बीते मई में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और अन्य भाजपा नेताओं के ख़िलाफ़ कथित आपत्तिजनक टिप्पणियों को लेकर अन्य आरोपों के साथ राजद्रोह के आरोप में गिरफ़्तार किसान दलबीर सिंह को ज़मानत देते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है.
नई दिल्ली: हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और अन्य भाजपा नेताओं के खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणी के लिए गिरफ्तार एक किसान को जमानत देते हुए पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने कहा है कि ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है और यह मजबूत लोकतंत्र की नींव तैयार करती है.’
किसान दलबीर सिंह को कथित आपत्तिजनक भाषणों को लेकर मई में अन्य आरोपों के साथ राजद्रोह के आरोप में भी गिरफ्तार किया गया था. मामले में दर्ज दो प्राथमिकी में कहा गया है कि किसान का भाषण जातिवादी तथा शांति एवं सद्भाव के लिए खतरा था. सिंह को दूसरी प्राथमिकी दर्ज होने के कुछ दिनों बाद गिरफ्तार किया गया था, जिसके बाद उन्हें उच्च न्यायालय का रुख करना पड़ा.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, 22 फरवरी, 2017 को पहली एफआईआर आईपीसी की धारा 124 ए (देशद्रोह) और 153 ए (धर्म, जाति, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) के तहत दर्ज की गई थी.
दूसरी एफआईआर 24 मई को दर्ज की गई, जिसमें धारा 294 (अश्लील कृत्य और गीत), 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान) और 500 (मानहानि) के तहत मामला दर्ज किया गया था.
खट्टर सरकार द्वारा दर्ज देशद्रोह, जातीय दंगे व भावना भड़काने के मामले में आज मेरी पैरवी के बाद पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट से बीबीपुर, जींद के किसान नेता, डा. दलबीर को दोनो केसों में जमानत मिली।
हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर से, संघर्ष हमारा नारा है!
किसान है तो देश है !#FarmersProtest pic.twitter.com/Slxf0JgmtO
— Randeep Singh Surjewala (@rssurjewala) August 3, 2021
याचिकाकर्ता के वकील रणदीप सुरजेवाला और आर. कार्तिकेय ने तर्क दिया कि यह झूठे आरोपों का मामला है और याचिकाकर्ता केवल विरोध करने के अपने मौलिक अधिकार का प्रयोग कर रहे थे. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता को राज्य के कामकाज की आलोचना करने का अधिकार है.
वहीं, सरकारी वकील ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता को जमानत दी जाती है तो वह फिर से इस तरह की गतिविधियों में शामिल होंगे और कानून और व्यवस्था के लिए समस्या खड़ा हो जाएगा.
हालांकि अपने जमानत आदेश में जस्टिस अवनीश झिंगन ने कहा, ‘जमानत याचिकाओं पर विचार करते समय इस अदालत के पास आरोपों के गुणों पर विस्तार से विचार करने का कोई अवसर नहीं है. यह कहने के लिए पर्याप्त है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है और यह एक मजबूत लोकतंत्र की नींव रखती है.’