भारत ने कश्मीरी कार्यकर्ता की गिरफ़्तारी पर संयुक्त राष्ट्र की चिंताओं को ख़ारिज किया

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने एनआईए द्वारा कश्मीर के मानवाधिकार कार्यकर्ता ख़ुर्रम परवेज़ की यूएपीए के तहत गिरफ़्तारी पर चिंता जताई थी, जिसके बाद विदेश मंत्रालय ने कहा कि उसे मानवाधिकारों पर आतंकवाद के नकारात्मक प्रभाव की बेहतर समझ विकसित करनी चाहिए.

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खुर्रम परवेज़ (फोटो साभारः फहद शाह)

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने एनआईए द्वारा कश्मीर के मानवाधिकार कार्यकर्ता ख़ुर्रम परवेज़ की यूएपीए के तहत गिरफ़्तारी पर चिंता जताई थी, जिसके बाद विदेश मंत्रालय ने कहा कि उसे मानवाधिकारों पर आतंकवाद के नकारात्मक प्रभाव की बेहतर समझ विकसित करनी चाहिए.

खुर्रम परवेज़ (फोटो साभारः फहद शाह)

नई दिल्लीः संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख कार्यालय के कश्मीरी मानवाधिकार कार्यकर्ता खुर्रम परवेज की गिरफ्तारी और उनके खिलाफ यूएपीए का इस्तेमाल करने पर चिंता जताने के बाद भारत ने गुरुवार को कहा कि संयुक्त राष्ट्र को मानवाधिकारों पर आतंकवाद के नकारात्मक प्रभाव की बेहतर समझ विकसित करनी चाहिए.

रिपोर्ट के अनुसार, मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (ओएचसीएचआर) के प्रवक्ता रूपर्ट कॉलविले ने मंगलवार को कहा था कि हम यूएपीए के तहत कश्मीरी कार्यकर्ता खुर्रम परवेज की गिरफ्तारी को लेकर चिंतित हैं.

संगठन के बयान के एक दिन बाद विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि इस बयान में भारतीय सुरक्षाबलों के खिलाफ आधारहीन आरोप लगाए गए हैं.

बागची ने कहा, ‘यह सीमापार आतंकवाद से भारत के सामने सुरक्षा चुनौतियों और जम्मू एवं कश्मीर सहित हमारे नागरिकों पर सबसे महत्वपूर्ण मौलिक मानवाधिकार जीवन के अधिकार पर इसके प्रभाव को लेकर ओएचसीएचआर में इसकी समझ की कमी को दर्शाता है.’

उन्होंने कहा कि सभी कार्रवाई कानून के अनुरूप की गई है. हम ओएचसीएचआर से मानवाधिकारों पर आतंकवाद के नकारात्मक प्रभाव की बेहतर समझ को विकसित करने का आग्रह करते हैं.

बता दें कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने परवेज के कार्यालय पर छापेरमारी के बाद 22 नवंबर को परवेज को यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया था.

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय के प्रवक्ता ने कहा, ‘हम आरोपों के तथ्यात्मक आधार से वाकिफ नहीं हैं.’

परवेज को गायब हुए लोगों के परिवारों का पैरोकार बताते हुए ओएचसीएचआर के प्रवक्ता ने बताया, ‘उन्हें 2016 में भी उनके काम के लिए निशना बनाया गया था. उन्हें 2016 में जिनेवा जाने से रोकने के बाद रासुका के तहत ढाई महीने तक हिरासत में रखा गया था. जम्मू एवं कश्मीर हाईकोर्ट ने बाद में उनकी हिरासत को अवैध बताते हुए उन्हें रिहा कर दिया था.’

कोलविले ने कहा कि भारतीय प्रशासन को परवेज की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता सुनिश्चित करने और उन्हें रिहा करने के लिए एहतियाती कदम उठाने चाहिए.

इस पर भारत ने जवाब दिया कि बयान में जिस व्यक्ति की गिरफ्तारी या डिटेंशन की बात की गई है, उन्हें पूरी तरह से कानूनों के प्रावधानों के तहत गिरफ्तार किया गया है.

यूएपीए की कड़ी आलोचना करते हुए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने जोर देकर कहा कि यूएपीए के तहत लोगों और संगठनों को बेतुके मानदंडों के आधार पर आतंकियों को तौर पर चिह्नित किया जाता है.

इसके साथ यह भी कहा गया कि यूएपीए के तहत आतंकी अधिनियम की बहुत ही अस्पष्ट परिभाषा दी गई है, जिससे लोगों को लंबे समय तक सुनवाई से पहले ही हिरासत में रखा जाता है और उनके लिए जमानत हासिल करना मुश्किल हो जाता है.

कोलविले ने कहा, ‘यह अधिनियम जम्मू कश्मीर एवं देश के अन्य हिस्सों में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और अन्य आलोचकों के काम को दबाने के लिए तेजी से इस्तेमाल किया जा रहा है.’

कोलविले ने कहा, ‘हम यूएपीए को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून और इसके मानकों के दायरे में लाने के लिए इसमें संशोधन की प्रतिबद्धता जताते हैं और भारतीय प्रशासन से आग्रह करते हैं कि नागरिक समाज, मीडिया और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से जुड़े मामलों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को गलत तरीके से बाधित करने के लिए यूएपीए और अन्य कानूनों का इस्तेमाल करने से बचा जाए.’

बागची ने का कि एक लोकतांत्रिक देश के रूप में भारत अपने नागरिकों के मानवाधिकारों की रक्षा करने और इसे बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

एमईए प्रवक्ता बागची ने कहा, ‘यूएपीए की तरह राष्ट्रीय सुरक्षा कानूनों को देश की संप्रभुता और इसके नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संसद में अधिनियमित किया गया था.’

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त कार्यालय ने हिंसा रोकने की जरूरत को स्वीकार किया लेकिन साथ में जम्मू कश्मीर में नागरिक समाज संगठनों से जुड़े लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने पर भी चिंता जताई.

कोलविले ने यह भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय इस साल कश्मीर में सशस्त्र समूहों द्वारा धार्मिक अल्पसंख्यकों सहित नागरिकों की हत्याओं के मामले बढ़ने को लेकर भी चिंतित है.

उन्होंने कहा कि सुरक्षाबलों ने आतंकवाद रोधी अभियानों में ‘नागरिकों को भी मार डाला है और उनके शवों का गुप्त तरीके से निपटारा’ किया है. उन्होंने श्रीनगर के हैदरपोरा इलाके में 15 नवंबर को हुए एनकाउंटर में दो नागरिकों की मौतका जिक्र भी किया।

उन्होंने कहा, ‘नागरिकों की हत्याओं की तुरंत, पारदर्शी, स्वतंत्र और प्रभावी जांच होनी चाहिए और उनके परिवारों को अपने प्रियजनों की मौत पर शोक मनाने और उनके लिए न्याय की मांग करने की अनुमति दी जानी चाहिए.’

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने सुरक्षाबलों से भी संयम बरतने और यह सुनिश्चित करने को कहा कि हाल के हफ्तों में जम्मू कश्मीर में तनाव बढ़ने से यहां की स्थानीय आबादी के खिलाफ किसी तरह की हिंसा नहीं हो.

वहीं विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने संयुक्त राष्ट्र संस्था द्वारा सशस्त्रबलों समूह का इस्तेमाल करने पर आपत्ति जताते हुए कहा कि आतंकी संगठनों को सशस्त्र समूह बताना ओएचसीएचआर के स्पष्ट पूर्वाग्रह को दर्शाता है.