पंजाब में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं लेकिन उससे पहले मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच खींचतान बढ़ती जा रही है. हालात ये हैं कि इस विवाद को ख़त्म करने के लिए पार्टी आलाकमान ने तीन सदस्यों की समिति गठित की है. वहीं मंगलवार को कैप्टन दिल्ली पहुंच गए हैं.
चंडीगढ़: एक साल से भी कम समय में पंजाब में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं लेकिन उससे पहले ही पंजाब कांग्रेस दो खेमों बंट गई है. कांग्रेस में यह लड़ाई मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और उनको चुनौती देने नवजोत सिंह सिद्धू के आमने-सामने आने के कारण पैदा हुई है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, दोनों नेताओं के बीच उपजे विवाद को शांत कराने के लिए दिल्ली में पार्टी आलाकमान को एक तीन सदस्यों की समिति गठित करनी पड़ी. यहां तक की संकट के सही आकलन के लिए राज्य के करीब 150 नेताओं को पिछले महीने तलब भी किया गया था.
उसके बाद से ही राज्य इकाई दिल्ली के अगले आदेश का इंतजार कर रही है. पंजाब में वर्तमान में 117 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के पास 80 सीटें हैं.
अप्रैल की शुरुआत में गुरु ग्रंथ साहिब की कथित बेअदबी मामले में प्रदर्शनकारियों पर कोटकपुरा पुलिस फायरिंग में अकाली दल सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को हाईकोर्ट द्वारा क्लीन चिट देने से राजनीतिक संकट पैदा हो गया था.
2019 में मंत्रिमंडल में फेरबदल और अपना पोर्टफोलियो खोने के बाद कैबिनेट छोड़कर बेहद शांत रहे सिद्धू पहली बार खुलकर सामने आए और जांच में लापरवाही के लिए अमरिंदर की आलोचना की. इसके बाद कई मंत्री उनके साथ आ गए.
कुछ ही दिनों के अंदर राजनीतिक तापमान तब और बढ़ गया जब सिद्धू जमीनी स्तर पर सरकार के खिलाफ कई शिकायतें उठाने लगे, जिसमें कथित दोषपूर्ण खरीद समझौतों के कारण उच्च बिजली शुल्क, नौकरियों की कमी, नशा तस्करों के खिलाफ निष्क्रियता के आरोप और मुख्यमंत्री तक पहुंच न होना शामिल था.
69 विधानसभा सीटों वाले मालवा क्षेत्र के कई विधायकों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि पार्टी को बेअदबी के दोषियों को दंडित करना चाहिए. फरीदकोट के विधायक कुशलदीप सिंह ढिल्लों ने कहा, ‘इस मुद्दे ने अकालियों को बर्बाद कर दिया. अगर हम सही और जरूरत वाली चीजें नहीं करते हैं, तो हमें इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी.’
बता दें कि माझा और दोआबाा क्षेत्रों में क्रमश: 25 और 23 सीटें हैं.
संगरूर के धूरी से पहली बार विधायक बने दलवीर सिंह गोल्डी ने कहा कि आम धारणा यह है कि मामले की जांच कर रही एसआईटी के प्रमुख कुंवर विजय प्रताप सिंह की निगरानी किसी ने नहीं की.
गोल्डी ने कहा कि यह अजीब है कि पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा एसआईटी को रद्द करने के तुरंत बाद उन्होंने पुलिस बल छोड़ दिया और आप में शामिल हो गए.
अब तक लड़ा गया अपना हर चुनाव जीतने वाले मालवा के एक वरिष्ठ विधायक ने कहा कि उन्होंने तीन सदस्यीय पैनल को स्पष्ट कर दिया है कि अगर पार्टी ने अपने वादों को पूरा नहीं किया, तो वह अगले साल चुनाव नहीं लड़ेंगे.
एक अन्य विधायक ने सहमति व्यक्त की, ‘यदि आप अपने सामने एक कुआं देखते हैं, तो क्या आप कूदेंगे?’
बिजली कटौती के विरोध का जिक्र करते हुए दोआबा के एक विधायक ने पूछा, ‘क्या बिजली विभाग को नहीं पता था कि एक बिजली संयंत्र को बंद किया जा रहा है और धान के मौसम में अधिक मांग होगी? बिजली विभाग मुख्यमंत्री के पास है.’
इसके अलावा, राज्य भर में पहुंच न होने और लालफीताशाही की शिकायतें गूंजती रहीं. कुछ युवा विधायकों ने शिकायत की कि मुख्यमंत्री और उनके अधिकारियों से मिलना आसान नहीं है.
मालवा में एक राजनीतिक परिवार के एक विधायक ने कहा, ‘मैं एक विरासत के साथ पैदा होने के लिए भाग्यशाली हूं, मेरे संपर्क हैं, मैं अपना रास्ता बना सकता हूं लेकिन दूसरों का नहीं.’
विधायक ने कहा, ‘मैं समझ सकता हूं कि मुख्यमंत्री को केंद्र और अन्य मामलों से निपटना है, लेकिन इन मंत्रियों का क्या?’
कई विधायकों ने लोकलुभावन वादों को लेकर असंतोष जाहिर किया. दो विधायकों फतेह जंग सिंह बाजवा और राकेश पांडे के बेटों को नौकरी दिए जाने के विवाद पर एक विधायक ने कहा, ‘प्रशांत किशोर (चुनावी रणनीतिकार) ने घर-घर रोजगार का नारा दिया था. लेकिन इसका खामियाजा हमें भुगतना पड़ता है. नौकरियां कहां हैं? और कैप्टन ने एक धनी विधायक के बेटे को इंस्पेक्टर की नौकरी देकर लोगों के जख्मों पर नमक छिड़का.’
हालांकि, इन सबके बीच सिद्धू को संतुष्ट कैसे किया जाए, इसका जवाब किसी के पास नहीं है.
प्रदेश अध्यक्ष का पद विकल्प होने के सवाल पर दोआबा के गढ़शंकर से एक पूर्व विधायक लव कुमार गोल्डी कहते हैं, ‘हम शुद्ध कांग्रेस कार्यकर्ता हैं, हम जीवन भर पार्टी के लिए काम करते रहे हैं. फिर भी आपके पास भाजपा, आप और अकाली दल से पैराशूटिंग करने वाले लोग हैं और हमारे हिस्से को खाकर मंत्री पद प्राप्त कर रहे हैं.’
कुछ लोग सिद्धू के मिजाज से सावधान हैं. सिद्धू के करीबी जालंधर के एक विधायक ने बताया कि कैसे हाल ही में एक बैठक में, उन्होंने पूर्व क्रिकेटर को बताया कि अगर उन्होंने पहले ही कॉल लेना बंद कर दिया है, अगर वह सीएम बन गए तो क्या होगा.
लुधियाना के एक अन्य विधायक ने कहा कि सिद्धू को स्पीकर के रूप में रखा जाना चाहिए क्योंकि लोग उन्हें सुनकर आनंद लेते हैं.
अमलोह के विधायक रणदीप नाभा ने किसी का नाम लिए बिना आगाह किया कि ‘व्यक्तित्व आधारित और प्रतिशोधी राजनीति विकास के लिए एक बाधा है.’
इस बीच जो बात स्पष्ट तौर पर दिखती है वो ये कि व्यापक बदलाव की कोई मांग नहीं है. इस अख़बार द्वारा जिन भी विधायकों से बात की गई, उनमें से अधिकतर ने बताया कि उनके विधानसभा क्षेत्रों के लिए उनके पास पर्याप्त फंड हैं. कुछ ने बताया कि ‘कैप्टन साहब’ ने हाल में नए अनुदान जारी किए थे.
मालवा में अमरिंदर सिंह के एक आलोचक का कहना था कि उन्हें ‘दोबारा कैप्टन के आने से कोई परेशानी नहीं है जब तक वे अपने वादे पूरे करते रहे और उन तक पहुंच बनी रहे.’
लुधियाना के एक विधायक ने बताया कि उनकी आधी परेशनियां खत्म हो जाएंगी अगर मुख्यमंत्री हफ्ते में दो-तीन बार अपने कार्यालय में आने लगें. उन्होंने कहा, ‘हमें उनसे परेशानी नहीं है, लेकिन उनके आसपास की मंडली से है. उन्होंने अपने अधिकारियों को निरंकुश ताकत से राखी है जिससे लालफीताशाही को बढ़ावा मिल रहा है.
लुधियाना में पंजाब कैडर के पूर्व आईएएस और गिल से विधायक कुलदीप वैद अमरिंदर सिंह को ‘काबिल प्रशासक’ बताते हैं. दोआबा के एक दलित नेता कहते हैं कि सिद्धू और कैप्टन दो बेहद अलग इंसान हैं. उन्होंने कहा, ‘कैप्टन बुद्धिजीवी हैं, किताबें लिखते हैं, सांप्रदायिक सद्भावना के संरक्षक हैं. हां, उनसे मिलना आसान नहीं है लेकिन इस समय ऐसा कौन है जो उनकी जगह ले सकता है?’
दोआबा के सुल्तानपुर लोधी के विधायक नवतेज चीमा कहते हैं, ‘हम नहीं चाहते कि पार्टी हाईकमान हमारे सिर में पर किसी नए आदमी को बैठा दे.’
कइयों को उम्मीद है कि बातचीत से इस मुश्किल का हल निकल आएगा. उल्लेखनीय है कि बीते 30 जून को सिद्धू ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी के साथ लंबी बैठक की थी.
माना जा रहा है कि इन बैठकों में कांग्रेस आलाकमान की ओर से सिद्धू को पार्टी या संगठन में सम्मानजनक स्थान की पेशकश के साथ मनाने का प्रयास किया गया.
सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के खिलाफ सिद्धू के सख्त रुख को देखते हुए कांग्रेस आलाकमान दोनों नेताओं के लिहाज से संतोषजनक समाधान निकालने का प्रयास कर रहा है और इसका फार्मूला जल्द सामने आ सकता है.
इस बैठक के बाद कांग्रेस के पंजाब प्रभारी हरीश रावत ने दोहराया था कि इस मामले का 8-10 जुलाई तक समाधान निकल सकता है.