जेएनयू के छात्र शरजील इमाम को सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों के दौरान जामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में कथित भड़काऊ भाषण देने के आरोप में यूएपीए के तहत गिरफ़्तार किया गया है. अदालत में उनके वकील की ओर से दलील दी गई कि विरोध का अधिकार राजद्रोह के समान नहीं है. आलोचना के बिना एक समाज मर जाता है और भेड़ों के झुंड में बदल जाता है.
नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत में सोमवार को दलील दी गई कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान कथित भड़काऊ भाषण देने पर गिरफ्तार किए गए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र शरजील इमाम पर राजद्रोह का आरोप नहीं लगाया जा सकता, क्योंकि उन्होंने भाषण में हिंसा करने के लिए नहीं कहा था.
इमाम ने 2019 में दो विश्वविद्यालयों में दिए भाषणों से जुड़े मामले में जमानत की अर्जी दी है. उन भाषणों में उन्होंने असम तथा बाकी के पूर्वोत्तर क्षेत्र को देश से ‘काटने’ की कथित तौर पर धमकी दी थी. उन्हें राजद्रोह तथा गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया गया था.
इमाम की ओर से पेश अधिवक्ता तनवीर अहमद मीर ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत को बताया कि उनके मुवक्किल के भाषण के किसी भी हिस्से में किसी भी तरह की हिंसा करने की बात नहीं कही गई.
मीर ने कहा, ‘जब शरजील इमाम ने कहा कि कानून का यह हिस्सा (सीएए/एनआरसी) असंवैधानिक है, मांग की कि सरकार इस पर पुन:विचार करे और कहा कि यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो हम सड़कों पर उतर आएंगे, ऐसा कहने पर उन पर राजद्रोह का मामला नहीं बनता है.’
उन्होंने कहा कि विरोध का अधिकार, नाकेबंदी का अधिकार और देश को ठप करने का अधिकार राजद्रोह के समान नहीं है.
मीर ने कहा, ‘भाषण में हिंसा करने को नहीं कहा गया. उन्होंने केवल सड़कें अवरूद्ध करने को कहा. उन्होंने यह नहीं कहा कि पूर्वोत्तर को अलग राज्य बनाया जाना चाहिए और स्वतंत्र घोषित करना चाहिए. राजद्रोह यह होता.’
मीर ने कहा कि इमाम किसी प्रतिबंधित संगठन के सदस्य नहीं हैं, न ही किसी आतंकवादी गिरोह से जुड़े हैं, वह तो महज एक छात्र हैं.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, मीर ने कहा इमाम केवल छात्रों के साथ अपने विचारों का आदान-प्रदान कर रहे थे, उन्होंने कहा था कि आलोचना के बिना एक समाज मर जाता है और भेड़ों के झुंड में बदल जाता है.
उन्होंने कहा, ‘मैं यह देखकर चकित रह गया कि जांच अधिकारी ने उन्हें सिर्फ इसलिए धर्मान्ध कहा क्योंकि वे भारत के संविधान की आलोचना करते प्रतीत होते हैं. हमें अपनी एकता पर गर्व है, बहुसंख्यकवाद पर नहीं. हमारे समाज में जटिल तत्व भी आवश्यक हैं, क्योंकि जिस समाज में आलोचना मरेगी, समाज मरेगा. इसीलिए, लोकतंत्र में संविधान को सुरक्षित रूप से बनाए रखने का जिम्मा आपके हाथों में है.’
अभियोजन 1 और 2 सितंबर को इमाम की दलीलों पर अपनी बात रखेगा.
इमाम ने कथित भड़काऊ भाषण 13 दिसंबर, 2019 को दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में और 16 दिसंबर, 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दिए थे. वह 28 जनवरी, 2020 से न्यायिक हिरासत में है.
उत्तर-पूर्वी दिल्ली में नागरिकता कानून में संशोधनों के समर्थकों और विरोधियों के बीच हिंसा के बाद 24 फरवरी को सांप्रदायिक झड़पें शुरू हुई थीं, जिसमें 53 लोगों की मौत हो गई थी और करीब 200 लोग घायल हो गए थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)