तालिबान के अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल पर क़ब्ज़ा कर लेने के बाद यहां तनाव का माहौल है. ज़्यादातर लोग अपने घरों में छिप गए हैं और बड़े-बड़े चौराहों पर तालिबान लड़ाके तैनात हैं. देश छोड़कर जाने वालों की भारी भीड़ काबुल एयरपोर्ट पर जमा है. अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ ग़नी ने कहा है कि वह काबुल छोड़कर इसलिए चले गए, ताकि वहां ख़ून-ख़राबा और बड़ी मानवीय त्रासदी न हो. भारत ने एयर इंडिया ने काबुल की एकमात्र उड़ान रद्द कर दी है और दो उड़ानों का रास्ता बदल दिया है.
काबुल/नई दिल्ली: अफगानिस्तान में अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा समर्थित सरकार को तालिबान द्वारा उखाड़ फेंके जाने के बाद देश से निकलने की जद्दोजेहद में सोमवार को काबुल हवाई अड्डे पर हजारों लोगों की भीड़ नजर आई और वे विमान में चढ़ने के लिए आपाधापी करते नजर आए.
इस बीच अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने कहा है कि वह काबुल छोड़कर इसलिए चले गए, ताकि वहां खून-खराबा और बड़ी मानवीय त्रासदी न हो.
राष्ट्रपति के देश छोड़ने के बाद रविवार को ही तालिबान आंतकियों काबुल स्थित राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया था और इसी के साथ लगभग पूरे अफगानिस्तान की बागडोर उनके हाथ में जाने के संकेत मिल गए थे.
सोमवार को काबुल हवाई अड्डे अमेरिकी सैनिकों ने देश से निकलने की अफरा-तफरी की स्थिति को संभालने के क्रम में चेतावनी स्वरूप गोलियां चलायीं. अफरातफरी के कारण वहां से भागने की कोशिश कर रहे कम से कम पांच लोगों की मौत हो गई. प्रत्यक्षदर्शियों ने इसकी जानकारी दी.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, फिलहाल यह साफ नहीं हो सका है कि पीड़ितों की मौत किन कारणों से हुई.
एक अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि काबुल हवाईअड्डे से एक सैन्य हेलीकॉप्टर से अमेरिकी राजनयिकों और दूतावास कर्मचारियों को निकालने के दौरान उसमें सवार होने का प्रयास कर रहे लोगों को दूर हटाने के लिए सैनिकों ने हवा में गोलियां चलाई थीं.
पिछले 20 घंटों से विमान का इंतजार कर रहे एक गवाह ने कहा कि यह साफ नहीं है कि पांच लोगों को गोली मारी गई या वे भगदड़ में मारे गए. वहीं, हवाईअड्डे पर मौजूद अमेरिकी अधिकारी टिप्पणी के लिए मौजूद नहीं थे.
एक सोशल मीडिया वीडियो में जमीन पर तीन शवों को पड़े हुए देखा गया जो कि देखने से हवाईअड्डे का प्रवेश द्वार लग रहा है. रॉयटर्स से स्वतंत्र रूप से फुटेज की पुष्टि नहीं की है. एक अन्य गवाह ने भी पांच शवों को देखने की बात की.
राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश से चले जाने के बाद रविवार को राजधानी काबुल पर तालिबान का कब्जा हो गया और इसी के साथ दो दशक के उस अभियान का आश्चर्यजनक अंत हो गया, जिसमें अमेरिका और उसके सहयोगियों ने देश को बदलने की कोशिश की थी.
देश के पश्चिम प्रशिक्षित सुरक्षाबलों ने आक्रामक तालिबान लड़ाकों के सामने घुटने टेक दिए . इन तालिबान लड़ाकों ने इस महीने के आखिर तक अमेरिकी सैनिकों की पूरी तरह वापसी से पहले ही पूरे देश पर अपना वर्चस्व कायम कर लिया.
राजधानी में तनाव का माहौल है, ज्यादातर लोग अपने घरों में छिप गए हैं और बड़े-बड़े चौराहों पर तालिबान लड़ाके तैनात हैं. छिट-पुट लूटपाट एवं हथियारबंद लोगों द्वारा लोगों के द्वारों पर दस्तक देने की भी खबर हैं.
भयावह शांति के बीच सड़कों पर कम यातायात नजर आया. शहर के मुख्य चौराहों में से एक पर तालिबान लड़ाके वाहनों की तलाशी करते हुए नजर आए.
कई लोग अराजकता से डरे हुए हैं, क्योंकि तालिबान ने हजारों कैदियों को रिहा कर दिया था. उन्हें उस नृशंस शासन की यादें डरा रही हैं, जब तालिबान सत्ता में था.
काबुल निवासी वहीदुल्लाह कादिरी ने कहा कि दशकों की लड़ाई में अपने दो भाइयों एवं एक अन्य रिश्तेदार को गंवाने के बाद अब वे शांति की आस लगाए हुए हैं.
उन्होंने कहा, ‘हमने त्रासदियों एवं लड़ाई के सिवा और कुछ देखा ही नहीं, इसलिए हम हमेशा स्थायी शांति की उम्मीद लगाए रखते है.’
हजारों अन्य लोगों को शांति लौटने का कोई भरोसा नहीं है और वे देश से निकल जाने के लिए काबुल हवाई अड्डा पहुंच गए. सोशल मीडिया पर आए विभिन्न वीडियो में हवाई अड्डे पर सैकड़ों लोग हवाई अड्डे पर नजर आए और अमेरिका सैनिकों ने चेतावनी स्वरूप हवाई फायरिंग की. एक वीडियो में भीड़ के विमान में चढ़ने की कोशिश में लोग आपाधापी करते नजर आ रहे हैं.
सोशल मीडिया पर प्रसारित वीडियो में सैकड़ों लोग सड़कों पर दौड़ते दिख रहे हैं जब अमेरिकी सैनिकों ने चेतावनी के लिए हवा में गोलियां दागीं.
अमेरिकी दूतावास को खाली करा लिया गया है और अमेरिकी ध्वज को उतार लिया गया है. राजनयिकों को हवाई अड्डे पर स्थानांतरित कर दिया गया है. अन्य पश्चिमी देशों ने भी अपने दूतावास बंद कर दिए हैं और कर्मचारियों और नागरिकों को बाहर निकाल रहे हैं.
अफगानिस्तान के नागरिक उड्डयन प्राधिकरण ने सुबह एक सलाह जारी कर कहा कि हवाई अड्डे के ‘असैन्य हिस्से’ को ‘अगली सूचना तक बंद कर दिया गया’ और कहा कि सेना ने हवाई क्षेत्र को नियंत्रण में ले लिया है.
एक मीडिया कंपनी द्वारा पोस्ट किए गए एक फुटेज में रनवे पर चल रहे एक अमेरिकी सैन्य विमान के आस-पास लोग भाग रहे हैं और उस पर चढ़ने की कोशिश कर रहे हैं.
Kabul airport today. Sad scenes for humanity.#Kabul #Afghanistan #Taliban pic.twitter.com/XyY6ULmlwu
— Wajahat Kazmi (@KazmiWajahat) August 16, 2021
बता दें कि अफगानिस्तान में लंबे समय से चले आ रहे युद्ध में रविवार को एक महत्वपूर्ण मोड़ आया जब तालिबान के चरमपंथियों ने राजधानी काबुल में प्रवेश कर राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया और राष्ट्रपति अशरफ गनी को देशी-विदेशी नागरिकों के साथ देश छोड़कर भागना पड़ा.
राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश से चले जाने के बाद दो दशक के उस अभियान का आश्चर्यजनक अंत हो गया, जिसमें अमेरिका और उसके सहयोगियों ने देश को बदलने की कोशिश की थी.
बता दें कि इससे पहले 1996 से 2001 तक तालिबान ने अफगानिस्तान पर शासन किया था और अमेरिका एवं मित्र देशों की सेनाओं के आने के बाद उनके शासन का अंत हो गया था.
तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने ट्विटर पर एक मैसेज में कहा कि लड़ाकों को किसी को भी नुकसान न पहुंचाने के सख्त निर्देश दिए गए हैं. उन्होंने कहा, ‘किसी के जीवन, संपत्ति और सम्मान को नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा, लेकिन मुजाहिदीन द्वारा संरक्षित किया जाना चाहिए.’
इससे पहले तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रवक्ता मोहम्मद नईम ने अल जजीरा टीवी से कहा था कि अफगान लोगों और तालिबान ने 20 वर्षों में उनके प्रयासों और बलिदानों के फल अभी-अभी देखे हैं. अल्लाह का शुक्रिया, युद्ध खत्म हो गया.
मालूम हो कि अफगानिस्तान में लगभग दो दशकों में सुरक्षा बलों को तैयार करने के लिए अमेरिका और नाटो द्वारा अरबों डॉलर खर्च किए जाने के बावजूद तालिबान ने आश्चर्यजनक रूप से एक सप्ताह में लगभग पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया. कुछ ही दिन पहले एक अमेरिकी सैन्य आकलन ने अनुमान लगाया था कि राजधानी के तालिबान के दबाव में आने में एक महीना लगेगा.
हालांकि पिछले कुछ दिनों में तालिबान ने अफगानिस्तान के ज्यादातर हिस्सों पर कब्जा जमा लिया है. उसने कंधार, हेरात, मजार-ए-शरीफ और जलालाबाद जैसे शहरों समेत 34 में से 25 प्रांतीय राजधानियों पर कब्जा जमा लिया है.
काबुल का तालिबान के नियंत्रण में जाना अमेरिका के सबसे लंबे युद्ध के अंतिम अध्याय का प्रतीक है, जो 11 सितंबर, 2001 को अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन के षड्यंत्र वाले आतंकवादी हमलों के बाद शुरू हुआ था.
ओसामा को तब तालिबान सरकार द्वारा आश्रय दिया गया था. एक अमेरिकी नेतृत्व वाले आक्रमण ने तालिबान को सत्ता से उखाड़ फेंका. हालांकि इराक युद्ध के चलते अमेरिका का इस युद्ध से ध्यान भंग हो गया.
अमेरिका वर्षों से युद्ध से बाहर निकलने को प्रयासरत है. अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में वॉशिंगटन ने फरवरी 2020 में तालिबान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो विद्रोहियों के खिलाफ प्रत्यक्ष सैन्य कार्रवाई को सीमित करता है.
इसने तालिबान को अपनी ताकत जुटाने और प्रमुख क्षेत्रों पर कब्जा करने के लिए तेजी से आगे बढ़ने की अनुमति दी. वहीं राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस महीने के अंत तक अफगानिस्तान से सभी अमेरिकी सैनिकों की वापसी की अपनी योजना की घोषणा की.
एयर इंडिया ने काबुल की एकमात्र उड़ान रद्द की, दो उड़ानों का रास्ता बदला
एयर इंडिया ने सोमवार को पूर्वनिर्धारित अपनी एकमात्र दिल्ली-काबुल उड़ान को रद्द कर दिया, ताकि अफगानिस्तान के हवाई क्षेत्र से बचा जा सके. विमानन कंपनी ने यह कदम काबुल हवाई अड्डे के अधिकारियों द्वारा ‘अनियंत्रित’ स्थिति घोषित किए जाने के बाद उठाया. वरिष्ठ अधिकारियों ने यह जानकारी दी.
भारत और अफगानिस्तान के बीच सोमवार को निर्धारित यह एकमात्र वाणिज्यिक उड़ान थी और एयर इंडिया एकमात्र विमानन कंपनी है, जो दोनों देशों के बीच विमानों का परिचालन कर रही है.
उन्होंने बताया कि सोमवार को विमानन कंपनी ने अमेरिका से दिल्ली आ रहे अपने दो विमानों का रास्ता इसी वजह से बदल कर संयुक्त अरब अमीरात के शारजाह कर दिया.
अधिकारियों ने बताया कि सोमवार को एयर इंडिया के सैन-फ्रांसिस्को-दिल्ली उड़ान और शिकागो-दिल्ली उड़ान को शारजाह मोड़ा गया.
उन्होंने बताया कि दोनों विमान शारजाह ईंधन भरने के बाद दिल्ली के लिए रवाना होंगे और इस दौरान अफगान हवाई क्षेत्र से बचेंगे.
इस बीच, ‘तेरा एविया’ का विमान अजरबैजान के बाकू से दिल्ली के लिए आ रहा था और सोमवार की सुबह उसने अफगानिस्तान के हवाई क्षेत्र में प्रवेश किया था, लेकिन तुरंत उसने अफगान हवाई क्षेत्र से बचने का फैसला किया.
एयर इंडिया के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि काबुल हवाई अड्डे द्वारा अफगानिस्तान का हवाई क्षेत्र ‘अनियंत्रित’ घोषित किया गया है और उड़ानों से इस हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल करने से बचने को कहा गया है.
खून-खराबा रोकने और ‘मानवीय आपदा’ से बचने के लिए अफगानिस्तान छोड़ा: राष्ट्रपति
संकट में घिरे अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने कहा है कि वह काबुल छोड़कर इसलिए चले गए, ताकि वहां खून-खराबा और ‘बड़ी मानवीय त्रासदी’ न हो.
उन्होंने तालिबान से कहा कि वह अपने इरादे बताए और देश पर उसके कब्जे के बाद अपने भविष्य को लेकर अनिश्चय की स्थिति में आए लोगों को भरोसा दिलाए.
रविवार को अफगानिस्तान छोड़कर जाने के बाद गनी ने पहली बार टिप्पणी की है. इसमें उन्होंने कहा, ‘मेरे पास दो रास्ते थे, पहला तो राष्ट्रपति भवन में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे ‘सशस्त्र तालिबान’ का सामना करूं या अपने प्रिय देश को छोड़ दूं जिसकी रक्षा के लिए मैंने अपने जीवन के 20 साल समर्पित कर दिए.’
गनी ने रविवार को फेसबुक पर एक पोस्ट में लिखा, ‘यदि असंख्य देशवासी शहीद हो जाएं, अगर वे तबाही का मंजर देखते और काबुल का विनाश देखते तो 60 लाख की आबादी वाले इस शहर में बड़ी मानवीय त्रासदी हो सकती थी. तालिबान मे मुझे हटाने के लिए यह सब किया है और वे पूरे काबुल पर और काबुल की जनता पर हमला करने आए हैं. रक्तपात होने से रोकने के लिए मुझे बाहर निकलना ठीक लगा.’
Former Afghan President Ashraf Ghani's statement after leaving the country. pic.twitter.com/WBsLIYK3UL
— Devirupa Mitra (@DevirupaM) August 15, 2021
खबरों के मुताबिक, 72 वर्षीय गनी ने पड़ोसी देश ताजिकिस्तान में शरण ली है.
उन्होंने कहा, ‘तालिबान तलवार और बंदूकों की जंग जीत गया है और अब देशवासियों के सम्मान, धन-दौलत और स्वाभिमान की रक्षा की जिम्मेदारी उन पर है.’
गनी ने कहा कि तालिबान चरमपंथियों के सामने बड़ी परीक्षा अफगानिस्तान के नाम और इज्जत को बचाने की या दूसरी जगहों और नेटवर्कों को प्राथमिकता देने की है.
उन्होंने कहा कि डर और भविष्य को लेकर आशंकाओं से भरे लोगों के दिल जीतने के लिहाज से तालिबान के लिए जरूरी है कि सभी देशों, विभिन्न क्षेत्रों, अफगानिस्तान की बहनों और महिलाओं सभी को भरोसा दिलाए.
उन्होंने कहा, ‘इस बारे में स्पष्ट योजना बनाएं और जनता के साथ साझा करें.’
शिक्षाविद गनी अफगानिस्तान के 14वें राष्ट्रपति हैं. उन्हें सबसे पहले 20 सितंबर, 2014 को निर्वाचित किया गया था और 28 सितंबर, 2019 के राष्ट्रपति चुनाव में वह पुन: निर्वाचित हुए.
वह लंबी प्रक्रिया के बाद फरवरी 2020 में भी विजयी घोषित किए गए थे और पिछले नौ मार्च को पुन: राष्ट्रपति बने. वह देश के वित्त मंत्री और काबुल यूनिवर्सिटी के चांसलर भी रह चुके हैं.
तालिबान के आश्वासन के बावजूद अफगान नागरिकों को बर्बर शासन लौटने का भय
इस्तांबुल: अफगानिस्तान में तालिबान ने देश में शांति का नया युग लाने का वादा किया है, लेकिन अफगान इससे आश्वस्त नहीं हैं और उनके दिलों में तालिबान का पुराना बर्बर शासन लौटने का भय है.
जिन लोगों को तालिबान का शासन याद है और जो लोग तालिबान के कब्जे वाले इलाकों में रह चुके हैं, वे तालिबान के भय से वाकिफ हैं. जिन इलाकों में तालिबान ने हाल में कब्जा किया है, वहां सरकारी कार्यालय, दुकानें, स्कूल आदि अब भी बंद हैं और नागरिक छिपे हुए हैं या फिर राजधानी काबुल जा रहे हैं.
देश में तालिबान के कट्टर शरिया शासन लौटने की आहटें सुनाई देने लगी हैं, जिसके तले देश की जनता ने 1996 से 2001 का वक्त बिताया था. 9/11 हमले के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान से तालिबान शासन को समाप्त किया. बहुत से लोगों को भय है कि तालिबान शासन आने के बाद महिलाओं और जातीय अल्पसंख्यकों की आजादी समाप्त हो जाएगी और पत्रकारों तथा गैर सरकारी संगठनों के काम करने पर पाबंदियां लग जाएंगी.
हेरात में एक स्थानीय एनजीओ में काम करने वाली 25 वर्षीय युवती ने बताया कि लड़ाई के चलते वह हफ्तों से घर से बाहर नहीं निकली हैं. उन्होंने कहा कि बहुत कम महिलाएं सड़कों पर दिखाई देंगी, यहां तक कि महिला चिकित्सक भी घरों में हैं और जब तक स्थिति स्पष्ट नहीं हो जाती, ऐसे ही रहने वाला है.
उसने अपना नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर फोन पर कहा, ‘मैं तालिबान लड़ाकों का सामना नहीं कर सकती. उनके लिए मेरे मन में अच्छे भाव नहीं हैं. कोई भी महिलाओं और लड़कियों के बारे में तालिबान के विचार को नहीं बदल सकता. वे अब भी चाहते हैं कि महिलाएं घरों पर रहें.’
हालांकि तालिबान ने लोगों को आश्वासन दिया है कि सरकार और सुरक्षा बलों के लिए काम करने वालों पर प्रतिशोधात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी और जीवन, संपत्ति और सम्मान की रक्षा की जाएगी. वे देश के नागरिकों से देश नहीं छोड़ने की भी अपील कर रहे हैं, लेकिन तालिबान की हालिया कार्रवाई कुछ और ही तस्वीर पेश करती है.
अर्ध सरकारी ‘अफगानिस्तान इंडिपेंडेंट ह्यूमन राइट्स कमीशन’ के अनुसार, पिछले माह गाजी प्रांत के मलिस्तान जिले पर कब्जे के बाद तालिबानी लड़कों ने घर-घर जा कर उन लोगों की तलाश की, जिन्होंने सरकार के लिए काम किया था और इसके बाद कम से कम 27 लोगों की हत्या कर दी. अन्य स्थानों से भी कमोबेश इसी प्रकार की खबरें मिल रही हैं.
तालिबान नेता गनी बरादार
लंदन: तीन साल से थोड़ा पहले अमेरिका के अनुरोध पर पाकिस्तान की एक जेल से रिहा किए गए तालिबान नेता अब्दुल गनी बरादार अफगानिस्तान में 20 साल की लड़ाई में ‘निर्विवादित विजेता’ बनकर उभरे हैं. ब्रिटिश मीडिया ने यह खबर दी है.
वैसे तो हैबातुल्लाह अखुंदजादा तालिबान के सर्वेसर्वा हैं, लेकिन बरादार उसके राजनीतिक प्रमुख एवं सबसे अधिक जाना-पहचाना चेहरा हैं. बताया जाता है कि रविवार को वह कतर के दोहा से काबुल के लिए रवाना हुए.
गार्डियन अखबार ने रविवार को खबर दी कि तालिबान की काबुल फतह के बाद टेलीविजन पर प्रसारित एक बयान में बरादार ने कहा कि तालिबान की असली परीक्षा तो अभी बस शुरू हुई है और उन्हें राष्ट्र की सेवा करनी है.
खबर के अनुसार, सत्ता में बरादार की वापसी देश के रक्तरंजित अतीत से उबरने की अफगानिस्तान की असमर्थता की परिचायक है.
सन् 1968 में उरूजगान प्रांत में पैदा हुए बरादार ने 1980 के दशक में अफगान मुजाहिदीन के साथ मिलकर सोवियत रूस के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी. 1992 में रूसियों को देश से निकाले जाने के बाद अफगानिस्तान विभिन्न कबीलों के सरदारों के गृहयुद्ध में फंस गया. उसी दौरान बरादार ने अपने प्रतिष्ठित पूर्व कमांडर एवं रिश्तेदार मोहम्मद उमर के साथ मिलकर कंधार में मदरसा स्थापित किया.
खबर के अनुसार, दोनों मुल्लाओं ने साथ मिलकर तालिबान की स्थापना की. इस आंदोलन की ऐसे युवा इस्लामिक विद्वान अगुवाई रहे थे, जिनका मकसद देश का मजहबी शुद्धिकरण एवं अमीरात की स्थापना पर था.
धार्मिक उन्माद और योद्धाओं के प्रति व्यापक नफरत तथा बाद में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलीजेंस का समर्थन पाकर तालिबान प्रांतीय राजधानियों को फतह करता 1996 में देश की सत्ता पर काबिज हो गया और दुनिया हक्का-बक्का होकर देखती रही, ठीक उसी तरह जिस तरह हाल के सप्ताह में हुआ है.
मुल्ला उमर से संबद्ध बरादार को सबसे सक्रिय रणनीतिकार माना जाता है जिसने इन फतह की इबारत लिखी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)