सभी मंत्रालयों और विभागों को जारी आदेश में सरकार ने अब से केवल नकद में एयर इंडिया का टिकट ख़रीदने का भी निर्देश दिया है. सरकार ने इस महीने की शुरुआत में एयर इंडिया को टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी टैलेस प्राइवेट लिमिटेड को 18,000 करोड़ रुपये में बेचने का फैसला किया था.
नई दिल्ली: सरकार ने बुधवार को सभी मंत्रालयों और विभागों से कर्ज में डूबी एयर इंडिया का बकाया तुरंत चुकाने और अब से केवल नकद में टिकट खरीदने को कहा.
सरकार ने इस महीने की शुरुआत में एयर इंडिया को टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी टैलेस प्राइवेट लिमिटेड को 18,000 करोड़ रुपये में बेचने का फैसला किया था.
वित्त मंत्रालय के तहत व्यय विभाग ने 2009 के एक आदेश में कहा था कि एलटीसी (केंद्र सरकार के कर्मचारियों को देश के विभिन्न हिस्सों और घर की यात्रा के लिए दी जाने वाली यात्रा रियायत) सहित हवाई यात्रा (घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों) के मामलों में, जहां भारत सरकार हवाई मार्ग की लागत वहन करती है, अधिकारी केवल एयर इंडिया से यात्रा कर सकते हैं.
व्यय विभाग ने कहा कि एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस के विनिवेश की प्रक्रिया जारी है और एयरलाइन ने हवाई टिकटों के लिए ऋण सुविधाएं बंद कर दी हैं.
विभाग ने एक कार्यालय ज्ञापन में कहा, ‘इसलिए, सभी मंत्रालयों/विभागों को एयर इंडिया का बकाया तुरंत चुकाने का निर्देश दिया जाता है. अगले निर्देश तक एयर इंडिया से हवाई टिकट नकद में खरीदें.’
मंत्रालयों/विभागों को इस कार्यालय आदेश के अनुपालन के लिए प्रशासनिक नियंत्रण में अधीनस्थ कार्यालयों/संस्थानों को सतर्क करने का भी निर्देश दिया है.
25 अक्टूबर को सरकार ने राष्ट्रीय विमानन कंपनी एयर इंडिया की बिक्री के लिए टाटा संस के साथ शेयर खरीद समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. टाटा अब दिसंबर के अंत तक एयरलाइन को सौंपने से पहले विभिन्न नियामक मंजूरी मांगेगा.
इस सौदे में 2,700 करोड़ रुपये का नकद भुगतान और एयरलाइन के 15,300 करोड़ रुपये के कर्ज का अधिग्रहण शामिल है.
सरकार ग्राउंड-हैंडलिंग कंपनी एआईएसएटीएस (Air India SATS Airport Services Private Limited) में अपनी 50 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस के अपने 100 प्रतिशत स्वामित्व को बेच रही है.
निजी विमानन कंपनी स्पाइसजेट के प्रमुख अजय सिंह के नेतृत्व वाले कंसोर्टियम द्वारा 15,100 करोड़ रुपये की पेशकश और घाटे में चल रही एयर इंडिया में अपनी 100 प्रतिशत हिस्सेदारी की बिक्री के लिए सरकार द्वारा निर्धारित 12,906 करोड़ रुपये के आरक्षित मूल्य को से संबंधित इस सौदे में टाटा ने बाजी मार ली थी.
इसके साथ ही 1953 में टाटा समूह से नियंत्रण लेकर इस एयरलाइन का राष्ट्रीयकरण करने वाली सरकार ने इसमें 100 प्रतिशत हिस्सेदारी को छोड़ दिया.
इस सौदे के बाद सरकार ने कहा था कि टाटा को एयर इंडिया के सभी कर्मचारियों को एक साल के लिए रखना होगा, दूसरे साल वह स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना की पेशकश कर सकती है.
31 अगस्त तक एयर इंडिया पर कुल 61,562 करोड़ रुपये का कर्ज था और इस कर्ज का 75 प्रतिशत या 46,262 करोड़ रुपये घाटे में चल रही एयरलाइन को टाटा समूह को सौंपने से पहले एआईएएचएल (Air India Assets Holding Limited) को हस्तांतरित किया जाएगा.
टाटा कंपनी के संस्थापक जहांगीर रतनजी दादाभाई (जेआरडी) टाटा ने साल 1932 में इस एयरलाइन की स्थापना की थी. तब इसे टाटा एयरलाइंस कहा जाता था. साल 1946 में टाटा संस के विमानन प्रभाग को एयर इंडिया के रूप में सूचीबद्ध किया गया था और साल 1948 में एयर इंडिया इंटरनेशनल को यूरोप के लिए उड़ानों के साथ शुरू किया गया था.
इस अंतरराष्ट्रीय सेवा भारत में पहली सार्वजनिक-निजी भागीदारी में से एक थी, जिसमें सरकार की 49 प्रतिशत, टाटा की 25 प्रतिशत और जनता की शेष हिस्सेदारी थी. साल 1953 में एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण किया गया था.
ये तीसरा मौका था जब एयर इंडिया को बेचने की कोशिश की गई है, जिसमें सरकार सफल हुई है. इससे पहले साल 2001 और 2018 में भी इसी तरह की कोशिश की गई थी, लेकिन किसी ने भी इसके लिए बोली नहीं लगाई थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)