निर्वाचन आयोग ने मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के प्रमुखों को पत्र लिखकर कहा है कि उसने एक कोष का निर्माण किया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करने में विफल रहने पर अदालत की अवमानना के लिए जुर्माना जमा कराया जा सकता है. बीते दस अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को निर्देश दिया था कि उन्हें अपनी वेबसाइट के होमपेज पर उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि के बारे में सूचना प्रकाशित करनी होगी.
नई दिल्ली: निर्वाचन आयोग ने मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के प्रमुखों को पत्र लिखकर कहा है कि उसने एक कोष का निर्माण किया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करने में विफल रहने पर अदालत की अवमानना के लिए जुर्माना जमा कराया जा सकता है.
कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को निर्देश दिया था कि उन्हें अपनी वेबसाइट के होमपेज पर उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि के बारे में सूचना प्रकाशित करनी होगी.
इसने राजनीतिक दलों से कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को निर्देश दिया है कि हर मतदाता को उसके अधिकार के बारे में अवगत कराने के लिए व्यापक अभियान चलाया जाए और चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि के बारे में सूचना मुहैया कराई जाए.
इस उद्देश्य के लिए चार हफ्ते के अंदर एक कोष का निर्माण किया जाना था.
निर्वाचन आयोग को एक अलग प्रकोष्ठ बनाने का भी निर्देश दिया गया था, जो अनुपालन पर नजर रखेगा, ताकि अदालत को किसी भी दल द्वारा निर्देश के पालन नहीं करने के बारे में तुरंत सूचित किया जा सके.
अदालत ने कहा था कि अगर कोई राजनीतिक दल चुनाव आयोग के पास अनुपालन रिपोर्ट पेश नहीं करता है तो निर्वाचन आयोग इस तरह का मामला अदालत के संज्ञान में लाएगा, जिसे काफी गंभीरता से लिया जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के आलोक में 26 अगस्त को भेजे गए पत्र में निर्वाचन आयोग ने कहा है कि उसने एक ‘कोष’ का निर्माण किया है, जिसमें अदालत की अवमानना के लिए जुर्माना जमा किया जा सकता है. इसने जुर्माना भरने के लिए बैंक खाते का ब्योरा भी दिया है.
उच्चतम न्यायालय ने दस अगस्त को कहा था कि राजनीतिक दलों को उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि के बारे में अपनी वेबसाइट के होमपेज पर सूचना प्रकाशित करनी होगी.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग को एक मोबाइल ऐप बनाने का निर्देश दिया था, जिसमें उम्मीदवारों द्वारा उनके आपराधिक इतिहास के बारे में जानकारी प्रकाशित करनी है, ताकि मतदाता को एक ही बार में उसके मोबाइल फोन पर जानकारी मिल सके.
जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने पिछले साल बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान अपने 13 फरवरी, 2020 के निर्देशों का पालन नहीं करने के लिए भाजपा और कांग्रेस सहित कई राजनीतिक दलों के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की मांग वाली याचिका पर अपने फैसले में ये निर्देश पारित किए थे.
बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों का पूरा ब्योरा पार्टियों की आधिकारिक वेबसाइट पर सार्वजनिक नहीं करने पर भाजपा और कांग्रेस सहित आठ राजनीतिक दलों पर जुर्माना लगाया था.
बता दें कि भारतीय राजनीति को अपराध से मुक्त करने के उद्देश्य से पिछले साल फरवरी में अपने फैसले में शीर्ष अदालत ने राजनीतिक दलों को अपनी वेबसाइटों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपने उम्मीदवारों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का विवरण और उन्हें चुनने के कारणों के साथ-साथ टिकट नहीं देने का भी निर्देश दिया था.
अदालत ने कहा था कि ये जानकारी स्थानीय अखबारों और राजनीतिक दलों की आधिकारिक वेबसाइट और सोशल मीडिया हैंडल पर प्रकाशित की जानी चाहिए. इसमें ये बताया जाना चाहिए कि उम्मीदवार के खिलाफ किस तरह के अपराध का आरोप है और जांच कहां तक पहुंची है.
जस्टिस रोहिंग्टन फली नरीमन की अध्यक्षता में पीठ ने कहा था, ‘ऐसे उम्मीदवारों का चुनाव करना जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं, उनके चयन का कारण योग्यता होनी चाहिए न कि सिर्फ जीतने की संभावना.’
अदालत ने यह आदेश एक अवमानना याचिका पर दिया था, जिसमें राजनीति में अपराधीकरण का मुद्दा उठाते हुए कहा गया था कि दागी उम्मीदवारों की जानकारी सार्वजनिक करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के सितंबर 2018 के फैसले से जुड़े निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)