में यह धर्म परिवर्तन कपटपूर्ण और अवसरवादी है.

हालांकि, इलाहाबाद हाईकोर्ट के हाल के मामले में ऐसा कोई आयाम नहीं था. मुस्लिम महिला ने हिंदू धर्म अपनाया था और दंपति ने हिंदू रीति-रिवाजों के तहत शादी की थी और उन्होंने परिवार के प्रतिशोधी सदस्यों से सुरक्षा की मांग की थी. अगर उनकी शादी विशेष विवाह अधिनियम के तहत भी होती तो उनकी सुरक्षा की मांग उतनी ही सही होती.

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