पेगासस मामला: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता करने वाले तथ्यों का न करें खुलासा

चीफ जस्टिस एनवी रमना की पीठ ने केंद्र को नोटिस जारी कर कहा कि सरकार को दस दिनों के भीतर इन आरोपों का जवाब देना होगा कि क्या इजरायली कंपनी के स्पाईवेयर का जासूसी में इस्तेमाल किया गया या नहीं.

(फोटो: द वायर)

चीफ जस्टिस एनवी रमना की पीठ ने केंद्र को नोटिस जारी कर कहा कि सरकार को दस दिनों के भीतर इन आरोपों का जवाब देना होगा कि क्या इज़रायली कंपनी एनएसओ ग्रुप के पेगासस स्पायवेयर का जासूसी में इस्तेमाल किया गया या नहीं.

New Delhi: A view of Supreme Court of India in New Delhi, Thursday, Nov. 1, 2018. (PTI Photo/Ravi Choudhary) (PTI11_1_2018_000197B)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस जासूसी मामले की स्वतंत्र जांच कराने की मांग से संबंधित याचिकाओं पर मंगलवार को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया.

अदालत ने यह स्पष्ट किया कि वह नहीं चाहता कि सरकार ऐसी किसी बात का खुलासा करे, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता हो.

चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने याचिकाओं पर केंद्र सरकार से जवाब मांगते हुए कहा कि वह दस दिनों के बाद इस मामले को सुनेगी और देखेगी कि इसमें क्या प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए.

पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि सुप्रीम कोर्ट नहीं चाहता कि सरकार किसी ऐसी चीज का खुलासा करे, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता हो.

अदालत ने यह टिप्पणी मेहता की उस दलील के बाद की, जिसमें उन्होंने कहा था कि हलफनामे में सूचना की जानकारी देने से राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा जुड़ा है.

दरअसल याचिकाकर्ताओं ने हलफनामे में जानकारी दिए जाने की मांग की थी.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पेगासस मामले में छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है और यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ है.

चीफ जस्टिस एनवी रमना की पीठ ने केंद्र को नोटिस जारी कर कहा कि सरकार को दस दिनों के भीतर इन आरोपों का जवाब देना होगा कि क्या इजरायली कंपनी के स्पायवेयर का जासूसी में इस्तेमाल किया गया या नहीं.

पीठ ने कहा कि जवाब आने के बाद एक समिति के गठन पर विचार किया जाएगा.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह मामला सार्वजनिक बहस का विषय नहीं हो सकता.

उन्होंने पीठ को बताया, ‘ये सॉफ्टवेयर हर देश द्वारा खरीदे जाते हैं और याचिकाकर्ता चाहते हैं कि इसका खुलासा किया जाए कि क्या सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल नहीं किया गया. अगर हमने इसकी जानकारी दे दी तो आतंकी एहतियाती कदम उठा सकते हैं. ये राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे हैं और हम अदालत से कुछ भी छिपा नहीं सकते.’

मेहता ने कहा कि विशेषज्ञों की एक समिति के समक्ष इसका ब्योरा पेश किया जा सकता है.

उन्होंने कहा, ‘हम इस जानकारी को विशेषज्ञों की एक समिति के समक्ष बता सकते हैं और यह निष्पक्ष समिति होगी. क्या आप संवैधानिक अदालत के रूप में उम्मीद करेंगे कि ऐसे मुद्दों को अदालत के समक्ष पेश किया जाएगा और सार्वजनिक बहस के लिए रखा जाए? समिति अपनी रिपोर्ट अदालत के समक्ष रखेगी, लेकिन हम इस मामले को सनसनीखेज कैसे बना सकते हैं?’

बता दें कि इससे पहले सोमवार को केंद्र सरकार ने पेगासस मामले में याचिकाकर्ताओं द्वारा लगाए गए सभी आरोपों से इनकार किया था. साथ ही सरकार ने कहा था कि वह इजरायल के एनएसओ समूह के पेगासस स्पायवेयर से जुड़े आरोपों के सभी पहलुओं को देखने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति का गठन करेगी.

एक हलफनामे में सरकार ने कहा था, उपर्युक्त याचिका और संबंधित याचिकाओं के अवलोकन भर से यह स्पष्ट हो जाता है कि वे अटकलों, अनुमानों तथा अन्य अपुष्ट मीडिया खबरों तथा अपूर्ण या अप्रमाणिक सामग्री पर आधारित हैं. यह प्रस्तुत किया जाता है कि यह इस माननीय न्यायालय के रिट क्षेत्राधिकार को लागू करने का आधार नहीं हो सकता है.

अदालत एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की याचिका सहित विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है.

इनमें वरिष्ठ पत्रकार एन. राम और अरुण शौरी एवं गैर सरकारी संगठन कॉमन काज भी शामिल है. इन याचिकाओं में मामले की स्वतंत्र जांच कराने की मांग की गई है. अन्य याचिकाकर्ताओं में पत्रकार शशि कुमार, राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास, पेगासस स्पायवेयर के पुष्ट पीड़ित पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता और एसएनएम अब्दी और स्पायवेयर के संभावित लक्ष्य पत्रकार  प्रेम शंकर झा, रूपेश कुमार सिंह और कार्यकर्ता इप्सा शताक्षी शामिल हैं.

ये याचिकाएं इजराइली कंपनी एनएसओ समूह के जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस का इस्तेमाल सरकारी एजेंसियों द्वारा कथित तौर पर प्रमुख नागरिकों, नेताओं और पत्रकारों की जासूसी से संबंधित है.

बता दें कि द वायर  सहित अंतरराष्ट्रीय मीडिया कंसोर्टियम ने पेगासस प्रोजेक्ट के तहत यह खुलासा किया था कि इजरायल की एनएसओ ग्रुप कंपनी के पेगासस स्पायवेयर के जरिये नेता, पत्रकार, कार्यकर्ता, सुप्रीम कोर्ट के अधिकारियों की के फोन कथित तौर पर हैक कर उनकी निगरानी की गई या फिर वे संभावित निशाने पर थे.

इस कड़ी में 18 जुलाई से द वायर  सहित विश्व के 17 मीडिया संगठनों ने 50,000 से ज्यादा लीक हुए मोबाइल नंबरों के डेटाबेस की जानकारियां प्रकाशित करनी शुरू की थी, जिनकी इजरायल के एनएसओ समूह के पेगासस स्पायवेयर के जरिये निगरानी की जा रही थी या वे संभावित सर्विलांस के दायरे में थे.

पेगासस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे मीडिया संगठनों ने स्वतंत्र तौर पर 10 देशों के ऐसे 1,500 से अधिक मोबाइल नंबरों की पहचान की थी. इसमें से कुछ नंबरों की एमनेस्टी इंटरनेशनल ने फॉरेंसिक जांच की, जिसमें ये साबित हुआ है कि उन पर पेगासस स्पायवेयर से हमला हुआ था.

एनएसओ ग्रुप यह मिलिट्री ग्रेड स्पायवेयर सिर्फ सरकारों को ही बेचती हैं. भारत सरकार ने पेगासस की खरीद को लेकर न तो इनकार किया है और न ही इसकी पुष्टि की है.

इस खुलासे के बाद फ्रांस के राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा अधिकारियों ने सूची में शामिल दो फ्रांसीसी पत्रकारों के फोन में पेगासस स्पायवेयर होने की पुष्टि की है.

जहां रक्षा और आईटी मंत्रालय ने पेगासस स्पायवेयर के इस्तेमाल से इनकार कर दिया है, तो वहीं मोदी सरकार ने इस निगरानी सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल और उसे खरीदने पर चुप्पी साध रखी है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)