कोविड 19ः शवदाह गृहों में लंबी क़तारें आधिकारिक आंकड़ों में हेरफेर की गवाही दे रही हैं

कई राज्यों में कोरोना मृतकों की आधिकारिक संख्या और कोरोना प्रोटोकॉल के तहत निश्चित श्मशानों में हो रहे दाह संस्कार के आंकड़ों के बीच बहुत बड़ा अंतर है. मसलन, 12 अप्रैल को भोपाल के भदभदा में 37 शवों का दाह संस्कार होना था, लेकिन उस रोज़ के स्वास्थ्य बुलेटिन में पूरे राज्य में केवल 37 मौतें होने की बात कही गई थी.

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भोपाल का एक शवदाह गृह. (फोटो: पीटीआई)

कई राज्यों में कोरोना मृतकों की आधिकारिक संख्या और कोरोना प्रोटोकॉल के तहत निश्चित श्मशानों में हो रहे दाह संस्कार के आंकड़ों के बीच बहुत बड़ा अंतर है. मसलन, 12 अप्रैल को भोपाल के भदभदा में 37 शवों का दाह संस्कार होना था, लेकिन उस रोज़ के स्वास्थ्य बुलेटिन में पूरे राज्य में केवल 37 मौतें होने की बात कही गई थी.

भोपाल का एक श्मशान गृह. (फोटो: पीटीआई)
भोपाल का एक श्मशान गृह. (फोटो: पीटीआई)

बेंगलुरूः मध्य प्रदेश के भोपाल के एक शवदाह गृह में कोरोना मृतकों के शवों का ढेर लगा है और यहां मौजूद एक कोरोना मृतक के परिजन ने एनडीटीवी को बताया कि उन्होंने आखिरी बार इसी तरह का दृश्य 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के समय देखा था.

उन्होंने कहा,  ‘मैंने बीते चार घंटों में यहां 30 से 40 शव देखे हैं.’ हालांकि, इस संकट की यह भयावहता मध्य प्रदेश के आधिकारिक आंकड़ों से मेल नहीं खाती.

वास्तव में एनडीटीवी की रिपोर्ट में कहा गया कि कोरोना मृतकों के आधिकारिक आंकड़ों और कोरोना प्रोटोकॉल के तहत निश्चित श्मशानों में दाह संस्कार होने वाले शवों के आंकड़ों के बीच बहुत बड़ा अंतर है.

भोपाल के भदभदा में 12 अप्रैल को 37 शवों का दाह संस्कार किया जाना था लेकिन मध्य प्रदेश के उस दिन के स्वास्थ्य बुलेटिन में पूरे राज्य में उस दिन सिर्फ 37 मौतों का जिक्र था.

ठीक इसी तरह आठ अप्रैल को 35 शवों का अकेले भोपाल में ही अंतिम संस्कार किया गया लेकिन स्वास्थ्य बुलेटिन में 27 मौतों का जिक्र था. वहीं, नौ अप्रैल को 35 शव थे लेकिन बुलेटिन में 23 मौतों का जिक्र किया गया था.

हालांकि, राज्य सरकार ने किसी तरह की गड़बड़ी से इनकार किया है. राज्य के शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग का कहना है कि हमें मौत के आंकड़ों में गड़बड़ी कर कोई अवॉर्ड नहीं मिलेगा.

हालांकि, मौतों की संख्या में अंतर साफ है. उदाहरण के लिए, 11 अप्रैल को भोपाल के शवदाह गृह में 68 शवों का अंतिम संस्कार किया गया जबकि इंदौर में पांच शवों का लेकिन राज्य के स्वास्थ्य बुलेटिन में मध्य प्रदेश में सिर्फ 24 मौतों का ही जिक्र था.

पूर्व में मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में भी कोरोना की वजह से हुई मौतों के आंकड़ों में अंतर था. आमतौर पर ऐसा कुछ राजनीतिक दलों द्वारा यह दिखाने के प्रयास होता है कि उनके राज्य में हालात दूसरे राज्य से बेहतर है.

पिछले साल मार्च से सितंबर के बीच कोरोना के मामलों में बेतहाशा वृद्धि देखी गई थी. दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और गुजरात में दाह संस्कार किए गए शवों और आधिकारिक आंकड़ों में भी इसी तरह की असमानता देखी गई थी.

द वायर साइंस   को प्राप्त जानकारी के अनुसार, महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और पुडुचेरी के स्वास्थ्य अधिकारियों ने आधिकारिक आंकड़ों में कोरोना से हुई संदिग्ध मौतों को शामिल नहीं किया था.

आंकड़ों में इस तरह की सबसे अधिक गड़बड़ी गुजरात से सामने आई थी, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राज्य हैं और जो कई अवसरों पर विकास के गुजरात मॉडल की पैरवी कर चुके हैं.

अहमदाबाद में नगर निगम के आंकड़ों में कहा गया है कि 27 नवंबर 2020 को कोरोना से 19 लोगों की मौत हुई है लेकिन स्थानीय पत्रकारों ने एक शवदाह गृह में पीड़ित परिवार से बात की तो उन्हें पता चला कि वे अंतिम संस्कार के लिए 36वें स्थान पर है और उन्हें कई शवदाह गृहों में शवों की भारी भीड़ होने की वजह से लौटना पड़ा.

दिल्ली, महाराष्ट्र और तमिलनाडु सहित कुछ राज्यों ने अपने यहां मौतों के आंकड़ों का पुनर्मिलान किया है. उदाहरण के लिए मुंबई में जून 2020 में 1,700 लोगों को ‘मिस्ड डेथ’ श्रेणी में रखा गया.

महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने हाल ही में पुणे प्रशासन को आंकड़ों का पुनर्मिलान करने को कहा है. दो फरवरी को पुणे में कोरोना के 4,971 सक्रिय मामले दर्ज हुए थे लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों में यह संख्या 13,487 रही, जो मुंबई और ठाणे सभी ज्यादा थी.

संशोधन के बाद यह संख्या 9,123 हो गई लेकिन तब भी यह संख्या मुंबई से अधिक थी लेकिन पुणे प्रशासन द्वारा स्वीकृत आंकड़ों से यह और भी अधिक थी.

गणितज्ञ और डिजीज ट्रांसमिशन मॉडलर मुराद बानाजी ने बताया था कि आंकड़ों में यह अंतर उस समय भी सामने आता है, जब आधिकारिक आंकड़ों की मौजूदा कोरोना की केस फैटेलिटी रेट (सीएफआर) से तुलना की जाती है. पिछले साल यह संख्या लगभग 1 फीसदी के आसपास थी.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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