सत्ता में आए तो सबरीमला पर बनेगा क़ानून, अनधिकृत प्रवेश पर रोक सुनिश्चित करेंगे: केरल कांग्रेस

2018 में सुप्रीम कोर्ट ने केरल के प्राचीन सबरीमला मंदिर में 10 से 50 वर्ष के आयु समूह की महिलाओं के प्रवेश न करने की परंपरा के ख़िलाफ़ उन्हें प्रवेश की अनुमति दी थी. प्रदेश कांग्रेस का कहना है कि अगर वे सत्ता में आए तो मंदिर की परंपरा की रक्षा के लिए क़ानून बनेगा और इसके उल्लंघन पर दो साल की सज़ा होगी.

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सबरीमाला मंदिर (फोटो साभार: facebook.com/sabrimalaofficial)

2018 में सुप्रीम कोर्ट ने केरल के प्राचीन सबरीमला मंदिर में 10 से 50 वर्ष के आयु समूह की महिलाओं के प्रवेश न करने की परंपरा के ख़िलाफ़ उन्हें प्रवेश की अनुमति दी थी. प्रदेश कांग्रेस का कहना है कि अगर वे सत्ता में आए तो मंदिर की परंपरा की रक्षा के लिए क़ानून बनेगा और इसके उल्लंघन पर दो साल की सज़ा होगी.

सबरीमाला मंदिर (फोटो साभार: facebook.com/sabrimalaofficial)
सबरीमाला मंदिर (फोटो साभार: facebook.com/sabrimalaofficial)

तिरुवनंतपुरम/कोट्टायम: केरल में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने शनिवार को कहा कि संयुक्त प्रजातांत्रिक मोर्चा (यूडीएफ) राज्य में अगर सत्ता आता है तो वह सबरीमला मंदिर की परंपरा की रक्षा के लिए कानून बनाएगा.

पार्टी की इस घोषणा पर सत्तारूढ़ वाम मोर्चे ने कहा कि वह राज्य के लोगों को मूर्ख बना रही है.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं विधायक टी. राधाकृष्णन ने कानून का प्रारूप जारी करते हुए कहा कि चुनाव के बाद अगर कांग्रेस की अगुवाई वाला यूडीएफ सत्ता में आता है तो इस कानून को पारित किया जाएगा.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, राधाकृष्णन ने कहा शनिवार को सबरीमला कानून का मसौदा जारी करते हुए कहा, ‘कांग्रेस पार्टी इस मंदिर की बरसों पुरानी परंपरा की रक्षा करना चाहती है. इस प्रस्तावित कानून के मुताबिक इस परंपरा का उल्लंघन और इसे दी गई किसी भी तरह की चुनौती संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखी जाएगी. इसे सबरीमला अयप्पा भक्त (धार्मिक अधिकारों की सुरक्षा, रिवाज और प्रयोग) अधिनियम 2021 के नाम से जाना जाएगा. केंद्र और राज्य दोनों को ही इस बारे में कानून बनाने का अधिकार है और अगर केरल में कांग्रेस सत्ता में आती है तो मंदिर की परंपराओं की रक्षा के लिए कानून लाएगी.

उन्होंने कोट्टायम में पत्रकारों से कहा, ‘इस प्रस्तावित कानून के तहत सबरीमला में अनधिकृत प्रवेश पर रोक सुनिश्चित की जाएगी और उल्लंघन करने पर दो साल तक की सजा का प्रावधान होगा.’

कांग्रेस ने हाल में कहा था कि वाम सरकार समाज के उन जख्मों को भरने के लिए कानूनी उपचार करे, जो सितंबर 2018 में उच्चतम न्यायालय के फैसले को लागू करने के लिए जल्दबाजी में लिए गए निर्णय के कारण लगे थे.

शीर्ष अदालत का फैसला सबरीमला में भगवान अयप्पा मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश से संबंधित था.

2018 में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से फैसला दिया. कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को मंदिर में घुसने की इजाजत न देना अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है.

तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा ने पीठ का फैसला पढ़ते हुए कहा था, ‘महिलाएं पुरुषों के मुकाबले कम नहीं होती हैं. धर्म के पितृसत्ता को आस्था के ऊपर हावी होने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. जैविक या शारीरिक कारणों को आस्था के लिए स्वतंत्रता में स्वीकार नहीं किया जा सकता है. धर्म मूल रूप से जीवन का मार्ग है हालांकि कुछ प्रथाएं विसंगतियां बनाती हैं.’

फैसले में यह भी कहा गया कि अयप्पा भक्त एक अलग धार्मिक संप्रदाय नहीं बनाएंगे. कोर्ट ने केरल सार्वजनिक पूजा (प्रवेश का प्राधिकरण) 1965 के नियम 3 (बी), जो सबरीमला में महिलाओं के प्रवेश को प्रतिबंधित करता है, को असंवैधानिक माना और इस प्रावधान को खत्म कर दिया.

बता दें कि कि इस प्राचीन मंदिर में 10 साल से लेकर 50 साल तक की उम्र की महिलाओं का प्रवेश वर्जित था. ऐसा माना जाता है कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी हैं और चूंकि इस उम्र की महिलाओं को मासिक धर्म होता है, इससे मंदिर की पवित्रता बनी नहीं रह सकेगी.

मंदिर में इस आयु समूह की महिलाओं को प्रवेश की अनुमित के बाद दक्षिणपंथी और भाजपा कार्यकर्ताओं ने दक्षिणी राज्य में प्रदर्शन किया था. फैसले पर पुनर्विचार के लिए सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लंबित हैं.

यह पूछे जाने पर कि क्या सबरीमला चुनावी मुद्दा होगा, राधाकृष्णन ने कहा, ‘यह ऐसा मसला है जिसने लाखों भक्तों को ठेस पहुंचाई है. यह मुद्दा आज भी जिंदा है क्योंकि माकपा सरकार इससे निष्ठा रखने वालों के हितों की रक्षा करने के लिए तैयार नहीं है. करीब पचास हजार भक्तों पर सरकार द्वारा मुक़दमे दर्ज किए गए, जब वे महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. भक्त इस मुद्दों को कैसे भूल सकते हैं जब वे इसका केस लड़ रहे हैं?’

उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राज्य की माकपा सरकार ने इसे लेफ्ट और केरल के ‘प्रगतिशील’ रवैये को बताते हुए हाथोंहाथ लिया था, लेकिन बाद में, उनका उत्साह ठंडा पड़ गया.

खासतौर पर 2019 लोकसभा चुनाव में हुए नुकसान के लिए माकपा ने इस फैसले को लेकर उठी नारजगी को एक वजह माना था.

कांग्रेस को उम्मीद है कि आगामी विधानसभा चुनाव में सबरीमला का मुद्दा उसे हिंदू वोट दिलाने में मददगार साबित होगा, खासकर तब जब भाजपा राज्य में एक मजबूत दावेदार के तौर पर उभर रही है.

शनिवार को भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य पीके कृष्णदास में सवाल किया कि क्या पिनराई विजयन ‘भक्तों के साथ देने’ के लिए तैयार हैं.

उन्होंने कहा, ‘सबरीमला मुद्दे पर केवल भाजपा और हिंदू संगठन ही भक्तों के साथ खड़े हुए थे. कांग्रेस और राहुल गांधी ने राज्य सरकार का ही साथ दिया था.’

राज्य के कांग्रेस नेताओं के उलट कांग्रेस की राष्ट्रीय इकाई ने सबरीमला में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति का समर्थन किया था.

विधानसभा चुनावों के कारण सबरीमाला मंदिर का मुद्दा उठा रहा है यूडीएफ: विजयन

केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन ने शुक्रवार को कहा कि कांग्रेस नीत संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (यूडीएफ) विधानसभा चुनाव की वजह से सबरीमाला का मुद्दा उठा रहा है, जो उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है.

मुख्यमंत्री ने शीर्ष अदालत द्वारा मामले का निपटारा करने के बाद राज्य सरकार समाज के सभी वर्गों से चर्चा के बाद उचित फैसला लेगी.

विजयन ने कहा, ‘ कांग्रेस अपने चुनाव प्रचार के लिए सबरीमाला का इस्तेमाल कर रही है. हाल के स्थानीय निकाय चुनाव में भी, यूडीएफ ने मामले को उठाने की कोशिश की थी, लेकिन लोगों ने उसे मुहंतोड़ जवाब दिया. अब यूडीएफ सोच रहा है कि वे सबरीमाला के नाम पर वोट बटोर सकता है. ‘

बहरहाल, कांग्रेस के कानून लाने की बात पर माकपा के राज्य सचिव प्रभारी ए. विजयराघवन ने कहा कि एलडीएफ सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार काम करेगी जबकि यूडीएफ लोगों को मूर्ख बना रहा है.

उन्होंने कहा, ‘लोग कांग्रेस का एजेंडा और कानून को चुनौती देने के प्रयास को समझ जाएंगे क्योंकि ऐसे मामले पर कानून बनाना मुमकिन ही नहीं है जो उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन हो.

उन्होंने कहा, ‘सबरीमला में महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ नया कानून बनाने की यूडीएफ की घोषणा सिर्फ राज्य के लोगों को मूर्ख बनाने के लिए है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)