फेसबुक की पूर्व कर्मचारी फ्रांसेस हौगेन ने हाल ही में कंपनी के भीतर व्याप्त ख़ामियों को लेकर अमेरिका में शिकायत दायर की है, जिसमें विस्तार से बताया गया है कि किस तरह फेसबुक को पता है कि उनके मंच को वैश्विक विभाजन और जातीय हिंसा के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन वे कार्रवाई नहीं कर रहे हैं.
नई दिल्ली: फेसबुक की पूर्व कर्मचारी और ह्विसिलब्लोअर फ्रांसेस हौगेन ने कंपनी के आचरण और इसके अंदर व्याप्त गंभीर खामियों को लेकर हाल ही में कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं. उन्होंने इस संबंध में अमेरिका की प्रतिभूति और विनिमय आयोग (एसईसी) में शिकायत दर्ज कर कार्रवाई की मांग की है.
खास बात ये है कि हौगेन ने अपने शिकायत पत्र में जो साक्ष्य संलग्न किए हैं उसमें भारत से जुड़े फेसबुक दुरुपयोग को लेकर एक लंबी चौड़ी सूची शामिल है और इसमें विशेष रूप से दक्षिणपंथी संगठनों तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का नाम सामने आता है.
ह्विसिलब्लोअर ने बताया है कि किस तरह आरएसएस से जुड़े यूजर्स, ग्रुप्स और पेजों द्वारा ‘भय का माहौल बनाने’ वाले कंटेट को फैलाया जाता है.
हौगेन ने कंपनी के आंतरिक दस्तावेजों के हवाले से दर्शाया है कि फेसबुक किस तरह ‘वैश्विक विभाजन और जातीय हिंसा’ को बढ़ावा दे रहा है और ‘राजनीतिक संवेदनशीलता’ के नाम पर ऐसे समूहों (संभवत: आरएसएस से जुड़े ग्रुप्स) के खिलाफ पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए या निगरानी नहीं की गई.
फ्रांसेस हौगेन एक डेटा साइंटिस्ट हैं, जिन्होंने मई 2021 तक फेसबुक के साथ काम किया है. कैंब्रिज एनालिटिका के बाद ये दूसरा ऐसा बड़ा खुलासा हुआ है, जिसने फेसबुक को एक बार फिर से संकट में डाल दिया है और वो अपनी छवि को बनाए रखने की कोशिश कर रहा है.
हौगेन इस मामले को लेकर अमेरिकी संसद के सामने भी पेश होने वाली हैं.
गैर-लाभकारी कानूनी संगठन ह्विसिलब्लोअर एड ने हौगेन की ओर से एसईसी में शिकायत दायर की है, जिसे बीते सोमवार की रात को सीबीएस न्यूज द्वारा सार्वजनिक किया गया था.
यदि इस मामले की एक समग्र तस्वीर देखें, तो ये शिकायतें फेसबुक की एक भयावह छवि पेश करती हैं और इसके चलते पूरा लोकतांत्रिक माहौल प्रभावित हो रहा है.
ह्विसिलब्लोअर फ्रांसेस हौगेन के मुताबिक, फेसबुक के अधिकारी कंपनी की संस्थागत कमियों से पूरी तरह वाकिफ हैं, जिसके चलते उनके प्लेटफॉर्म पर हेट स्पीच और खतरनाक राजनीतिक बयानबाजियों को बढ़ावा मिल रहा है.
रिपोर्ट के मुताबिक फेसबुक भारत को ‘टियर-0’ की श्रेणी में रखता है. इस श्रेणी में ऐसे देशों को रखा जाता है जहां महत्वपूर्ण चुनावों के दौरान ज्यादा ध्यान दिया जाता है. भारत के अलावा इस श्रेणी में केवल दो और देश ब्राजील तथा अमेरिका हैं.
ये अच्छी खबर है, क्योंकि टियर-2 और टियर-3 देशों में फेसबुक द्वारा चुनावों के दौरान कोई विशेष मॉनिटरिंग नहीं की जाती है.
हालांकि यदि इसको दूसरी तरफ से देखें, तो इस तरह के वर्गीकरण का कोई विशेष महत्व नहीं रह जाता है, क्योंकि ‘फेक न्यूज या फर्जी खबर’ के संबंध में 87 फीसदी संसाधन अमेरिका के लिए होते हैं और बाकी की दुनिया के लिए महज 13 फीसदी.
ये स्थिति इसलिए भी ज्यादा चिंताजनक है क्योंकि अमेरिका और कनाडा को मिलाकर फेसबुक के सिर्फ 10 फीसदी एक्टिव यूजर्स हैं, लेकिन ज्यादा संसाधन यहीं खर्च किया जा रहा है.
बात इतने पर ही नहीं रुकती है. इस खुलासे में सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात ये निकलकर सामने आई है कि फेसबुक सिर्फ तीन से पांच फीसदी हेट स्पीच और महज 0.2 फीसदी ‘हिंसा भड़काने वाले कंटेंट’ पर कार्रवाई कर पाता है.
ह्विसिलब्लोअर के मुताबिक फेसबुक को पूरी तरह से इस बात की जानकारी है कि किस तरह भारत में आरएसएस समर्थित यूजर्स या समूहों द्वारा मुस्लिम विरोधी चीजों का प्रसार किया जा रहा है.
एक दस्तावेज में कहा गया है, ‘कई ऐसे अमानवीय पोस्ट लिखे जा रहे हैं जहां मुसलमानों की तुलना ‘सुअर’ और ‘कुत्तों’ से की गई है. इसके साथ ही कुरान को लेकर अफवाह फैलाई जा रही है कि यह पुरुषों को अपने घर की महिलाओं का रेप करने की इजाजत देता है.’
इसमें यह भी बताया गया है कि कंपनी के पास वो तकनीकी योग्यता नहीं है कि वे इस तरह के पोस्ट का पता लगाकर उन पर कार्रवाई कर सकें. उन्होंने कहा कि इसके पीछे की बड़ी वजह ये है कि कंपनी का सिस्टम हिंदी या बांग्ला भाषा के ऐसे कंटेंट को नहीं पकड़ पा रहा है.
फेसबुक ने हाल में कहा था कि हेट स्पीच को पकड़ने को लेकर तैयार किए गए कंपनी के सिस्टम में चार भारतीय भाषाओं- हिंदी, बांग्ला, उर्दू और तमिल को शामिल किया गया है.
ज्यादा शेयर होने वाले कंटेंट हो सकते हैं फेक न्यूज
ह्विसिलब्लोअर के वकील द्वारा दायर की गई शिकायत में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि किस तरह से सोशल मीडिया पर तेजी से ‘फेक न्यूज’ शेयर किए जा रहे हैं और उन पर कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही है.
एक आंतरिक दस्तावेज के हवाले से कहा गया है कि ‘भारत, इंडोनेशिया और फिलिपींस में प्रति घंटे 10 लाख से 15 लाख अनुमानित फेक न्यूज इम्प्रेशन (लाइक, शेयर या कमेंट) आते हैं.’
उन्होंने कहा कि फेसबुक का एक कंसेप्ट है ‘डीप री-शेयर’. इसका मतलब ये है कि यदि किसी पोस्ट को कई बार शेयर किया जा रहा है, तो इसमें सनसनीखेज, हानिकारक या भड़काऊ सामग्री होने की संभावना होती है.
इसे लेकर शिकायत में पश्चिम बंगाल का एक सैंपल सर्वे पेश किया गया है. उन्होंने कहा कि ‘पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा शेयर की गई सामग्री में से 40 फीसदी अप्रमाणिक/फेक थी.’
इसके साथ ही ह्विसिलब्लोअर फ्रांसेस हौगेन ने इस बात का भी खुलासा किया है कि फेसबुक ‘एक यूजर के कई एकाउंट्स’ होने की समस्या का समाधान भी नहीं कर पा रहा है.
इस संबंध में बड़ा सवाल ये है कि क्या कंपनी ‘डुप्लीकेट’ एकाउंट्स को बंद करने की कोई असल कोशिश कर रहा है या फिर उन्हें इस बात का डर है कि इन एकाउंट्स को बंद करने से उनके प्लेटफॉर्म का ‘एंगेजमेंट’ कम हो जाएगा.
‘लोटस महल’ नामक दस्तावेज के आधार पर हौगेन ने कहा कि फेसबुक के अधिकारी इस बात से पूरी तरह से वाकिफ हैं कि किस तरह भाजपा आईटी सेल ‘एक यूजर के कई एकाउंट्स’ का इस्तेमाल कर नेरैटिव बदलती है.
मालूम हो कि ये पहला मौका नहीं है जब फेसबुक पर इस तरह के आरोप लगे हैं.
पिछले महीने अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल द्वारा प्राप्त किए गए कंपनी के गोपनीय दस्तावेजों से पता चला था कि फेसबुक ने क्रॉसचेक [XCheck] नाम से एक प्रोग्राम तैयार किया है, जो विभिन्न सेलिब्रिटीज, नेताओं और पत्रकारों जैसे रसूखदार लोगों को नियमों का उल्लंघन करने पर कार्रवाई से बचाता है.
इससे पहले वॉल स्ट्रीट जर्नल ने ही एक रिपोर्ट में बताया था कि किस तरह फेसबुक इंडिया ने नाराजगी के डर से भाजपा नेता की एंटी-मुस्लिम पोस्ट पर कार्रवाई नहीं की थी.
रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में फेसबुक की दक्षिण और मध्य एशिया प्रभार की पॉलिसी निदेशक आंखी दास ने भाजपा नेता टी. राजा सिंह के खिलाफ फेसबुक के हेट स्पीच नियमों को लागू करने का विरोध किया था क्योंकि उन्हें डर था कि इससे कंपनी के संबंध भाजपा से बिगड़ सकते हैं.
इसी तरह द गार्जियन ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया था कि फेसबुक ने भारत में फर्जी एकाउंट को हटाने की योजना बनाई थी, लेकिन जैसे ही उसे पता चला कि इसमें एक भाजपा सांसद का भी नाम है तो उन्होंने अपने कदम पीछे खींच लिए.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)