गुजरात दंगे में मारे गए कांग्रेस सांसद एहसान जाफ़री की पत्नी ज़किया जाफ़री ने पांच अक्टूबर, 2017 के गुजरात हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें निचली अदालत द्वारा एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार करने के फैसले सही ठहराया गया था. एसआईटी ने मामले में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और 63 अन्य को क्लीनचिट दे दी थी.
नई दिल्ली: गुजरात में साल 2002 के गोधरा कांड के बाद हुए दंगों की जांच करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल (एसआईटी) ने बुधवार को दिवंगत कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी की इस दलील का खंडन किया कि उसने सांप्रदायिक घटनाओं से संबंधित सभी तथ्यों की जांच नहीं की थी.
एसआईटी ने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया कि उसने ‘सब कुछ ईमानदारी से जांच किया था.’
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, एसआईटी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने जस्टिस एएम खानविल्कर की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा, ‘हम आपको बताएंगे कि हमने ईमानदारी से हर चीज की जांच की है.’
इस पीठ में जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार भी शामिल हैं, जो जकिया जाफरी की अपील पर सुनवाई कर रही है.
जाफरी ने पांच अक्टूबर, 2017 के गुजरात हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें अहमदाबाद मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट द्वारा एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार करने के फैसले सही ठहराया गया था. एसआईटी ने इस मामले में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और 63 अन्य को क्लीनचिट दे दी थी.
रोहतगी का बयान जाफरी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की इस दलील के जवाब में आया कि एसआईटी ने पुलिस कंट्रोल रूम में एक मंत्री की मौजूदगी के बारे में विस्तार से पूछताछ नहीं की थी.
सिब्बल ने सवाल किया, ‘पुलिस कंट्रोल रूम में मंत्री का क्या काम है? क्या इसकी जांच की जरूरत नहीं है?’
उन्होंने बताया कि एक प्राइवेट व्यक्ति जयदीप पटेल को गोधरा ट्रेन नरसंहार में मारे गए व्यक्तियों के शव सौंपे गए थे. सिब्बल ने इस मामले में जांच की मांग करते हुए कहा, ‘सवाल यह है कि प्रक्रिया के सभी नियमों के विपरीत इस व्यक्ति को एक आधिकारिक संचार के माध्यम से शव कैसे दिया गया?’
उन्होंने आगे कहा, ‘जब तक ये शव अहमदाबाद पहुंचे, तब तक भीड़ जमा हो चुकी थी. फोन किसने किया? किसी को कैसे पता चला कि पटेल शव ले जा रहे हैं? मुझे नहीं पता, लेकिन इनकी जांच होनी चाहिए. लेकिन एसआईटी द्वारा विभागीय जांच का हवाला देना पर्याप्त नहीं है.’
पीठ ने कहा कि यह कोई सामान्य जांच नहीं थी. एसआईटी को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था और सिब्बल से कहा था कि वह इसे ‘सामान्य न समझें.’
बहरहाल इस मामले में दलीलें पूरी नहीं हो पाईं और अगली सुनवाई 10 नवंबर को फिर से शुरू होगी.
उल्लेखनीय है कि गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में आग लगाए जाने से 59 लोगों के मारे जाने की घटना के ठीक एक दिन बाद 28 फरवरी, 2002 को अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाइटी में 68 लोग मारे गए थे. दंगों में मारे गए इन लोगों में जकिया जाफरी के पति एहसान जाफरी भी शामिल थे.
घटना के करीब 10 साल बाद आठ फरवरी, 2012 को एसआईटी ने मोदी तथा 63 अन्य को क्लीनचिट देते हुए ‘क्लोजर रिपोर्ट’ दाखिल की थी. मोदी अब देश के प्रधानमंत्री हैं.
क्लोजर रिपोर्ट में कहा गया था कि जांच एजेंसी को आरोपियों के खिलाफ ‘अभियोग चलाने योग्य कोई सबूत नहीं मिले’.
सुप्रीम कोर्ट की ओर गठित एसआईटी द्वारा साल 2012 में सौंपी गई क्लोजर रिपोर्ट के खिलाफ जकिया ने साल 2014 में गुजरात हाईकोर्ट का रुख किया था. जिसने एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट की वैधता को बरकरार रखते हुए जकिया के आरोपों को खारिज कर दिया.
हालांकि गुजरात हाईकोर्ट ने जकिया के आरोपों को लेकर किसी अन्य अदालत में मामले की नए सिरे से जांच कराने की अनुमति दी थी और ट्रायल कोर्ट के इस फैसले को पलट दिया, जिसमें मामले की नए सिरे से जांच की संभावना को यह मानते हुए खारिज कर दिया कि एसआईटी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच कर रही थी.
जकिया ने एसआईटी के फैसले के खिलाफ दायर याचिका को खारिज करने के गुजरात उच्च न्यायालय के पांच अक्टूबर, 2017 के आदेश को साल 2018 में उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी.
इससे पहले बीते मंगलवार को उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि वह 2002 के दंगों के दौरान गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी समेत 64 लोगों को क्लीनचिट देने वाले विशेष जांच दल (एसआईटी) की क्लोजर रिपोर्ट और इसे स्वीकार करते समय मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा दिए गए औचित्य को देखना चाहेगा.
पीठ ने दिवंगत कांग्रेस नेता एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी की याचिका पर सुनवाई शुरू की, जिसमें उनके वकील कपिल सिब्बल के माध्यम से एसआईटी की क्लीनचिट को चुनौती दी गई है.
न्यायालय ने कहा, ‘हमारा बड़ी हस्तियों से कोई लेना-देना नहीं है. राजनीतिज्ञ कुछ भी नहीं है. हम कानून और व्यवस्था तथा एक व्यक्ति के अधिकारों के मामले को देख रहे हैं.’
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि वह अब जाफरी की शिकायत में नामजद लोगों की दोषसिद्धि नहीं चाहते और उनका मामला यह है कि ‘एक बड़ी साजिश थी, जहां नौकरशाही की निष्क्रियता, पुलिस की मिलीभगत, भड़काऊ भाषण रहे और हिंसा को बढ़ावा दिया गया.’
पीठ ने कहा, ‘हम क्लोजर रिपोर्ट (एसआईटी की) में दिए गए औचित्य को देखना चाहते हैं. हम रिपोर्ट स्वीकार करने के मजिस्ट्रेट के आदेश और उनके विवेक को देखना चाहते हैं.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)