पिछले साल दो अक्टूबर को स्कूलों, आंगनबाड़ी केंद्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों तक नल से पानी पहुंचाने के लिए 100 दिन के अभियान की शुरुआत की गई थी. यह अभियान जल जीवन मिशन का हिस्सा था. हालांकि 100 दिवसीय अभियान शुरू करने के 10 महीने बाद भी सभी स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों में नल से जल की आपूर्ति सुनिश्चित नहीं हो सकी है.
नई दिल्ली: देश के 66 प्रतिशत स्कूलों, 60 प्रतिशत आंगनबाड़ी केंद्रों और 69 प्रतिशत ग्राम पंचायतों एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों तक नल से पानी की आपूर्ति हेतु कनेक्शन पहुंचाए जा चुके हैं, यह दावा जल शक्ति मंत्रालय ने रविवार को किया.
जल शक्ति मंत्रालय की ओर से दिए गए इन आंकड़ों से ये साफ हो गया है कि देश के एक तिहाई से अधिक स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों में नल का से अधिक स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों तक नल से पानी की आपूर्ति नहीं हो सकी है. यह स्थिति तब है, जब देश कोरोना वायरस महामारी से जूझ रहा है और स्वच्छता बनाए रखने के साथ हाथ और पैर लगातार धुलने के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं.
मंत्रालय ने बताया कि कोविड-19 और लॉकडाउन के बावजूद आंध्र प्रदेश, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, केरल, पंजाब, सिक्किम, तमिलनाडु और केंद्र शासित प्रदेश अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में सभी स्कूलों, आश्रमशालाओं और आंगनबाड़ी केंद्रों में स्वच्छ नल के पानी की आपूर्ति का प्रावधान कर दिया गया है. एक बार स्कूल और आश्रमशालाएं खुल जाने के बाद बच्चों को सुरक्षित पानी उनके बेहतर स्वास्थ्य, बेहतर स्वच्छता और बेहतर स्वच्छता में बहुत योगदान देगा.
Big boost to children's health & hygiene in the country!
PM @narendramodi ji's desire to see all centres of learning provided with clean water has resulted in 66% schools & 60% anganwadi centers across the nation getting FHTC through the #JalJeevanMission in just 10 months. https://t.co/9tJcSqP5tl pic.twitter.com/7uGRAO1STA
— Gajendra Singh Shekhawat (@gssjodhpur) July 25, 2021
उल्लेखनीय है कि पिछले साल दो अक्टूबर को स्कूलों, आंगनबाड़ी केंद्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों तक नल से पानी पहुंचाने के लिए 100 दिन के अभियान की शुरुआत की गई थी यह अभियान जल जीवन मिशन का हिस्सा था, जिसका लक्ष्य वर्ष 2024 तक सभी ग्रामीण परिवारों तक नल से जल की आपूर्ति करना है.
मंत्रालय ने बताया, ‘इस अभियान की शुरुआत करने के बाद से गांवों के 6.85 लाख स्कूलों (66 प्रतिशत), 6.80 लाख आंगनवाड़ी केंद्रों (60 प्रतिशत) और 2.36 लाख ग्राम पंचायतों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (69 प्रतिशत) तक नल से जलापूर्ति की व्यवस्था की गई है.’
जल शक्ति मंत्रालय द्वारा शुरू 100 दिवसीय अभियान की अवधि कुछ राज्यों द्वारा और समय मांगे जाने तक 31 मार्च तक बढ़ा दी गई.
द हिंदू के मुताबिक, जल जीवन मिशन द्वारा सुविधा प्रदान करने के लिए 100 दिवसीय अभियान शुरू करने के दस महीने बाद भी एक तिहाई से अधिक सरकारी स्कूलों और आंगनबाड़ियों में अभी भी नल का पानी नहीं है.
स्कूलों को फिर से खोलने के लिए कोविड-19 सुरक्षा प्रोटोकॉल के हिस्से के रूप में बार-बार हाथ धोने के महत्व की ओर इशारा करते हुए एक संसदीय स्थायी समिति ने मार्च की रिपोर्ट में जल जीवन मिशन की खिंचाई करने के बाद से न्यूनतम प्रगति हुई है.
जल जीवन मिशन के अनुसार, अभियान शुरू होने से पहले नल वाले स्कूलों की संख्या 4.1 लाख थी, जो फरवरी तक बढ़कर 6.35 लाख हो गई. वहीं, ऐसे आंगनबाड़ियों संख्या 4.3 लाख थी जो बढ़कर 6.3 लाख की गई.
मार्च की शुरुआत में लोकसभा को दी गई अनुदान की मांग पर अपनी रिपोर्ट में जल संसाधन के लिए संसदीय स्थायी समिति ने प्रगति की धीमी दर की निंदा करते हुए कहा था कि बच्चे पानी से होने वाली बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, खासकर जब कोविड -19 महामारी के दौरान एहतियात के तौर पर बार-बार हाथ धोने की भी आवश्यकता है.
जल शक्ति मंत्रालय ने पैनल को बताया था कि कुछ राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने संकेत दिया है कि उन्हें कार्य पूरा करने और प्रयासों को बनाए रखने के लिए और समय की आवश्यकता है और कहा कि अभियान को 31 मार्च, 2021 तक बढ़ा दिया गया है.
उस विस्तारित समय सीमा के लगभग चार महीने बाद भी जल शक्ति मिशन को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करना अभी बाकी है. दरअसल इसने उस समय सीमा के दौरान केवल 50,000 स्कूलों और 40,000 आंगनबाड़ियों में नल के पानी की पहुंच को जोड़ा है, जो धीमी गति का प्रतीक है.
रविवार को अपने बयान में मंत्रालय ने कहा कि प्रगति कोविड -19 महामारी और लॉकडाउन के मद्देनजर बार-बार व्यवधान के कारण हुई.
दरअसल राज्यों के बीच व्यापक असमानता है, कुछ पिछड़े राष्ट्रीय औसत को नीचे खींच रहे हैं, इस तथ्य के बावजूद कि नौ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने पहले ही 100 प्रतिशत कवरेज हासिल कर लिया है.
झारखंड और पश्चिम बंगाल में, 15 प्रतिशत से कम स्कूलों और 10 प्रतिशत से कम आंगनबाड़ियों में नल का पानी उपलब्ध है. दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश में उल्लेखनीय सुधार देखा गया, नल के पानी वाले स्कूलों की संख्या अभियान से पहले सिर्फ 13,400 थे, जो बढ़कर अब 1 लाख से अधिक हो गई है, अब 20 प्रतिशत से कम स्कूलों को कवर किया जाना बाकी है.
गौरतलब है कि दूषित जल पीने से बच्चों के डायरिया, पेचिश, कॉलरा और टाइफायड होने की आशंका बनी रहती है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)