सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा के फरीदाबाद के अरावली वन क्षेत्र में अतिक्रमण कर बसे खोरी गांव को खाली करवाने का निर्देश दिया है. इसके चलते यहां के बीस हज़ार बच्चों और पांच हज़ार गर्भवती व धात्री महिलाओं सहित लगभग एक लाख रहवासियों पर बेघर होने का संकट आ गया है.
नई दिल्लीः संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने भारत सरकार से हरियाणा के फरीदाबाद के खोरी गांव में लगभग 1,00,000 लोगों को बेदखल करने से रोकने का आह्वान किया है. इन एक लाख लोगों में 20,000 बच्चे और 5,000 गर्भवती एवं धात्री महिलाएं भी शामिल हैं.
खोरी गांव को 1992 में संरक्षित वन घोषित किया गया था. स्थानीय प्रशासन ने मौजूदा मानसून सीजन के बीच पिछले हफ्ते इसे गिराने की कार्रवाई शुरू की थी. स्थानीय प्रशासन का उद्देश्य 19 जून तक कॉलोनी को पूरी तरह से ध्वस्त करना है.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट बेदखली और ध्वस्तीकरण के खिलाफ अदालत का रुख करने वाले स्थानीय लोगों को किसी तरह की राहत प्रदान नहीं करा पाया था.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों की ओर से शुक्रवार को जारी किए गए बयान में कहा गया, ‘हम भारत सरकार से अपने ही कानूनों और 2022 तक किसी को भी बेघर नहीं रहने देने के अपने ही लक्ष्य का सम्मान करने की अपील करते हैं. इन एक लाख लोगों के घरों को बख्श दें जो अधिकतर अल्पसंख्यक या हाशिए पर मौजूद समुदायों से हैं. यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है कि महामारी के दौरान यहां के लोग सुरक्षित रहें.’
विशेष ने कहा कि इस बेदखली और विध्वंस से स्थानीय लोगों को अधिक जोखिम होगा, जो पहले से ही कोविड-19 महामारी से जूझ रहे हैं.
बयान में कहा गया, ‘हालांकि, खोरी गांव संरक्षित वनक्षेत्र है. इस इलाके में बस्ती बनने से पहले स्थानीय प्रशासन द्वारा किए गए भारी खनन से यह क्षेत्र नष्ट हो गया. पिछले साल सितंबर और इस साल अप्रैल में लगभग 2,000 घरों को तोड़ा गया. बेदखली के नोटिस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख करने वाले स्थानीय लोगों को उस समय झटका लगा, जब अदालत ने पिछले महीने आदेश दिया कि 19 जुलाई तक इस जगह को खाली किया जाए.’
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने बयान में कहा, ‘यह बहुत चिंताजनक है कि भारत की सर्वोच्च अदालत, जिसने पूर्व में आवासीय अधिकारों की सुरक्षा की अगुवाई की थी, वह अब बेदखली की अगुवाई कर रही है, जिससे लोगों के आंतरिक विस्थापन और उनके बेघर होने का खतरा है और यही हाल खोरी गांव का है.’
बयान में कहा गया, ‘सुप्रीम कोर्ट की भूमिका कानूनों को बनाए रखने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार मानकों के तहत उसकी व्याख्या करने की है न कि उसके कमतर करने की. इस मामले में अन्य घरेलू कानूनी जरूरतों में भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 की भावना और उद्देश्य को पूरा नहीं किया गया.’
संयुक्त राष्ट्र के बयान में यह खेद भी जताया गया है कि कई हफ्ते पहले बस्ती में पानी और बिजली की सप्लाई बाधित कर दी गई थी. इसके अलावा पुलिस ने मानवाधिकार रक्षकों और इस बेदखली का विरोध कर रहे स्थानीय लोगों की पिटाई की.
बयान में कहा गया, ‘हम खोरी गांव को ढहाने की योजना की तत्काल समीक्षा करने और बस्ती को नियमित करने पर विचार करने का आह्वान करते हैं ताकि कोई बेघर नहीं हो. किसी को भी उचित मुआवजे और निवारण के बिना जबरन बेदखल नहीं किया जाना चाहिए.’
इस बयान पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञ बालकृष्णन राजगोपाल, मैरी लॉलर, सेसिलिया जिमेनेज डेमेरी, फर्नांड डी वर्नेनेस, पेड्रो अराजो अगुडो, ओलिवियर डी स्कटर और कोउमबोउ बॉली बैरी के हस्ताक्षर हैं.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने सात जून को फ़रीदाबाद ज़िले के खोरी गांव के पास अरावली वन क्षेत्र में अतिक्रमण कर बनाए गए क़रीब 10,000 आवासीय निर्माण को हटाने के लिए हरियाणा और फ़रीदाबाद नगर निगम को दिए आदेश दिया था. आवास अधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा इसका विरोध करते हुए पुनर्वास की मांग की जा रही है.
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