वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आम बजट में 2022-2023 के लिए मनरेगा के लिए 73,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. यह मौजूदा वित्त वर्ष के लिए संशोधित अनुमान से 25.51 फीसदी कम है.
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नई दिल्लीः महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के लिए बजट आवंटन में मौजूदा वर्ष के संशोधित अनुमान से 25.51 फीसदी की कटौती के बीच केंद्र सरकार ने राज्यसभा को बताया कि कामगारों को 3,360 करोड़ रुपये की मजदूरी का भुगतान लंबित है.
बता दें कि मनरेगा का उद्देश्य देश के ग्रामीण क्षेत्रों में परिवारों की आजीविका सुरक्षा बढ़ाने के लिए एक वित्तीय वर्ष में हर परिवार के लिए कम से कम 100 दिनों के रोजगार की गारंटी प्रदान करना है.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार ने कहा कि पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में मनरेगा के तहत सबसे अधिक लंबित धनराशि का भुगतान किया जाना है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बीते एक फरवरी को आम बजट में घोषणा की थी कि केंद्र सरकार ने 2022-2023 के ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम के लिए 73,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. यह मौजूदा वित्त वर्ष के लिए संशोधित अनुमान से 25.51 फीसदी कम है.
केंद्र सरकार ने 2022-23 के लिए ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम के लिए 73,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं.
पिछले साल के बजट में भी इस योजना के लिए 73,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. बाद में काम की अधिक मांग को देखते हुए इसे संशोधित कर 98,000 करोड़ रुपये कर दिया गया था. हालांकि, आवंटन तभी से स्थिर बना हुआ है.
महामारी के दौरान मनरेगा के काम को लेकर राज्यवार विवरण और लंबित भुगतान पर माकपा सांसद जॉन ब्रिटास के सवाल के लिखित जवाब में ग्रामीण विकास राज्यमंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने कहा कि 27 जनवरी तक यह बकाया भुगतान राशि 3,358.14 करोड़ रुपये है.
पश्चिम बंगाल के श्रमिकों को 752 करोड़ रुपये का बकाया भुगतान करना हैं. उत्तर प्रदेश के कामगारों को 597 करोड़ रुपये और राजस्थान के मजदूरों का 555 करोड़ रुपये बकाया है.
नरेगा संघर्ष मोर्चा सहित कई संगठनों ने मनरेगा योजना के लिए इतनी कम धनराशि का आवंटन किए जाने को लेकर सरकार की आलोचना की है.
इस संगठन ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना के लिए कम बजट आंवटन को लेकर सरकार की आलोचना को लेकर बयान जारी किया है.
इस बयान में कहा गया, ग्रामीण संकट के बावजूद नरेगा को लागू करना केंद्र सरकार का कानूनी दायित्व है. हालांकि, इस एक्ट की मांग संचालित प्रकृति को बार-बार दबाया गया. इतनी सख्ती से धनराशि का आवंटन करने से यह योजना आपूर्ति संचालित कार्यक्रम बन गई है.