वैक्सीन नीति पर पुनर्विचार को लेकर केंद्र ने कहा- इसमें अदालत के हस्तक्षेप की ज़रूरत नहीं

बीते 30 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जिस तरह से केंद्र सरकार की वर्तमान वैक्सीन नीति को बनाया गया है, इससे प्रथमदृष्टया जनता के स्वास्थ्य के अधिकार को क्षति पहुंचेगी, जो कि संविधान के अनुच्छेद 21 का एक अभिन्न तत्व है. सुप्रीम कोर्ट ने वैक्सीन निर्माता कंपनियों द्वारा अलग-अलग कीमत तय करने के संबंध में केंद्र से जानकारी मांगी थी.

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Pune: Prime Minister Narendra Modi at Serum Institute of India, during his 3 city visit to review COVID-19 vaccine development work, in Pune, Saturday, Nov. 28, 2020. (PIB/PTI Photo)(PTI28-11-2020 000207B)

बीते 30 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जिस तरह से केंद्र सरकार की वर्तमान वैक्सीन नीति को बनाया गया है, इससे प्रथमदृष्टया जनता के स्वास्थ्य के अधिकार को क्षति पहुंचेगी, जो कि संविधान के अनुच्छेद 21 का एक अभिन्न तत्व है. सुप्रीम कोर्ट ने वैक्सीन निर्माता कंपनियों द्वारा अलग-अलग कीमत तय करने के संबंध में केंद्र से जानकारी मांगी थी.

Pune: Prime Minister Narendra Modi at Serum Institute of India, during his 3 city visit to review COVID-19 vaccine development work, in Pune, Saturday, Nov. 28, 2020. (PIB/PTI Photo)(PTI28-11-2020 000207B)
पुणे स्थित सीरम इंस्टिट्यूट के लैब में वैक्सीन की तैयारी का जायजा लेते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: केंद्र ने रविवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसकी वैक्सीन नीति वैक्सीन की सीमित उपलब्धता, जोखिम का मूल्यांकन और महामारी के अचानक आने के कारण पूरे देश में एक बार में संभव नहीं हो सकने के तथ्यों को मुख्य रूप से ध्यान में रखते हुए तैयार की गई थी.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र ने कहा है, ‘यह नीति न्यायसंगत, गैर-भेदभावपूर्ण और दो आयु समूहों (45 से अधिक और नीचे वाले) के बीच एक समझदार अंतर कारक पर आधारित थी.’

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में केंद्र ने कहा, ‘इस प्रकार यह नीति भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के अनुसार है और विशेषज्ञों, राज्य सरकार और वैक्सीन निर्माताओं के साथ परामर्श और चर्चा के कई दौर के बाद बनी है.’

हलफनामे में कहा गया है, ‘नीति को इस माननीय न्यायालय द्वारा किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इस स्तर की एक महामारी से निपटने के दौरान कार्यपालिका के पास जनहित में फैसले लेने का अधिकार है.’

बता दें कि, बीते 30 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने महामारी के दौरान आपूर्ति और जरूरी सेवाओं के पुनर्वितरण से संबंधी एक स्वत: संज्ञान याचिका को लेकर कहा था कि जिस तरह से केंद्र की वर्तमान वैक्सीन नीति को बनाया गया है, इससे प्रथमदृष्टया जनता के स्वास्थ्य के अधिकार को क्षति पहुंचेगी, जो कि संविधान के अनुच्छेद 21 का एक अभिन्न तत्व है.

1 मई से लागू होने वाली उदारीकृत और त्वरित राष्ट्रीय कोविड-19 टीकाकरण रणनीति के तहत वैक्सीन निर्माता अपनी मासिक सेंट्रल ड्रग लैबोरेटरी (सीडीएल) से 50 प्रतिशत की आपूर्ति केंद्र को करेंगे और शेष 50 प्रतिशत की आपूर्ति भारत सरकार के अलावा अन्य के लिए करेंगे यानी, राज्य सरकारें, निजी अस्पताल और औद्योगिक प्रतिष्ठानों के अस्पताल.

इस रणनीति के तहत भारत सरकार के अलावा अन्य के तहत 18-44 वर्ष आयु वर्ग के टीकाकरण की अनुमति है. अदालत ने कहा था कि निर्माता केंद्र और राज्यों से दो अलग-अलग मूल्य वसूल रहे हैं.

मूल्य निर्धारण पर केंद्र के हलफनामे में कहा गया है कि हालांकि राज्यों ने वैक्सीन की खरीद की है, लेकिन केंद्र ने वैक्सीन निर्माताओं के साथ अनौपचारिक विचार-विमर्श करके यह सुनिश्चित किया है कि मूल्य सभी राज्यों के लिए समान हो.

इसमें कहा गया है कि राज्यों के बीच टीकों का वितरण भी न्यायसंगत और तर्कसंगत मानदंडों पर आधारित है ताकि अन्य राज्यों के निवासियों पर किसी राज्य की सौदेबाजी करने की क्षमता से पड़ने वाले अंतर की संभावना को खत्म किया जा सके.

हलफनामे में कहा गया, ‘अपने बड़े टीकाकरण कार्यक्रम की प्रकृति के अनुसार केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों और निजी अस्पतालों के विपरीत टीके के लिए बड़े खरीद आदेश दिए हैं और इसलिए टीके की कीमतों में इसका कुछ असर दिखाई देता है.’

केंद्र ने कहा, ‘मूल्य कारक का अंतिम लाभार्थी, यानी वैक्सीन प्राप्त करने वाले पात्र व्यक्ति, पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि सभी राज्य सरकारों ने अपने नीतिगत निर्णय पहले ही घोषित कर दिए हैं कि प्रत्येक राज्य मुफ्त में अपने निवासियों को वैक्सीन दिलाएगा.’

उसने कहा, ‘इस प्रकार जबकि यह सुनिश्चित किया जाता है कि दोनों वैक्सीन निर्माता सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक जनता के पैसे से गलत तरीके से समृद्ध नहीं हो हैं, वैक्सीन की दोनों खुराक के लिए नागरिकों को कोई भुगतान नहीं करना चाहिए.’

सरकार ने कहा कि दोनों निर्माताओं ने इन टीकों के विकास और निर्माण में वित्तीय जोखिम उठाया है और वर्तमान परिस्थितियों में अंतिम उपाय के रूप में वैधानिक प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए पारदर्शी परामर्श प्रक्रिया में बातचीत के माध्यम से मूल्य निर्धारण पर निर्णय लेना समझदारी है.

वैक्सीन की कमी और अधिक वैश्विक वैक्सीन निर्माताओं को लाने की तैयारी का उल्लेख करते हुए हलफनामे में भारत में वैक्सीन मूल्य निर्धारण निर्णय की संभावना का उल्लेख किया गया है, जिससे वैश्विक वैक्सीन निर्माताओं को देश में लाने के प्रयासों पर एक अनिवार्य प्रभाव पड़ता है.

सरकार ने कहा कि 18-44 आयु वर्ग की श्रेणी के टीकाकरण के लिए राज्यों को उपलब्ध 50 प्रतिशत खुराक का आधा हिस्सा निजी क्षेत्र में जाएगा और जो लोग इसे वहन कर सकते हैं, वही सरकार के टीकाकरण सुविधाओं पर परिचालन तनाव को कम करेंगे.

सरकार ने हालांकि जोर दिया कि यह आवंटन जो कि अधिक विवेकपूर्ण है, तथ्यों के अनुसार उनके संबंधित प्रदर्शन और टीकों की उपलब्धता के अनुसार, तर्कसंगत बदलाव से गुजर सकता है.

हलफनामे में महामारी के प्रबंधन जैसे मामलों में न्यायिक समीक्षा के लिए सीमित गुंजाइश की ओर इशारा किया गया है और कहा गया है कि केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य और नागरिकों के हित को अच्छी तरह से ध्यान में रखते हुए क्षेत्र में विशेषज्ञों के साथ परामर्श में अपने कार्यकारी नीतिगत फैसले सबसे वैज्ञानिक तरीके से लिए हैं.

नागरिकों के स्वास्थ्य और कल्याण को ध्यान में रखते हुए राष्ट्र के सामने आने वाले अभूतपूर्व मानव संकट के संदर्भ में मुख्य और एकमात्र केंद्र बिंदु के रूप में, कोई दूसरा अनुमान लगाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि प्रभावी महामारी प्रबंधन के लिए इस तरह के निर्णय लेने में कई कारक हैं. जिसके लिए कोई न्यायिक प्रबंधनीय मानक नहीं हो सकते हैं.

क्या है मामला

बता दें कि शुरुआत में केंद्र सरकार ने कोविशील्ड और कोवैक्सीन दोनों ही वैक्सीनों के लिए 150 रुपये प्रति खुराक पर समझौता किया था, लेकिन जैसे ही सरकार ने वैक्सीन उत्पादकों को राज्यों और खुले बाजार के लिए कीमत तय करने की छूट दी, वैसे ही दोनों ही कंपनियों ने राज्यों और निजी कंपनियां के लिए कई गुणा बढ़े हुए दाम निर्धारित कर दिए.

हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक ने अपने कोविड-19 टीके ‘कोवैक्सीन’ की कीमत राज्य सरकारों के लिए 600 रुपये प्रति खुराक और निजी अस्पतालों के लिए 1,200 रुपये प्रति खुराक निर्धारित की है.

वहीं, पुणे स्थित सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) ने अपने कोविड-19 टीके ‘कोविशील्ड’ की राज्य सरकारों के लिए कीमत 400 रुपये प्रति खुराक तय की थी और निजी अस्पतालों के लिए 600 रुपये प्रति खुराक घोषित की है.

इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि भारत के निजी अस्पतालों के लिए कोविशील्ड की 600 रुपये प्रति खुराक की कीमत दुनिया में सबसे अधिक है जो 1 मई से उपलब्ध होगी.

रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा तब भी हो रहा है, जबकि वैक्सीन का उत्पादन पुणे स्थित सीरम इंस्टिट्यूट कर रही है, जिसके मुख्य कार्यकारी अधिकारी अदार पूनावाला ने कहा था कि 150 रुपये प्रति खुराक की कीमत पर भी उनकी कंपनी मुनाफा कमा रही है.

कई राज्यों ने टीकों की अलग-अलग कीमतों पर आपत्ति जताई थी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस पार्टी ने कहा था कि यह मुनाफाखोरी का समय नहीं है.

इसके बाद केंद्र सरकार ने 26 अप्रैल को सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक से कहा था कि वे अपने कोविड-19 टीकों की कीमत कम करें.

वहीं, 27 अप्रैल को जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस एस. रवींद्र भट की पीठ ने कहा, ‘अलग-अलग कंपनियां अलग-अलग कीमत तय कर रही हैं. केंद्र इस बारे में क्या कर रहा है.

इसके बाद सीरम इंस्टिट्यूट ने राज्यों को बेचे जाने वाले टीके की कीमत क्रमश: 400 रुपये से कम कर 300 रुपये प्रति खुराक और भारत बायोटेक ने 600 रुपये से घटाकर 400 रुपये प्रति खुराक कर दी थी.

हालांकि, इसके बाद 30 अप्रैल को मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पूछा कि केंद्र कोविड टीकों पर पेटेंट अधिनियम के तहत अनिवार्य लाइसेंसिंग की शक्तियों पर विचार क्यों नहीं कर रहा है.

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