जम्मू कश्मीर सरकार ने इन लोगों पर आतंकवादियों के साथ संबंध रखने का आरोप लगाया है. उपराज्यपाल द्वारा इनकी बर्ख़ास्तगी संविधान के अनुच्छेद 311 (2)(सी) के तहत की गई है. संविधान के इस प्रावधान के अनुसार सरकार को बिना जांच के ही संबंधित अधिकारी को बर्ख़ास्त करने का अधिकार मिला हुआ है.
नई दिल्ली: कश्मीर के दिवंगत अलगाववादी नेता समर्थक सैयद अली शाह गिलानी के पोते और डोडा के एक शिक्षक को जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों का कथित तौर पर साथ देने के आरोप में सरकारी नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया है.
गिलानी के पोते अनीस-उल-इस्लाम और शिक्षक फारूक अहमद बट की बर्खास्तगी के साथ ही केंद्रशासित क्षेत्र में पिछले छह महीने में सरकारी नौकरी से निकाले गए कर्मचारियों की संख्या बढ़कर 27 हो गई है.
इससे पहले सेवा से निकाले गए लोगों में पाकिस्तान स्थित हिज्बुल मुजाहिदीन के सरगना सैयद सलाहुद्दीन के दो बेटे और दागी पुलिस अधीक्षक दविंदर सिंह शामिल हैं. सिंह को एक वांछित आतंकवादी तथा दो अन्य के साथ गिरफ्तार किया गया था.
उपराज्यपाल ने इन्हें संविधान के अनुच्छेद 311 (2)(सी) में प्राप्त शक्तियों के तहत तथ्यों और परिस्थितियों की पड़ताल करने के बाद बर्खास्त किया था.
संविधान के इस प्रावधान के तहत बर्खास्त किए गए कर्मचारी अपनी बर्खास्तगी को केवल जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय में चुनौती दे सकते हैं.
अधिकारियों ने बताया कि गिलानी के बेटे अल्ताफ अहमद शाह उर्फ अल्ताफ फंटूश के बेटे अनीस के विरुद्ध डोसियर के अनुसार, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब में स्थित तीन संदिग्ध उनके नजदीकी संपर्क में हैं.
अनीस के पिता को आतंक के वित्त पोषण के मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा गिरफ्तार किया गया था और वह 2017 से तिहाड़ जेल में हैं.
अनीस को साल 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के कार्यकाल में शेर-ए-कश्मीर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन केंद्र (एसकेआईसीसी) में शोध अधिकारी नियुक्त किया गया था. एसकेआईसीसी का संचालन जम्मू कश्मीर पर्यटन विभाग द्वारा किया जाता है.
अधिकारियों के अनुसार, अनीस 31 जुलाई से सात अगस्त 2016 के बीच पाकिस्तान गए थे और उन्होंने कथित तौर पर गिलानी के कहने पर आईएसआई के कर्नल यासिर से मुलाकात की थी.
उनकी वापसी के बाद जम्मू कश्मीर में हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकी बुरहान वानी की मौत पर बड़े पैमाने पर अस्थिरता देखी गई थी.
टाइम्स ऑफ इंडिया अपनी एक रिपोर्ट में खुफिया विभाग के सूत्रों के हवाले से बताया है, कश्मीर में बड़े पैमाने पर शुरू हुए इस विरोध प्रदर्शन को समाप्त करने के लिए गिलानी के पोते को ‘उपहार’ रूप में ये सरकारी नौकरी दी गई थी. सरकार ने इस पद पर नियुक्ति के लिए जो विज्ञापन निकाला था, उसके जवाब में 140 लोगों ने आवेदन किया था, लेकिन अनीस को छोड़ किसी और को इंटरव्यू के लिए नहीं बुलाया गया था.
जम्मू कश्मीर सरकार के एक अधिकारी ने बताया कि तत्कालीन राज्य सरकार पर अनीस की नियुक्ति का दबाव था और इसके लिए सभी नियमों को ताक पर रखा दिया गया था.
आरोप है कि अनीस अपनी नियुक्ति से पहले श्रीनगर शहर में और उसके आस-पास ड्रोन उड़ाकर कानून व्यवस्था की स्थिति का वीडियो बनाते थे और बाद में उस फुटेज को सीमा पार पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से साझा करते थे.
बर्खास्त किए गए अन्य कर्मचारी फारूक अहमद बट जम्मू के डोडा में एक स्कूली शिक्षक हैं. उन्हें साल 2005 में संविदा पर नियुक्त किया गया था और 2010 में स्थायी कर दिया गया था.
बट के भाई मोहम्मद अमीन बट लश्कर-ए-तैयबा का सक्रिय आतंकवादी है, जो पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर में अपनी गतिविधि चलाता है.
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, एक खुफिया अधिकारी ने बताया है कि फारूक अपने भाई के इशारे पर एक हमले को अंजाम देने वाले थे. उनका एक अन्य भाई सफदर अली आतंक मामले में जेल में है.
इस साल मई में कुपवाड़ा जिले के शिक्षक इदरीस जान को राज्य की सुरक्षा के हित में बर्खास्त कर दिया था. यह राज्य में इस तरह का पहला मामला था.
इसके बाद हिजबुल मुजाहिदीन प्रमुख के दो बेटों सहित 11 कर्मचारियों को 11 जुलाई को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था. इससे पहले अप्रैल-मई में प्रशासन ने दविंदर सिंह समेत सात कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया था.
बीते सितंबर महीने में जम्मू कश्मीर में दो पुलिसकर्मियों सहित छह सरकारी कर्मचारियों को आतंकवादियों के साथ कथित संबंधों को लेकर बर्खास्त किया गया था.
ये सभी बर्खास्तगी जम्मू कश्मीर प्रशासन द्वारा लागू किए गए उस नियम के बाद हुआ है, जो यह कहता है कि यदि कोई कर्मचारी या उनके परिवार का कोई सदस्य यूएपीए और जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत आरोपित लोगों के प्रति सहानभूति रखता है तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जाएगा.
बता दें कि जम्मू और कश्मीर सरकार ने ‘राज्य की सुरक्षा के हित’ के नाम पर औपचारिक जांच की जरूरत को दरकिनार करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 311 (2)(सी) के तहत एक विशेष टास्क फोर्स का गठन किया था. इसके पास बिना जांच के ही संबंधित अधिकारी को बर्खास्त करने का अधिकार होता है.
द वायर ने अप्रैल, 2021 में रिपोर्ट कर बताया था कि यह कानून संदिग्ध कर्मचारियों को ‘उन आरोपों के संबंध में सुने जाने का उचित अवसर’ देता है, लेकिन खंड 2 (सी), जिसे जम्मू कश्मीर प्रशासन द्वारा लागू किया गया है, जांच की इस शर्त को दरकिनार कर देता है कि यदि ‘राष्ट्रपति या राज्यपाल इस बात से संतुष्ट हैं कि राज्य की सुरक्षा के हित में इस तरह की जांच करना उचित नहीं है.’
संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत तत्कालीन राज्य को विशेष दर्जा मिला होने के चलते जम्मू और कश्मीर पर अनुच्छेद 311 लागू नहीं हुआ करता था.
कार्यकर्ताओं का कहना है कि जम्मू कश्मीर में प्रतिरोध की आवाजों एवं बोलने की आजादी का दमन करने के लिए इन कानूनों का इस्तेमाल किया जा रहा है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)