आरएसएस से जुड़ी ‘पाञ्चजन्य’ पत्रिका ने अपने लेख में कहा है कि अमेज़ॉन पर ई-मार्केट प्लेटफॉर्म पर क़ब्ज़ा करने के लिए शेल कंपनियां बनाने, नीतियों को अपने पक्ष में करने के लिए रिश्वत देने और प्राइम वीडियो के माध्यम से भारतीय संस्कृति के विरोध में कार्यक्रमों को प्रसारित करने का आरोप है. इससे पहले पत्रिका ने भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनी इंफोसिस पर निशाना साधते हुए कहा था कि कंपनी ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ के साथ काम कर रही है.
नई दिल्ली: भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनी इंफोसिस को निशाना बनाने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ी साप्ताहिक पत्रिका ‘पाञ्चजन्य’ ने अमेरिका की ई-कॉमर्स कंपनी अमेज़ॉन को ‘ईस्ट इंडिया कंपनी 2.0’ करार देते हुए कहा कि कंपनी ने अनुकूल सरकारी नीतियों के लिए रिश्वत के तौर पर करोड़ों रुपये का भुगतान किया है.
पाञ्चजन्य ने अपनी पत्रिका के ताजा संस्करण में अमेज़ॉन पर लेख लिखते हुए उसकी कड़ी आलोचना की है.
पाञ्चजन्य ने ‘ईस्ट इंडिया कंपनी 2.0’ के नाम से अपने लेख में लिखा है, ‘भारत पर 18वीं शताब्दी में कब्जा करने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने जो कुछ किया, वही आज अमेज़ॉन की गतिविधियों में दिखाई देता है.’
पत्रिका ने यह दावा करते हुए कहा कि अमेज़ॉन भारतीय बाजार में अपना एकाधिकार स्थापित करना चाहता है और ऐसा करने के लिए ई-कॉमर्स कंपनी ने भारतीय नागरिकों की आर्थिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर कब्जा करने के लिए पहल करना शुरू कर दिया है.
पाञ्चजन्य यानी बात भारत की।
पढ़िये आगामी अंक –#अमेज़न ऐसा क्या गलत करती है कि उसे घूस देने की जरूरत पड़ती है? क्यों इस भीमकाय कंपनी को देसी उद्यमिता, आर्थिक स्वतंत्रता और संस्कृति के लिए खतरा मानते हैं लोग#Vocal_for_Local@epanchjanya pic.twitter.com/eCimaplnKJ— Hitesh Shankar (@hiteshshankar) September 26, 2021
लेख में अमेज़ॉन के वीडियो मंच की भी कड़ी आलोचना करते हुए कहा गया कि वह अपने मंच पर ऐसी फिल्में और वेब सीरीज जारी कर रहा है, जो भारतीय संस्कृति के खिलाफ हैं.
पाञ्चजन्य ब्यूरो द्वारा लिखे इस लेख में कहा गया है, ‘दरअसल अमेज़ॉन भी भारतीय बाजार पर एकाधिकार चाहता है. इसके लिए इसने यहां के लोगों की राजनीतिक, आर्थिक और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को घेरने के लिए कदम उठाने शुरू कर दिए हैं.’
लेख के अनुसार, ‘कंपनी पर ई-मार्केट प्लेटफॉर्म पर कब्जा करने के लिए शेल कंपनियां बनाने, नीतियों को अपने पक्ष में करने के लिए रिश्वत देने और प्राइम वीडियो के माध्यम से भारतीय संस्कृति के विरोध में कार्यक्रमों को प्रसारित करने का आरोप है.’
पत्रिका ने आरोप लगाया कि अमेज़ॉन ने भारत में छोटे व्यापारियों को उत्पाद बेचने के लिए एक बड़ा मंच प्रदान करने में मदद करने के वादे के साथ निवेश किया था, लेकिन वास्तव में ऐसा करने के लिए उन्होंने अपनी खुद की कंपनियां बनाईं.
उन्होंने कहा, ‘कंपनी ने क्लाउडटेल और एपिरिया जैसी सप्लायर इकाइयां बनाईं, जिनमें इसकी महत्वपूर्ण हिस्सेदारी और अप्रत्यक्ष नियंत्रण है.’
ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ अमेज़ॉन की रणनीति की तुलना करते हुए पाञ्चजन्य ने कहा कि उन्होंने पहले भारतीय संस्कृति पर हमला किया और फिर धर्मांतरण को बढ़ावा दिया.
लेख में कहा गया है, ‘आज वही काम विदेशी कंपनियों द्वारा किया जा रहा है. अमेज़ॉन अब ऐसे ही एक विवाद में फंस गया है. सूचना और प्रसारण मंत्रालय और कुछ राज्य सरकारों द्वारा इनके ओटीटी प्लेटफॉर्म प्राइम वीडियो पर तांडव और पाताललोक जैसे कार्यक्रमों में कुछ हिंदू विरोधी सामग्री के संज्ञान के बाद कंपनी ने माफी मांगी है.
लेख के मुताबिक, ‘लोगों ने आरोप लगाया था कि प्राइम वीडियो नियमित रूप से ऐसे शो प्रसारित कर रहा है, जिसमें हिंदू देवताओं का मजाक उड़ाया जाता है और पारिवारिक मूल्यों पर हमला किया जाता है.’
द मॉर्निंग कॉन्टेक्स्ट की एक खबर के अनुसार, अमेज़ॉन ने भारत सरकार के अधिकारियों को कथित रूप से रिश्वत देने के लिए अपने कुछ कानूनी प्रतिनिधियों के खिलाफ जांच शुरू की है. खबरों के मुताबिक, इस संबंध में उसने अपने वरिष्ठ कॉरपोरेट वकील को छुट्टी पर भेज दिया है.
इन खबरों के बीच अमेरिकी ई-कॉमर्स कंपनी ने पिछले हफ्ते सोमवार को कहा था कि वह अनुचित कार्यों के आरोपों को गंभीरता से लेती है और उचित कार्रवाई करने के लिए उनकी पूरी जांच करती है.
कंपनी ने आरोपों की पुष्टि या खंडन किए बिना कहा कि वह ‘भ्रष्टाचार को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करती है.’
अमेज़ॉन ने 2018-20 के दौरान भारत में अपनी मौजूदगी को बनाये रखने के लिए कानूनी गतिविधियों पर 8,546 करोड़ रुपये यानी 1.2 अरब डॉलर खर्च किए हैं.
इस मामले में व्यापारियों के संगठन कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने यह कहते हुए सीबीआई जांच की मांग की है कि मामला सरकार की विश्वसनीयता से जुड़ा है और सरकार के भीतर सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार को दूर करने के दृष्टिकोण के खिलाफ है.
संगठन ने मामले में शामिल अधिकारियों के नाम सार्वजनिक करने और उनके खिलाफ अनुकरणीय कार्रवाई की भी मांग की है.
यह घटनाक्रम ऐसे समय में सामने आया है जब ई-कॉमर्स कंपनी कथित प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रथाओं, विक्रेताओं के तरजीही व्यवहार आदि को लेकर निष्पक्ष व्यापार नियामक, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) की जांच का सामना कर रही है.
इसके अलावा अमेज़ॉन का फ्यूचर ग्रुप के साथ कानूनी विवाद भी चल रहा है.
अमेज़ॉन ने फ्यूचर ग्रुप और रिलायंस रिटेल वेंचर्स लिमिटेड के बीच 24,713 करोड़ रुपये के प्रस्तावित सौदे को अदालत में चुनौती दी है और फ्यूचर ग्रुप को सिंगापुर अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र (एसआईएसी) में घसीटा है.
उसका कहना है कि फ्यूचर ने उसकी प्रतिद्वंद्वी कंपनी रिलायंस के साथ समझौता कर उसके साथ पूर्व में किए गए एक करार का उल्लंघन किया है.
आरएसएस से जुड़ी पाञ्चजन्य पत्रिका ने अपने पिछले अंक में सॉफ्टवेयर कंपनी इंफोसिस पर निशाना साधा था.
पत्रिका ने इंफोसिस द्वारा तैयार किए गए आयकर और जीएसटी पोर्टल में खामियों को लेकर उसकी आलोचना करते हुए आशंका व्यक्त की थी कि क्या इंफोसिस के माध्यम से कोई राष्ट्रविरोधी ताकत भारत के आर्थिक हितों को नुकसान पहुंचाने का प्रयास कर रही है.
‘पाञ्चजन्य’ के 5 सितंबर के संस्करण में इंफोसिस पर ‘साख और आघात’ शीर्षक से चार पृष्ठों की कवर स्टोरी प्रकाशित की गई थी, जिसमें इसके संस्थापक नारायण मूर्ति की तस्वीर कवर पेज पर थी.
लेख में बेंगलुरु स्थित कंपनी पर निशाना साधा गया था और इसे ‘ऊंची दुकान, फीका पकवान’ करार दिया गया था. इसमें यह भी आरोप लगाया गया था कि इंफोसिस का ‘राष्ट्र-विरोधी’ ताकतों से संबंध है और इसके परिणामस्वरूप सरकार के आयकर पोर्टल में गड़बड़ की गई है.
पत्रिका के लेख में कहा गया था कि कंपनी ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ के साथ काम कर रही है.
हालांकि इसे लेकर आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि ‘पाञ्चजन्य’ आरएसएस का मुखपत्र नहीं है और लेख लेखक की राय को दर्शाता है और इसे संगठन से नहीं जोड़ा जाना चाहिए.
बाद में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी कहा था कि साप्ताहिक पत्रिका ‘पाञ्चजन्य’ में इंफोसिस पर प्रकाशित लेख सही नहीं था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)