केंद्र सरकार ने कहा है कि खुफिया और सुरक्षा संबंधी संस्थानों में काम कर चुके सेवानिवृत्त अधिकारियों को संस्थान प्रमुख को वचन देना होगा कि वे इस प्रकार की सूचना प्रकाशित नहीं करेंगे. ऐसा नहीं करने पर उनकी पेंशन रोक लगा दी जाएगी या वापस ले ली जाएगी. इसके अलावा संगठन प्रमुख फैसला करेगा कि प्रस्तावित सामग्री संवेदनशील है या नहीं.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने खुफिया और सुरक्षा संबंधी संस्थानों में काम कर चुके सेवानिवृत्त अधिकारियों को संवेदनशील जानकारी प्रकाशित करने से रोकने संबंधी अपने नियमों में संशोधन करके नए उपनियम शामिल किए हैं.
इनमें यह शर्त भी शामिल है कि अधिकारी ‘संस्थान के कार्य क्षेत्र’ या किसी कर्मचारी संबंधी कोई सामग्री साझा नहीं कर सकते हैं.
केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) संशोधन नियम, 2021 को मंगलवार देर रात अधिसूचित किया गया. इन नियमों में कहा गया है कि सेवानिवृत्त कर्मचारियों को इस प्रकार की सामग्री प्रकाशित करने के लिए ‘संस्थान प्रमुख’ से पूर्व में अनुमति लेनी होगी. इससे पहले 2007 के नियमों के अनुसार, विभाग के प्रमुख से अनुमति लेनी होती थी.
संशोधन में कहा गया है, ‘सभी कर्मचारियों को संस्थान प्रमुख को वचन देना होगा कि वे इस प्रकार की सूचना प्रकाशित नहीं करेंगे और ऐसा नहीं करने पर उनकी पेंशन रोक लगा दी जाएगी या वापस ले ली जाएगी.’
मार्च 2008 में अधिसूचित केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) संशोधन नियम 2007 के अनुसार, इस प्रकार से सभी कर्मचारियों के लिए ऐसी कोई भी संवेदनशील जानकारी प्रकाशित करना पहले से ही प्रतिबंधित है ‘जिसका खुलासा करने से भारत की सम्प्रभुता एवं अखंडता को नुकसान पहुंचता हो.’
संशोधित प्रावधान में अब कहा गया है, ‘किसी खुफिया या सुरक्षा संबंधी संस्थान में काम कर चुका कोई भी अधिकारी संगठन प्रमुख की पूर्व अनुमति के बिना सेवानिवृत्ति के बाद संगठन के कार्य क्षेत्र संबंधी कोई सामग्री प्रकाशित नहीं करेगा, वह किसी कर्मचारी या उसके पद के बारे में कोई जानकारी साझा नहीं करेगा और संस्थान में काम के दौरान प्राप्त ज्ञान या विशेषज्ञता को साझा नहीं करेगा.’
इससे पहले 2007 के नियमों में संस्थान के कार्य क्षेत्र और किसी कर्मचारी संबंधी जानकारी का जिक्र नहीं था. एक अधिकारी ने कहा, ‘कार्य क्षेत्र का अर्थ किसी संस्थान के कामकाज के मुख्य क्षेत्र या मुख्य क्षेत्रों से हो सकता है.’
संशोधित नियमानुसार संगठन प्रमुख फैसला करेगा कि प्रस्तावित सामग्री संवेदनशील है या नहीं और वह संस्थान के कार्य क्षेत्र में आती है या नहीं.
2007 के नियमों के तहत कर्मचारियों के लिए सेवानिवृत्ति के बाद ऐसी संवेदनशील जानकारी प्रकाशित करना प्रतिबंधित था ‘जिसके खुलासा होने से भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, रणनीतिक, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों या किसी अन्य देश के साथ संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है या किसी अपराध को उकसाया जा सकता है.’
ये नियम उन कर्मचारियों पर लागू होते हैं, जो खुफिया विभाग (आईबी), अनुसंधान एवं विश्लेषण विंग (रॉ), राजस्व खुफिया निदेशालय, केंद्रीय आर्थिक खुफिया ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय, विमानन अनुसंधान केंद्र, सीमा सुरक्षा बल, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस आदि से सेवानिवृत्त हैं.
ये सभी संस्थान आरटीआई अधिनियम की दूसरी अनुसूची में भी हैं, जिससे संबंधित जानकारी जनता को मुहैया नहीं कराई जाती है.
मोदी सरकार ने 27 नवंबर, 2014 को सिविल सेवा आचरण नियमों में संशोधन करते हुए नियम 3 (1) में कुछ खंड जोड़े हैं. इसमें से एक में कहा गया कि ‘हर सरकारी कर्मचारी हर समय राजनीतिक तटस्थता बनाए रखेगा.’ लेकिन यह तभी तक लागू होता है, जब तक अधिकारी पद पर है.
साल 2013 में चुनाव आयोग ने सेवानिवृत्ति के बाद नौकरशाहों के राजनीति में शामिल होने के लिए ‘कुछ समय रुकने’ का सुझाव दिया था, हालांकि इसे अस्वीकार कर दिया गया.
सेवानिवृत्ति के बाद कहीं नौकरी लेने के लिए एक साल रुकने की समयसीमा है. लेकिन राजनीति में आने का ऐसा कोई प्रावधान नहीं है. यदि कोई अधिकारी सेवानिवृत्ति के एक वर्ष के भीतर व्यावसायिक रोजगार में शामिल होना चाहता है तो उसे सरकार से अनुमति लेनी होती है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)