एससी/एसटी उत्पीड़न मामलों में 2019 में हुई 11.46 प्रतिशत की वृद्धि: सरकार

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले ने राज्यसभा को बताया कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति समुदायों के उत्पीड़न से संबंधित मामलों में जहां 2017 की तुलना में 2018 में 11.15 प्रतिशत की कमी आई थी, वहीं, 2019 में इनकी संख्या में 11.46 प्रतिशत की वृद्धि हुई. साल 2015 से 2019 के बीच उत्तर प्रदेश में लगातार सबसे अधिक मामले दर्ज किए गए हैं.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले ने राज्यसभा को बताया कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति समुदायों के उत्पीड़न से संबंधित मामलों में जहां 2017 की तुलना में 2018 में 11.15 प्रतिशत की कमी आई थी, वहीं, 2019 में इनकी संख्या में 11.46 प्रतिशत की वृद्धि हुई. साल 2015 से 2019 के बीच उत्तर प्रदेश में लगातार सबसे अधिक मामले दर्ज किए गए हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सरकार ने बुधवार को कहा कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति समुदायों के उत्पीड़न से संबंधित मामलों में जहां 2017 की तुलना में 2018 में 11.15 प्रतिशत की कमी आई थी, वहीं, 2019 में इनकी संख्या में 11.46 प्रतिशत की वृद्धि हुई.

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में राज्यसभा को यह जानकारी दी.

उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र सरकार, राज्य सरकारों की कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ स्थिति की समीक्षा करती रही है, ताकि उत्पीड़न मामलों को शीघ्र दर्ज किया जा सके, अपराध की जल्द जांच हो सके तथा अदालत से समय रहते न्याय मिल सके.

उन्होंने कहा, ‘अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के साथ हुए उत्पीड़न के मामले वर्ष 2017 की तुलना में 2018 में करीब 11.15 प्रतिशत कम हुए, जबकि 2019 में इससे पिछले साल की तुलना में ऐसे मामलों में 11.46 प्रतिशत की वृद्धि हुई.’

मंत्री ने राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े साझा किए जिसके अनुसार, अनुसूचित जाति एवं अनसूचित जनजाति (उत्पीड़न निवारण) कानून और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत 2019 में 49,608 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2018 और 2017 में क्रमश: 44,505 और 50,094 मामले दर्ज किए गए थे.

इससे पहले साल 2015 में 44,839 और 2016 में 47,338 मामले दर्ज किए गए थे.

साल 2019 में देश में अनुसूचित जाति एवं अनसूचित जनजाति (उत्पीड़न निवारण) कानून और आईपीसी के तहत सबसे ज्यादा 10,156 मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए. इस सूची में राजस्थान दूसरे नंबर पर रहा, यहां 8,418 मामले दर्ज किए गए. 7,219 दर्ज मामलों के साथ मध्य प्रदेश तीसरे नंबर पर रहा.

अनुसूचित जाति एवं अनसूचित जनजाति (उत्पीड़न निवारण) कानून और आईपीसी के तहत साल 2018 में भी उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 9,458 मामले दर्ज किए गए. इसके बाद 6,927 दर्ज मामलों के साथ बिहार दूसरे नंबर पर था. इस सूची में तीसरे नंबर पर मध्य प्रदेश रहा, यहां 6,608 केस दर्ज किए गए थे.

इसी तरह साल 2017 में संबंधित धाराओं के तहत उत्तर प्रदेश एक बार फिर सबसे ज्यादा 11,320 केस दर्ज किए गए थे. मध्य प्रदेश इस मामले में दूसरे नंबर पर रहा, यहां 8,181 मामले दर्ज किए गए थे और तीसरे नंबर पर 6,827 दर्ज मामलों के साथ बिहार था.

साल 2016 में इन धाराओं के तहत उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 10,430 मामले दर्ज किए गए. इसके बाद मध्य प्रदेश में 6,745 केस दर्ज किए गए थे और इसके बाद राजस्थान में 6,329 मामले सामने आए थे.

साल 2015 में भी सबसे ज्यादा 8,363 केस उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए थे. दूसरे नंबर पर राजस्थान रहा, जहां 7,320 मामले सामने आए और बिहार 6,298 दर्ज मामलों के साथ तीसरे नंबर पर था.

आंकड़ों पर गौर करें तो साल 2015 से 2019 के बीच पांच सालों के दौरान उत्तर प्रदेश में लगातार सबसे अधिक मामले अनुसूचित जाति एवं अनसूचित जनजाति उत्पीड़न निवारण कानून और आईपीसी के तहत दर्ज किए गए हैं.

मंत्री ने कहा कि इसके अलावा सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 और नियमों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए समय-समय पर राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन को सलाह जारी की गई है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)