भारत-नेपाल सीमा पर हमारा रुख़ सर्वविदित, सुसंगत और स्पष्ट है: भारतीय दूतावास

भारत की ओर से यह बयान ऐसे समय में आया है, जब नेपाल के विपक्षी दलों ने उन ख़बरों को लेकर असंतोष जताया है, जिसमें दावा किया गया था कि भारत सरकार उन क्षेत्रों में निर्माण गतिविधियां कर रही है, जिन्हें नेपाल ने अपने नक्शे में शामिल किया है. नेपाल की मुख्य विपक्षी पार्टी सीपीएन-यूएमएल द्वारा प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा से सीमा मुद्दे पर अपना रुख़ रखने और लिपुलेख पर स्थिति स्पष्ट करने की मांग की गई है.

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(फोटो साभारः ट्विटर)

भारत की ओर से यह बयान ऐसे समय में आया है, जब नेपाल के विपक्षी दलों ने उन ख़बरों को लेकर असंतोष जताया है, जिसमें दावा किया गया था कि भारत सरकार उन क्षेत्रों में निर्माण गतिविधियां कर रही है, जिन्हें नेपाल ने अपने नक्शे में शामिल किया है. नेपाल की मुख्य विपक्षी पार्टी सीपीएन-यूएमएल द्वारा प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा से सीमा मुद्दे पर अपना रुख़ रखने और लिपुलेख पर स्थिति स्पष्ट करने की मांग की गई है.

(फोटो साभारः ट्विटर)

काठमांडूः भारतीय दूतावास ने शनिवार को कहा कि नेपाल से लगी उसकी सीमा को लेकर भारत का रुख सर्वविदित, तर्कसंगत और स्पष्ट है.

भारत की ओर से यह बयान ऐसे समय में आया है, जब नेपाल के विपक्षी दलों ने उन खबरों को लेकर असंतोष जताया है, जिसमें दावा किया गया था कि भारत सरकार उन क्षेत्रों में निर्माण गतिविधियां कर रही है, जिन्हें नेपाल ने अपने नक्शे में शामिल किया है.

भारतीय दूतावास का यह बयान नेपाल की मुख्य विपक्षी पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-यूनिफाइड मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट (सीपीएन-यूएमएल) द्वारा प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा से सीमा मुद्दे पर अपना रुख रखने और लिपुलेख पर स्थिति स्पष्ट करने की मांग के बाद आया है.

यूएमएल के विदेश विभाग के प्रमुख राजन भट्टराई ने बयान में कहा, ‘यूएमएल का अटूट विश्वास है कि सड़कों और अन्य संरचनाओं का निर्माण रोक दिया जाना चाहिए. बातचीत के माध्यम से समस्या का त्वरित समाधान किया जाना चाहिए और बातचीत के जरिये मुद्दे का समाधान होने तक किसी ढांचे का निर्माण नहीं किया जाना चाहिए.’

भारत-नेपाल सीमा के सवाल पर नेपाल में हाल की खबरों और बयानों को लेकर मीडिया के सवालों पर भारतीय दूतावास के प्रवक्ता ने कहा, ‘भारत-नेपाल सीमा को लेकर भारत सरकार का रुख जगजहिर, तर्कसंगत और स्पष्ट है. इस बारे में नेपाल सरकार को अवगत करा दिया गया है.’

प्रवक्ता ने कहा, ‘हमारा विचार है कि अंतर-सरकारी तंत्र और माध्यम संवाद के लिए सबसे उपयुक्त हैं. पारस्परिक सहमति से बाकी सीमा मुद्दों का हमेशा हमारे करीबी और मैत्रीपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों की भावना के अनुसार समाधान किया जा सकता है.’

इस मुद्दे पर चिंता जताने वाले अन्य राजनीतिक दलों में बिबेकशील साझा नेपाली, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी और सत्तारूढ़ गठबंधन सहयोगी सीपीएन (यूनिफाइड सोशलिस्ट) शामिल हैं.

सत्तारूढ़ नेपाली कांग्रेस ने बीते 14 जनवरी को कहा था कि लिपुलेख में सड़क निर्माण जारी रखने का भारत का कदम आपत्तिजनक है.

पार्टी ने कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा को नेपाली क्षेत्र बताने का अपना रुख दोहराते हुए भारत से कालापानी क्षेत्र में तैनात अपने सैनिकों को तुरंत वापस बुलाने और ऐतिहासिक तथ्यों व साक्ष्यों के आधार पर उच्चस्तरीय बातचीत के माध्यम से सीमा विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से हल करने का आग्रह किया.

नेपाली कांग्रेस पार्टी ने बयान में कहा, ‘हम इस तथ्य के बारे में स्पष्ट हैं कि लिपुलेख, लिंपियाधुरा और कालापानी नेपाली क्षेत्र में हैं और भारतीय सेना को कालापानी क्षेत्र से वापस जाना चाहिए.’

पार्टी ने कहा कि नेपाल और भारत के बीच सीमा विवाद को 1816 की सुगौली संधि के आधार पर सुलझाया जाना चाहिए.

नेपाली अधिकारियों के मुताबिक, सुगौली संधि के अनुसार महाकाली नदी के पश्चिम का क्षेत्र नेपाल का है.

नेपाली कांग्रेस के महासचिव बिश्व प्रकाश शर्मा तथा गगन थापा द्वारा हस्ताक्षरित बयान में कहा गया, ‘भारत द्वारा लिपुलेख में सड़क का निर्माण नेपाल-भारत संयुक्त आयोग में उल्लिखित खंड का एकतरफा उल्लंघन है, जिसमें उल्लेख किया गया है कि दोनों देशों के बीच किसी भी विवाद को राजनयिक तंत्र के माध्यम से हल किया जाना चाहिए.’

इसमें कहा गया, ‘लिपुलेख में भारत द्वारा द्विपक्षीय समझौते का उल्लंघन कर सड़क निर्माण किया जाना गंभीर और आपत्तिजनक मामला है और इसे तत्काल रोका जाना चाहिए.’

पार्टी ने कहा कि दोनों देशों के बीच सदियों पुराने ऐतिहासिक संबंध हैं, इसलिए दोनों देशों के बीच किसी भी प्रकार के सीमा मुद्दे को ऐतिहासिक दस्तावेजों के आधार पर उच्चस्तरीय राजनयिक माध्यमों से हल किया जाना चाहिए.

पिछले साल नवंबर में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में कहा था कि धारचूला होकर लिपुलेख दर्रे से मानसरोवर तक की सड़क के बारे में नेपाल में गलतफहमी पैदा करने का प्रयास किया गया था.

रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने भी यह दावा किया था कि तीर्थयात्री जल्द ही वाहन से कैलाश-मानसरोवर की यात्रा कर सकेंगे, क्योंकि केंद्र द्वारा घाटियाबागर से लिपुलेख तक की सीमा सड़क को पक्की सड़क में बदलने के लिए 60 करोड़ रुपये मंजूर किए गए हैं.

सिंह ने पिछले महीने दोहराया था कि लिपुलेख के जरिये मानसरोवर तक के मार्ग को क्लियर कर दिया गया है.

लिपुलेख दर्रा, उत्तराखंड में कालापानी के पास एक सुदूर पश्चिमी स्थान है, जो नेपाल और भारत के बीच का सीमा क्षेत्र है.

भारत और नेपाल दोनों कालापानी को अपने क्षेत्र का अभिन्न हिस्सा होने का दावा करते हैं. भारत उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के हिस्से के रूप में और नेपाल धारचूला जिले के हिस्से के रूप में इसे अपना क्षेत्र मानता है.

बता दें कि भारत द्वारा आठ मई 2020 को उत्तराखंड में लिपुलख दर्रे को धारचूला से जोड़ने वाली महत्वपूर्ण 80 किलोमीटर लंबी सड़क को खोलने के बाद दोनों देशों के संबंध तनावपूर्ण हो गए थे.

नेपाल ने यह कहते हुए इस सड़क के उद्घाटन का विरोध किया कि यह सड़क उसके क्षेत्र से होकर गुजरती है. इसके कुछ दिनों बाद नेपाल ने एक नया नक्शा पेश किया, जिसमें लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को उसके क्षेत्रों में दर्शाया गया, जिस पर भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी.

हालांकि, जून 2020 में नेपाल की संसद ने देश के नए राजनीतिक नक्शे को मंजूरी दे दी थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)