राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के 28वें स्थापना दिवस पर अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि मानवाधिकार का बहुत ज्यादा हनन तब होता है, जब उसे राजनीतिक रंग दिया जाता है. एक ही प्रकार की किसी घटना में कुछ लोगों को मानवाधिकार का हनन दिखता है और वैसी ही किसी दूसरी घटना में उन्हीं लोगों को मानवाधिकार का हनन नहीं दिखता है.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस अरुण कुमार मिश्रा ने बीते मंगलवार को यह कहते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की प्रशंसा की कि उनके ‘अथक प्रयासों’ ने जम्मू कश्मीर और पूर्वोत्तर में शांति के ‘नए युग’ की शुरुआत की है.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के 28वें स्थापना दिवस पर अपने संबोधन में पूर्व न्यायाधीश ने यह भी रेखांकित किया कि ‘बाहरी ताकतों’ द्वारा भारत के खिलाफ मानवाधिकार उल्लंघन के ‘झूठे’ आरोप लगाना बहुत आम हो गया है, ‘जिसका विरोध किया जाना चाहिए.’
एनएचआरसी प्रमुख ने कहा, ‘मुझे केंद्रीय मंत्री अमित शाह जी को बधाई देते हुए खुशी हो रही है. आपके अथक प्रयासों ने जम्मू कश्मीर और पूर्वोत्तर में शांति और कानून व्यवस्था के एक नए युग की शुरुआत की है.’
मालूम हो कि पांच अगस्त 2019 की शुरुआत में केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को निरस्त कर दिया था और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों- जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया था.
अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को निरस्त किए जाने के बाद कुछ वर्गों के विरोध के बीच जम्मू कश्मीर में कर्फ्यू लगाया गया था और इंटरनेट सेवाओं को लंबे समय तक निलंबित कर दिया गया था. कुछ मानवाधिकार समूहों ने इस मुद्दे पर गहरी चिंता व्यक्त की थी.
हालांकि अरुण कुमार मिश्रा ने कहा कि सामाजिक सेवा संगठनों तथा मानवाधिकार के रक्षकों को राजनीतिक हिंसा और आतंकवाद की कड़ी निंदा करनी चाहिए, क्योंकि इस मुद्दे पर उदासीनता ‘कट्टरपंथ’ को जन्म देती है.
एनएचआरसी के प्रमुख ने कहा, ‘भारत में ‘सर्वधर्म समभाव’ की भावना है. हर एक को मंदिर या मस्जिद या गिरजाघर बनाने की स्वतंत्रता है, लेकिन कई देशों में यह आजादी नहीं है.’
उन्होंने कहा कि मनुष्य मानवता को नष्ट करने पर आमादा है, 20वीं सदी में वैश्विक स्तर पर राजनीतिक हिंसा के कारण बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई है.
उन्होंने कहा, ‘निर्दोष लोगों के हत्यारों का महिमामंडन नहीं किया जा सकता. ऐसे आतंकवादियों को स्वतंत्रता सेनानी कहना अनुचित है.’
मिश्रा ने आगे कहा, ‘समाज सेवा संगठनों तथा मानवाधिकार के रक्षकों को राजनीतिक हिंसा और आतंकवाद की कड़ी निंदा करनी चाहिए. इस मुद्दे पर उदासीनता, कट्टरवाद को जन्म देती है और इसके लिए इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा.’
उन्होंने कहा कि एनएचआरसी पिछले 28 वर्षों से काम कर रहा है, हालांकि कई शक्तिशाली देशों में अभी तक ऐसी संस्थाएं स्थापित नहीं हुई हैं. दुनिया की आबादी का लगभग छठा हिस्सा भारत में रहता है. भारत में एक लोकतांत्रिक प्रणाली है, जो हर मुद्दे को शांतिपूर्ण और वैध तरीके से हल करती है.
मिश्रा ने कहा कि देश में प्रेस, मीडिया और साइबरस्पेस को आजादी दी गई है, जो संवैधानिक कर्तव्यों और मानवीय जिम्मेदारियों के तहत आता है.
उन्होंने कहा, ‘लेकिन गणतंत्र के मूल स्तंभ न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को तिरस्कारपूर्ण व्यवहार से नष्ट करने की किसी को भी स्वतंत्रता नहीं है और न ही किसी को यह स्वतंत्रता दी जानी चाहिए.’
वहीं शाह ने अपने संबोधन में कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार समाज के गरीब, पिछड़े और वंचित वर्गों के कल्याण के लिए अथक प्रयास कर रही है और इस तरह से उनके मानवाधिकारों की रक्षा कर रही है.
पांच अगस्त, 2019 को जब राज्यसभा ने जम्मू कश्मीर के लिए अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान निरस्त करने के प्रस्ताव और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के एक विधेयक को मंजूरी दी थी, तब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था, ‘अनुच्छेद 370 राज्य में सामान्य स्थिति के लिए सबसे बड़ी बाधा है.’
इस कदम के बाद कानून-व्यवस्था की स्थिति के बारे में विपक्ष की आशंकाओं को दूर करते हुए शाह ने तब कहा था, ‘कुछ नहीं होगा’ और इस क्षेत्र को एक और युद्धग्रस्त क्षेत्र में नहीं बदलने दिया जाएगा.
गृह मंत्री ने कहा कि एनएचआरसी ने अस्तित्व में आने के बाद से 20 लाख मामलों का निपटारा किया है और मानवाधिकारों के उल्लंघन पर पीड़ित लोगों को 205 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया है, जो सराहनीय है.
मानवाधिकार संरक्षण कानून, 1993 के तहत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना 12 अक्टूबर 1993 को मानवाधिकारों की रक्षा और उन्हें बढ़ावा देने के उद्देश्य के साथ की गई थी.
एनएचआरसी मानवाधिकारों के उल्लंघन का संज्ञान लेता है, जांच करता है और सार्वजनिक प्राधिकारों द्वारा पीड़ितों को दिए जाने के लिए मुआवजे की सिफारिश करता है.
इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी मुख्य अतिथि थे और विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में एक वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से शामिल हुए.
मोदी ने अपने संबोधन में राजनीतिक लाभ और हानि की दृष्टि से मानवाधिकारों की ‘चुनिंदा व्याख्या’ में शामिल लोगों की आलोचना करते हुए कहा कि इस तरह का आचरण मानवाधिकारों के साथ-साथ लोकतंत्र को भी नुकसान पहुंचाता है.
मोदी ने किसी का नाम लिए बिना अपने संबोधन में कहा, ‘मानवाधिकार का बहुत ज्यादा हनन तब होता है, जब उसे राजनीतिक रंग दिया जाता है, राजनीतिक चश्मे से देखा जाता है, राजनीतिक नफा-नुकसान के तराजू से तौला जाता है. इस तरह का चुनिंदा व्यवहार, लोकतंत्र के लिए भी उतना ही नुकसानदायक होता है.’
उन्होंने कहा कि एक ही प्रकार की किसी घटना में कुछ लोगों को मानवाधिकार का हनन दिखता है और वैसी ही किसी दूसरी घटना में उन्हीं लोगों को मानवाधिकार का हनन नहीं दिखता.
एनएचआरसी प्रमुख ने मंगलवार को अपने संबोधन में यह भी कहा कि भारत वैश्विक स्तर पर एक शक्तिशाली इकाई के रूप में उभरा है और इसे एक नई शक्ति के रूप में मान्यता मिली है, और इसका श्रेय ‘भारत के लोगों, देश की संवैधानिक व्यवस्था और नेतृत्व’ को जाता है.
शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश ने इस साल दो जून को एनएचआरसी के नए अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला था.
फरवरी 2020 में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान जस्टिस मिश्रा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की थी.
अंतरराष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन 2020 को संबोधित करते हुए उन्होंने मोदी को ‘अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित दूरदर्शी’ और एक ‘बहुमुखी प्रतिभा वाला’ नेता बताया था, जो ‘विश्व स्तर पर सोचते हैं और स्थानीय रूप से कार्य करते हैं.’ उनके इस बयान को लेकर विवाद पैदा हो गया था.
The PM & HM have made a mockery of human rights since their Gujarat days. Now they are joined in the jugalbandi by Chairman of NHRC no less, a judge who sat in judgment on his own earlier order and claimed no conflict of interest. The democratic space in India continues to shrink
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) October 12, 2021
इस बीच, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं राज्यसभा सदस्य जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि भारत में लोकतांत्रिक स्थान सिकुड़ता जा रहा है.
उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा, ‘प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने अपने गुजरात के दिनों से मानवाधिकारों का मखौल उड़ाया है. अब उनके साथ जुगलबंदी में एनएचआरसी के अध्यक्ष शामिल हो गए हैं, एक न्यायाधीश जो अपने ही पहले के आदेश पर फैसला सुनाने के लिए बैठे और दावा किया कि हितों का टकराव नहीं है. भारत में लोकतांत्रिक स्थान सिकुड़ता जा रहा है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)