किसान संगठन ने लिखा प्रधानमंत्री मोदी को पत्र, कहा- प्रदर्शन किसी भी राजनीतिक दल से जुड़ा नहीं

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति का पत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान के बाद आया है, जहां उन्होंने विपक्ष पर किसानों को तीन कृषि क़ानूनों को लेकर गुमराह करने का आरोप लगाया था. संगठन ने कहा है कि प्रधानमंत्री का उन पर हमलावर होना दिखाता है कि उन्हें किसानों से कोई सहानुभूति नहीं है.

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दिल्ली के सिंघू बॉर्डर पर प्रदर्शन करते किसान. (फोटो: पीटीआई)

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति का पत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान के बाद आया है, जहां उन्होंने विपक्ष पर किसानों को तीन कृषि क़ानूनों को लेकर गुमराह करने का आरोप लगाया था. संगठन ने कहा है कि प्रधानमंत्री का उन पर हमलावर होना दिखाता है कि उन्हें किसानों से कोई सहानुभूति नहीं है.

दिल्ली के सिंघू बॉर्डर पर किसान बीते 14 दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं. (फोटो: पीटीआई)
दिल्ली के सिंघू बॉर्डर पर प्रदर्शन करते किसान. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने बीते शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को पत्र लिखकर कहा कि वर्तमान में चल रहे किसानों के विरोध प्रदर्शन किसी भी राजनीतिक दल से संबद्ध नहीं हैं.

मोदी और तोमर को हिंदी में अलग-अलग लिखे गए पत्रों में समिति ने कहा कि सरकार की यह गलतफहमी है कि तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन को विपक्षी दलों द्वारा प्रायोजित किया जा रहा है.

किसान संगठन की तरफ से ये पत्र तब लिखे गए जब एक दिन पहले प्रधानमंत्री ने विपक्षी दलों पर किसानों को तीन कृषि कानूनों को लेकर गुमराह करने का आरोप लगाया था.

समिति उन लगभग 40 किसान संगठनों में से एक है, जो पिछले 23 दिन से दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

इसने प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में कहा, ‘सच्चाई यह है कि किसानों के आंदोलन ने राजनीतिक दलों को अपने विचार बदलने के लिए मजबूर किया है और आपके (प्रधानमंत्री) आरोप कि राजनीतिक दल इसे (विरोध प्रदर्शन) पोषित कर रहे हैं, वह गलत है.’

समिति ने पत्र में कहा, ‘विरोध करने वाली किसी भी किसान यूनियन और समूह की कोई भी मांग किसी राजनीतिक दल से संबद्ध नहीं है.’

किसान संगठन ने प्रधानमंत्री मोदी को लिखा है, ‘बड़े खेद के साथ आपसे कहना पड़ रहा है कि किसानों की मांगों को हल करने का दावा करते-करते, जो हमला दो दिनों से आपने किसानों की मांगों व आंदोलन पर करना शुरू कर दिया है, वह दिखाता है कि आपको किसानों से कोई सहानुभूति नहीं है और आप उनकी समस्याओं को हल करने का इरादा शायद बदल चुके हैं. निःसंदेह, आपके द्वारा कही गई सभी बातें तथ्यहीन हैं.’

उन्होंने कहा, ‘आपका दावा है कि इन कानूनों के बनने से पहले विभिन्न स्तरों पर विस्तार से चर्चा हुई है और सभी राजनीतिक दलों ने इन परिवर्तनों के पक्ष में मत अपनाया है. इस बात पर आपको स्पष्ट होना चाहिए कि खेती राज्यों का विषय रहा है और मंडियों में परिवर्तनों के विभिन्न पहलू राज्यों में चर्चा का विषय रहे, कुछ राज्यों में कुछ परिवर्तन भी हुए. केंद्रीय स्तर पर आप ऐसे कानून बनाकर पूरे देश पर थोप देंगे, यह झटका एकाएक आप ही ने पांच जून को देश को दिया. आपने कभी भी इन बिंदुओं पर किसान संगठनों से कोई चर्चा नहीं की और संसद में भी विरोध की आवाजों को सुने बिना इन्हें पारित घोषित कर दिया. आपके ही झटके की देन है कि किसान आंदोलन इतने बड़े रूप में खड़ा होता जा रहा है. तथ्यों को गड्डमड्ड करने से इसका कोई समाधान नहीं निकलेगा.

किसान संगठन ने नरेंद्र मोदी के भाषण का जवाब देते हुए लिखा, ‘आपने यह भी दावा किया है कि विपक्षी दलों के घोषणा पत्रों में किसानों को विकल्प के रूप में बाजार से जोड़ने की सिफारिशें मौजूद हैं. हम नहीं जानते कि इसका क्या अर्थ है पर अगर इसका अर्थ है कि खेती के अंदर बड़े कॉरपोरेट और विदेशी कंपनियों को प्रवेश कराया जाए, मंडी व्यवस्था पर पूरा वर्चस्व जमाने और किसानों को ठेकों में बांधकर और अधिक कर्जदार बनाने का है तो किसानों का इससे कोई सरोकार नहीं है. अच्छा होगा कि आप ये चर्चा विपक्षी दलों से करें और अपने इस तर्क को लेकर किसानों के आंदोलन को गुमराह करने का प्रयास न करें.

इसके साथ ही किसान संगठन ने अपने इस पत्र के जरिये कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के भी उस पत्र का जवाब दिया है, जिसे उन्होंने किसानों के नाम लिखकर आंदोलन को गुमराह करना बताया था.

संगठन ने कहा, ‘पत्र के अंत में किसानों की आड़ में कुछ ‘राजनीतिक दलों व संगठनों द्वारा रचे गये कुचक्र’ का हवाला देते हुए आपने ‘कांग्रेस पार्टी’, ‘आम आदमी पार्टी’, ‘हुड्डा कमेटी’, ‘अकाली दल’, ‘वोट बटोरने की राजनीति’, ‘पूज्य बापू का अपमान’, ‘दंगे के आरोपियों की रिहाई’, ‘62 की लड़ाई’, ‘भारत के उत्पादों का बहिष्कार’, आदि का लंबा चौड़ा उल्लेख किया है, जिसका किसान आंदोलन से कोई सरोकर नहीं है, न ही किसी किसान संगठन ने इस संबंध में या उससे जुड़े किसी बिंदु पर सरकार से कोई मांग उठाई है. इसलिए हम विनम्रता के साथ आपसे यह कहना चाहते हैं कि इस तरह के असंबंधित मसलों पर आपके पत्र में उल्लेख न होता तो अच्छा था. स्पष्ट है कि आप संघर्ष के असली मुद्दे पर चर्चा से ध्यान हटाने के लिए इन सारी बातों का उल्लेख कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि लगातार सभी किसान संगठनों ने आपसे आग्रह किया है कि इन तीनों कृषि कानूनों और बिजली बिल, 2020 को वापस लिया जाना इसलिए जरूरी है क्योंकि ये कृषि मंडियों, खेती करने की प्रक्रिया, लागत के सामान की आपूर्ति, फसलों का भंडारण, शीतगृह, परिवहन, प्रसंस्करण, खाने की बिक्री में बड़े कारपोरेट व विदेशी कंपनियों को कानूनी अधिकार के तौर पर स्थापित कर देंगी.

किसान संगठन ने आगे कहा कि आवश्यक वस्तु कानून के संशोधन खुले आम जमाखोरी और कालाबाजारी को बढ़ावा देंगे, खाने की कीमतें कम से कम हर साल डेढ़ गुना बढ़ाने की अनुमति देंगे और राशन व्यवस्था को चैपट कर देंगे. आपके कानून में यह भी लिखा है कि सरकार इन कंपनियों को प्रमोट करेगी, क्योंकि इस सबसे चल रही खेती बरबाद हो जाएगी और किसान खेतों से बेदखल हो जाएंगे, उनकी व जुड़े हुए सभी लोगों की जीविका छिन जाएगी, इसलिए आपसे आग्रह किया कि आप इन कानूनों को वापस ले लें.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)