परिवारों के हस्तक्षेप के बिना दो वयस्क साथ-साथ रह सकते हैं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फ़र्रुख़ाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को लिव-इन में रह रहे एक युवक-युवती को सुरक्षा उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है, जो अपने पारिवारिक सदस्यों की प्रताड़ना का शिकार हो रहे हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फ़र्रुख़ाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को लिव-इन में रह रहे एक युवक-युवती को सुरक्षा उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है, जो अपने पारिवारिक सदस्यों की प्रताड़ना का शिकार हो रहे हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

इलाहाबाद: दो वयस्क लोग लिव-इन संबंध में एक साथ रह सकते हैं, यह व्यवस्था देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फ़र्रुख़ाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को लिव-इन में रह रहे एक युवक-युवती को सुरक्षा उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है, जो अपने पारिवारिक सदस्यों की प्रताड़ना का शिकार हो रहे हैं.

जस्टिस अंजनि कुमार मिश्रा और जस्टिस प्रकाश पाडिया ने फर्रुखाबाद की कामिनी देवी और अजय कुमार द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए सोमवार को यह आदेश पारित किया.

अदालत ने कहा, ‘माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने फैसलों की एक लंबी कतार में यह कानून बनाया है, जहां एक लड़का और लड़की प्रमुख हैं और अपनी मर्जी से रह साथ रहे हैं, तो उनके माता-पिता सहित किसी को भी उनके साथ रहने में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है.’

याचिकाकर्ताओं ने अदालत के समक्ष दलील दी कि वे दोनों वयस्क हैं और एक दूसरे से प्रेम करते हैं. पिछले छह महीने से वे एक दंपति की तरह साथ रह रहे हैं, लेकिन कामिनी के माता-पिता उनका उत्पीड़न कर रहे हैं. याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि कामिनी के माता-पिता उसकी शादी किसी अधेड़ उम्र के एक व्यक्ति से करना चाहते थे.

याचिकाकर्ताओं ने 17 मार्च 2020 को फर्रुखाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से इस संबंध में शिकायत की थी, लेकिन आज तक उनका प्रार्थना पत्र लंबित है.

पीठ ने संबंधित पक्षों की दलील सुनने के बाद कहा, ‘माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह व्यवस्था दी है कि जहां एक लड़का और लड़की वयस्क हों और अपनी इच्छा से एक साथ रह रहे हों, तब उनके माता-पिता सहित किसी को भी उनके एक साथ रहने में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है.’

पीठ ने इस याचिका को स्वीकार करते हुए कहा, ‘हमारा विचार है कि इन याचिकाकर्ताओं को एक साथ रहने की स्वतंत्रता है और किसी भी व्यक्ति को उनकी शांतिपूर्ण जिंदगी में दखल देने की अनुमति नहीं होगी. भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन जीने का अधिकार, एक मौलिक अधिकार है, जिसमें यह व्यवस्था है कि किसी भी व्यक्ति को जीवन जीने के अधिकार और निजी स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा.’

मालूम हो कि उत्तर प्रदेश के लव जिहाद अध्यादेश पर बहस के बीच कर्नाटक हाईकोर्ट का कहा है कि किसी भी वयस्क द्वारा अपनी पसंद से विवाह करना भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों  के तहत आता है.

पीठ ने कहा, ‘दो व्यक्तियों के निजी संबंधों की स्वतंत्रता का उनकी जाति या धर्म की वजह से किसी के द्वारा भी हनन नहीं किया जा सकता.’

वजीद खान नाम के एक मुस्लिम युवक ने अदालत में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर अपनी पार्टनर राम्या की रिहाई की मांग की थी.

कर्नाटक हाईकोर्ट का यह बयान इलाहाबाद हाईकोर्ट के 11 नवंबर के उस फैसले के बाद आया है, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूर्ववर्ती एकल जज की पीठ के उस फैसले की निंदा की थी, जिसमें कहा गया था कि केवल विवाह के लिए धर्म परिवर्तन स्वीकार्य नहीं है.

बीते 11 नवंबर के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ जीने का अधिकार जीवन एवं व्यक्तिगत आजादी के मौलिक अधिकार का महत्वपूर्ण हिस्सा है. कोर्ट ने कहा कि इसमें धर्म आड़े नहीं आना सकता है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)